पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३२८

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लेकिन पहले उनको इस बात का विश्वास न था कि युद्ध का यह परिणाम होगा। यदि हम चाहते तो उनको राजस्थान के किसी राज्य में आश्रय नहीं मिल सकता था। लेकिन ऐसा करना हमारा कर्तव्य नहीं था। महाराव के शिविर में इन सामन्तों के बहुत से कागज-पत्र हमें मिले, जिनसे मालूम हुआ कि राज्य के सामन्तों और हाड़ा राजपूतों को अपने पक्ष में करने के लिये उनके साथ किस प्रकार पड़यंत्र किये गये थे। उसका परिणाम यह हुआ कि महाराव का साथ देने वालो को भयानक क्षति उठानी पड़ी। लेकिन उस युद्ध के बाद सवको क्षमा कर देने की घापणा की गई और जालिम सिंह के द्वारा यह भी चोपणा हुई कि जो सामन्त राज्य को छोड़कर चले गये हैं, वे लौट कर अपने स्थानों में आ सकते हैं। वे किसी प्रकार अपराधी न समझे जायेगे, इस घोपणा के बाद कुछ सप्ताहों में सभी सामन्त और सरदार अपने नगरों में आ गये और राज्य में पूर्ण रूप से शान्ति कायम हो गयी। राजनीतिक कार्यों में प्रवेश करने के पहले सन् 1807 ईसवी में मैंने कोटा राज्य के अनेक स्थानों में घूम कर वहां की ऐतिहासिक सामग्री एकत्रित करने का काम किया था। राहतगढ़ में सिंधिया के दरवार को छोड़कर अपने कुछ आदमियों के साथ चन्देरी के घने जंगलों में मैं घूमता हुआ पश्चिम की तरफ आगे बढ़ा और वेतवा तथा चम्बल नदी के मध्यवर्ती स्थानों मे घूमता रहा। इसके बाद वारा नामक स्थान पर पहुंचकर मेंने मुकाम किया। उसके पश्चात् हाड़ौती से सत्रह मील की दूरी पर काली सिंध नामक नदी के किनारे में पहुँच गया और अपने आदमियों से वहीं पर आने के लिए मेंने कह दिया था। बमोलिया नामक नगर के पास से जाने के समय मुझे कुछ आदमी मिले। उन्होंने मुझे घेर कर कहा कि आपको हमारे राजा के पास चलना पड़ेगा। उस समय में बहुत थका हुआ था। लेकिन उन आदमियों की बात को मान लेना मेरे लिए आवश्यक था। इसलिए में उनके साथ चल पड़ा। एक बगीचे के भीतर जाकर घने वृक्षों के बीच में मैंने एक ऊँचा चबूतरा देखा। इस चबूतरे पर बमौलिया का सामन्त एक कालीन पर बैठा हुआ था। उसके पास कुछ और लोग भी बैठे हुए थे। उन लोगों ने मेरे साथ बहुत सम्मान प्रकट किया। चबूतरे के पास पहुंच कर मैंने अपने बूट खोलने की कोशिश की लेकिन कुछ थकावट और फिर जल्दी के कारण मैं अपने बूट खोल नहीं सका। मेरे पहुँचने के बाद तुरन्त जल-पान की सामग्री मँगाई गई और एक ब्राह्मण हाथ मुँह धोने के लिये पानी ले आया। मैं उस समय राजपूतो के आचार-व्यवहार से परिचित न था। इसलिए मेरी समझ मे जो कुछ आया, वेसा मैने किया, कुछ देर तक मैंने वहाँ विश्राम किया। वहाँ पर बैठे हुए सामन्त और उनके साथ के आदमियों से मेरी बरावर बातें होती रहीं। यद्यपि मैं इतना थका हुआ था कि चुपचाप लेटे रहकर कुछ देर तक केवल विश्राम करना चाहता था परन्तु मेरे वहाँ पहुँचने के बाद कुछ ही देर मे मनुष्यों की एक भीड़ लग गयी और वहाँ पर मेरे आने का समाचार पाकर आदमियो के साथ बहुत-सी स्त्रियाँ और जवान लड़कियाँ मुझे देखने के लिए आयीं। इस प्रकार आने वालों की वहाँ पर एक अच्छी भीड़ लग गयी। वे सभी मेरी ओर देख रहे थे। मेरी चोडी लॅगड़ी हो गयी थी। इसलिये बमौलिया के सामन्त ने मेरे लिए एक अच्छा घोडा कसवा कर तैयार करवा दिया। मेरे चलने के समय जब उस घोड़े के लिए मुझसे कहा गया तो मेने वड़े सम्मान के साथ सामन्त के घोड़े को लेने से इनकार किया। अपने डेरे पर लौटकर जाने के बाद मैंने कई एक छोटी-छोटी चीजें उपहार स्वरूप सामन्त के पास 322