पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३७३

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और कुछ नहीं है, यह संसार कप्टमय है। वह धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया करता था और इस बात को सोचा करता था कि संसार नाशवान है। इसकी कोई वात स्थायी नहीं है। जीवन में जो कुछ दिखायी देता है, वह किसी भी क्षण नष्ट हो सकता है। माया और मोह के सिवा इसमे और कुछ नहीं है। इस प्रकार के विचारों से प्रभावित होकर उसने एक बार अपने अधीन सामन्तों के पास आदेश भेजा कि आप धार्मिक जीवन व्यतीत करते हुए दूसरों को सदा सहायता पहुँचाने की चेष्टा करो।। मानराजा ने एक हवन का श्रीगणेश कराया और उस हवन का कार्य सम्वत् 1218 श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को समाप्त हुआ। उस समय शिव की मूर्ति को पञ्चामृत से स्नान कराया और अपने गुरु तथा व्राह्मणों को उनकी अभिलापा के अनुसार सोना, चॉदी अन्न और वस्त्र दान में दिये। उँगलियों में कुश की अंगूठियाँ पहनकर तिल, चावल और जल लेकर वह महावीर के मन्दिर में गया और अपने इष्ट देवता के माथे पर चन्दन लगाकर जल देने के बाद उसकी आराधना की और उससे सुन्दर गच्छ* वंश के लोगों के लिए भेंट का संकेत करते हुए पाँच मुद्रा मासिक वृत्ति निर्धारित कर दी। उसने कहा : "मैं अपने निर्णय के अनुसार इस बात की घोपणा करता हूँ कि इस वंश का जो कोई अधिकारी होगा, वह इस वृत्ति को बरावर प्रचलित रखेगा। जो इस वृत्ति का दान करेगा, वह साठ हजार वर्ष तक बैकुण्ठ में रहेगा और जो इस वृत्ति को पूरा न करेगा, वह साठ हजार वर्ष तक नरक में रहेगा। वहाँ पर मैंने कई एक ग्रन्थ ऐसे प्राप्त किये, जो मेरे इस कार्य के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। इन ग्रन्थों में एक ग्रन्थ राजस्थान के 36 राजवंशो का विवरण देता है। एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें भारतवर्ष के प्राचीन भूगोल का वर्णन है। इस तरह यहाँ जो कई एक ग्रन्थ मिले हैं, उनमे मुझे अपने इतिहास की बहुत अच्छी सामग्री प्राप्त होती है। एक ग्रन्थ ऐसा भी समें विक्रम तथा महावीर के जन्म का वर्णन है और जैन धर्मावलम्बी नरेशों में सब से प्रसिद्ध श्रीनीक और अम्प्रोति के वंशजों का इतिहास है। महमूद, वलवन, विजयी नादिरशाह के नामो के सिक्के मुझे इस स्थान में मिले हैं। मेरे कर्मचारी नादोल से चौहानों की मुद्रा लाये हैं और उन्होंने वह मुद्रा मुझे दी है। उसका आकार कुछ छोटा है। देखने में वह बहुत साधारण सी जान पडती है। एक सिक्के मे एक तरफ एक घोडे के सवार की मूर्ति है। दूसरे कई सिक्कों मे बैलों की मूर्तियाँ बनी हैं। नादोल की जो यात्रा करता है, उसको परिश्रम के पुरस्कार में निश्चय ही कुछ सामग्री मिलती है। यहाँ पर प्राचीन काल की ऐतिहासिक सामग्री कई प्रकार की पायी जाती है। मेने स्वयं उस प्रकार की सामग्री यहाँ पर प्राप्त की है। जैनियों की प्राचीन निवास-भूमि नादोल, देसूरी और सादड़ी में पुराने सिक्के, हाथ की लिखी हुई पुरानी पुस्तकें और कुछ इसी प्रकार की दूसरी सामग्री प्राप्त की जा सकती है। वहाँ के टूटे-फूटे महलों और मन्दिरो मे भी प्राचीनकाल के विवरण खोजने से मिलते हैं। जो लोग इस प्रकार की खोज का काम करना चाहते है, उनको आव् पर्वत से लेकर मण्डोर तक यात्रा करने की जरूरत है। इस सम्पूर्ण प्रदेश मे जैन धर्मावलम्बी उन दिनों में रहा करते थे। मिला है, और भारत मुन्दर गन्ध जेनिची की चोरासी शाखाओं में एक शाखा है। 367