पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३८९

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अभय सिंह ने अपने पिता राजा अजीत सिंह की हत्या की थी। उसके बाद मारवाड़ राज्य के दुर्दिनों का आगमन हुआ और तीन-चार पीढ़ियों के पश्चात् उस राज्य का सर्वनाश करने वाली परिस्थितियाँ अपने आप पैदा हो गयीं। अपराधों का बदला प्रकृति स्वयं मनुष्य को देती है। पराक्रमी राजा अजीत सिंह ने बादशाह औरंगजेब के आधिपत्य से अपने पैतृक राज्य का उद्धार किया था और बादशाह औरंगजेब उसका कुछ न विगाड सका था। उसी औरंगजेब ने राजा अजीतसिंह से बदला लेने के लिए एक पड़यन्त्र रचा। उसने अजीतसिह के बड़े लड़के को अपने पडयन्त्र में सम्मिलित किया और पापात्मा अभयसिंह ने बादशाह के द्वारा मिलने वाले प्रलोभनों में आकर अपने पिता अजीतसिंह को जान से मार डाला। बादशाह ने अभयसिंह को गुजरात का शासक मुकर्रर किया था और अभयसिंह के छोटे भाई को राज सौंपा था। इसके बाद समय में परिवर्तन हुआ और उस परिवर्तन के अनुसार वहाँ की राजनीतिक परिस्थितियाँ बदलीं। जो अपने थे, वे शत्रु मालूम होने लगे। ईर्ष्या की आग के कारण जिन्दगी का बड़ा-से-बड़ा अपराध कर्त्तव्य और एक आवश्यक कार्य के रूप में दिखायी देने लगा। मन की दूपित भावनाओं में क्रान्तिकारी विचारों ने अधिकार जमाया। राजा मानसिंह इन दिनों में वहाँ के सिंहासन पर था। उसके सामने कठिनाइयों और विपदाओ की वृद्धि हुई। झालामन्ड में जिस समय वह अपने भाई के आक्रमण से अपनी रक्षा करने मे लगा हुआ था, अवसर पाकर भीमसिंह राज सिंहासन पर बैठ गया और उसने मारवाड़ के राजवंश का सर्वनाश करने के साथ-साथ मानसिंह को संसार से विदा करने के लिए सोच डाला। भीमसिंह के इन भावों और कार्यो के कारण मारवाड़ में विनाशकारी आग की भीपणता आरम्भ हुई और उसके कारण राज्य का जितना विनाश हो सकता था, सब एक साथ हो गया। इस विनाश से बचने के लिए जव राजा मानसिंह को कोई सुरक्षित मार्ग दिखायी न पडा तो उसने जालोर का सम्पूर्ण प्रदेश देकर अपने प्राणों की रक्षा की। मानसिंह ने मुझसे कहकर स्वयं इस बात को मन्जूर किया था : "राठौर राजपूतो के गुरुदेव के द्वारा मेरे प्राणो की रक्षा हुई है। अन्यथा मेरे बचने की कोई आशा न थी।" वह गुरुदेव सभी लोगो में देवनाथ के नाम से प्रसिद्ध था। उसे लोग साधारण तौर पर नाथ जी कहा करते थे। उसी के द्वारा मानसिह के जीवन की रक्षा हुई, इस बात को मानसिंह ने स्वीकार किया। लेकिन यह बात कहाँ तक सही थी और गुरु देवनाथ के द्वारा मानसिंह के प्राणों के बचने में क्या रहस्य था, इसके सम्बन्ध में मानसिंह स्वयं कुछ नहीं जानता था और वह अपनी रक्षा में उस गुरुदेव की मेहरवानी को ही मानता था। इसके सम्बन्ध में मैंने समझने की कोशिश की। लेकिन लोगों के द्वारा किसी एक बात का समर्थन नहीं हुआ। जितने लोगों से, मेरी बातें हुईं, उतनी ही बातें मुझे मालूम हुईं। फिर भी यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि अगर देवनाथ ने कोशिश न की होती अथवा वह न चाहता तो भीमसिंह के पड़यंत्र से मानसिंह मारा जाता और वह किसी प्रकार संसार में जीवित न रह सक था। भीमसिंह के सामने आत्म-समर्पण करने के बाद मानसिंह ने अपनी जिन्दगी के सुरक्षित दिनों का अनुमान लगाया। लेकिन उसका यह अनुमान और विश्वास सही साबित न 383