के साथ सामन्तों का सर्वनाश किया। आरम्भ मे सब के साथ मिलकर और अपना विश्वास कायम करके उसने एक-एक सामन्त को छिन्न-भिन्न किया और अपने शत्रुओं से बदला लेने मे उसने भयानक विश्वासघातों और अत्याचारो से काम लिया। मनुष्य उत्पात, अपराध और अत्याचार करते-करते अपने मनुष्यत्व को खो देता है। राजा मानसिंह का इतना ही पतन नहीं हुआ, बल्कि उन पापों और अपराधों के फलस्वरूप उसका मन और मस्तिष्क विक्षिप्त हो गया। उसने राज्य के अधिकांश लोगो को अपना शत्रु समझ लिया था, अब शत्रुओं के न रहने पर भी उसको प्रत्येक स्त्री-पुरुष पर सन्देह रहने लगा। प्रत्येक व्यक्ति से उसको आशंका मालूम होती और किसी के द्वारा भी वह अपने सर्वनाश का अनुमान करने लगता। मन के इन विकृत भावों से उसने केवल अपनी स्त्री के हाथ का बना हुआ भोजन करना आरम्भ किया और दूसरे का बनाया एवम् तैयार किया हुआ भोजन करना बन्द कर दिया। राजा मानसिंह की विक्षिप्त अवस्था धीरे-धीरे और भी बढी। अव उसका मन राज्य के कार्य में न लगता। जीवन का प्रत्येक कार्य उसे अप्रिय और संकटपूर्ण मालूम होने लगा। इसलिये सार्वजनिक स्थानों को छोडकर वह एकान्त में रहने लगा। उसके मन के इस उन्माद को दूर करने के लिये जो उपाय सम्भव हो सकते थे, सब किये गये। लेकिन किसी से कुछ लाभ न हुआ। वह स्वर्गीय गुरुदेव देवनाथ की मृत्यु पर विलाप किया करता और अपने इष्ट देवता की अराधना किया करता। उसके मन की इस दुरवस्था में राज्य का बहुत पतन हुआ। यह देखकर उसके दरबार के प्रमुख व्यक्तियों ने परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह निर्णय किया कि राज्य के शासन का कार्य उसके लड़के को सौप दिया जाये। इस प्रकार का निर्णय करके उन लोगो ने मानसिंह से प्रार्थना की। इसको राजा मानसिंह ने मन्जूर कर लिया और उसने अपने हाथ से अभिषेक के समय अपने लडके के मस्तक पर राजतिलक किया। उसके बाद उसका लड़का छत्रसिंह सिंहासन पर बैठ कर राज्य का शासन करने लगा। छत्रसिह इस समय राज्यसिंहासन पर था। लेकिन अभी तक उसको शासन सम्बन्धी बातो का ज्ञान न था। संसार के व्यवहारों को समझने का उसे कोई अवसर न मिला था। अभिषेक के बाद वह राजा बन गया था। लेकिन राज्य कैसे किया जाता है, इस बात को वह समझता न था। उसमे इतना ही अभाव न था, बल्कि वह अयोग्य और नासमझ भी था। उसके आचरण अच्छे न थे। बुद्धिहीन होने के कारण उसमें दूरदर्शिता न थी। अपनी इसी अयोग्यता के कारण उसने आरम्भ से ही ऐसा काम आरम्भ किया, जो राज्य के लिये अच्छा न था। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अक्षयचन्द नामक एक वैश्य को अपना मन्त्री नियुक्त किया। सन् 1839 से 1807 ईसवी तक मारवाड राज्य की दशा सभी प्रकार खराब रही। अच्छे शासन के अभाव मे लगातार विनाशकारी दुर्घटनाओं की वृद्धि हुई, इनके फलस्वरूप मारवाड का शासन बहुत निर्बल पड गया। इन दिनो मे ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता भारतवर्ष में बढ़ रही थी। उसके प्रभाव मे राजस्थान के अनेक राज्य आ चुके थे। यह देखकर राजा छत्रसिह ने अंग्रेजी कम्पनी के पास सन्धि करने के उद्देश्य से अपना एक दूत भेजा। उस सन्धि का अवसर आने के पहले ही छत्रसिंह की मृत्यु हो गयी। 388
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