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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४००

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साथ उसकी चौंसठ रानियाँ चिता में बैठकर भस्मीभूत हुई थीं। इन दोनों बातों को सुनकर मैं कुछ गम्भीर हो उठा और उस अनुचर की तरफ देखकर मैं सोचता रहा। बुधसिह अजितसिंह का समकालीन और बादशाह औरंगजेब का सेनापति था। उसके बाद से करीब एक सौ बीस वर्ष बीत चुके हैं। इस लम्बे समय में बड़ा परिवर्तन हो गया है। बुधसिंह का वंशज राणा विष्णु सिंह मेरा घनिष्ठ मित्र था। सन् 1821 ईसवी में उसकी मृत्यु हुई थी। मरने के पहले उसने आदेश दिया था कि मेरी कोई स्त्री पतिभक्ति और सतीत्व का परिचय देने के लिए चिता पर न बैठे। मै राजा विष्णु सिंह के उस आदेश का स्मरण करता हूँ और अजित सिह तथा बुधसिंह की मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर जलने वाली उनकी रानियो की संख्या पर विचार करता हूँ। जिस प्रकार के सुधार बड़ी-बड़ी कोशिशों के बाद भी नहीं होते, वे समय आने पर अपने आप हो जाते हैं। राजा विष्णु सिंह ने अपने पुत्र की देख रेख और रक्षा का भार मरने के पहले मुझे सौंपा था। उसके मर जाने के बाद मै बूंदी चला गया और जो भार मुझे विष्णु सिह ने सौपा था, शक्ति भर मैंने उसका पालन करने की कोशिश की। दुर्ग के नीचे भी कुछ स्मारक बने हुए है। राव रणमल्ल, राव गागां और चन्द का स्मारक वहाँ पर देखने को मिला। इन लोगो ने परिहारों के अधिकार से मण्डोर छीन लिया था। इन तीनों राजाओं के स्मारकों से लगभग दो सौ हाथ की दूरी पर कुछ खाली स्थान पडा हुआ है। यह स्थान उन रानियों के लिये रखा गया है, जो किसी रोग से पीडित होकर मरेंगी। अब परिहार राजपूतो की राजधानी का हम कुछ वर्णन करेगे। जिसने प्राचीन टस्कन के कोना और वलटेरा जैसे नगरों को देखा है, वह जानेगा कि मण्डोर की रक्षा के लिये उसके आस-पास वनी हुई मजबूत और ऊंची दीवार ठीक उसी प्रकार की वनी है, जिस प्रकार प्राचीनकाल में नगरों की दीवारें थीं। अग्नि से उत्पन्न होने वाले चार राजपूत वंशों मे परिहारों का भी एक वंश माना जाता है। उनके इतिहास के अनुसार उनके राज्य का विस्तार भारतवर्ष में सूर्य और चन्द्रवंशी राजाओं के राज्य विस्तार से पहले हुआ था। परिहार राजपूतों का यह भी कहना है कि हम लोग काश्मीर से भारतवर्ष मे आये थे। जिन दिनों में बौद्धो के साथ शैव लोगों का धार्मिक युद्ध चल रहा था, उन्हीं दिनो मे ये लोग भारतवर्ष मे आये थे और बौद्ध लोगों से उनको प्रोत्साहन मिला था। परिहारों की इन बातों का समर्थन उनके इतिहास के द्वारा होता है। मण्डोर राजधानी की तरफ चलने के लिये पत्थरों की सीढ़ियाँ पार करनी पड़ती हैं। वहाँ पर नागदा नाम की एक छोटी-सी नदी बहती है और मार्ग में एक विशाल बावडी बनी हुई है। इस वावड़ी को बनाने के लिये भयानक परिश्रम करना पड़ा है। लोगों का कहना है कि पहाड के पत्थरों को काटकर यह जलाशय बनाया गया है। इस वावडी के भीतर जाने के लिए गोलाकार मे चक्करदार सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह बावड़ी बहुत पुरानी है और उसकी दीवारो मे ok इस बात का समर्थन सभी इतिहासकारों के द्वारा नहीं होता। कुछ विद्वानों का कहना है कि परिहार राजपूता के राज्य विस्तार के पहले और लगभग सेकड़ों वर्ष पहले भारतवर्ष में सूर्य और चन्द्रवशी राजा राज्य करते थे। परिहार राजपूना के राग्य विस्तार का यह वर्णन टॉड साहब ने उन्हीं के अनुसार किया है। 396