पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४०१

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गूलर जैसे दो वृक्ष पैदा हो गये हैं। उनकी जड़ें पृथ्वी में दूर तक फैली हुई हैं। परन्तु उनके द्वारा इन वृक्षों की कोई बड़ी मजबूती नहीं है। इस तरह की कितनी ही वातों ने उस प्राचीन बावड़ी को अयोग्य बना दिया है। अब उसकी कोई मरम्मत भी नहीं है। परिहार राजपूतों के अन्तिम राजा नाहरराव ने इस वावड़ी को बनवाया था। मेरा ध्यान मण्डोर की ऊँची और मजबूत दीवार की ओर आकर्पित हुआ। उसको बने हुए कई सौ वर्प और बीतेगे। यह ऊँची दीवार दुर्ग की तरह मण्डोर को घेरे हुए जिस प्रकार आज खड़ी हे, भविष्य में भी खड़ी रहेगी। केवल इतने से ही इस बात का अनुमान किया जा सकता है कि यहाँ की यह दीवार कितनी मजबूत है। यह दीवार शिखर की तरफ चली गयी है। उन दिनों मे लड़ाई की तोपों का आविष्कार नहीं हुआ था। इसलिये यहाँ के परिहार राजाओ ने दुर्ग के ऊपर बीचों बीच अपना महल बनावाया था। उस महल के सभी बुर्ज वहुत मजबूत बने हुए हैं और वे चौकोर हैं। उनको देखकर प्राचीन काल की अनेक बातों का अनुमान किया जा सकता है। मैंने इस बात को भली भाँति समझा। मैं जव मण्डोर में पहुंचा तो वहुत थक गया था और थकावट के कारण ही मुझे बुखार आ गया था। इसलिये उस दीवार के सम्बन्ध में मुझे ओर जो कुछ जानना चाहिये था, नहीं जान सका। वहाँ पर परिहार राजाओं का जो महल बना हुआ है उसके ऊपर चढ़कर में पहुँचा और टूटे-फूटे भागों को देखा। वह महल अब केवल एक पुराने खण्डहर के रूप मे रह गया है। फिर भी उसको देखकर उसकी पहले की अनेक वातो का अनुमान लगाया जा सकता है। जिस प्रकार के उपकरणों से वह महल बनाया गया था, उन्हीं उपकरणो से जोधपुर राजधानी का निर्णय हुआ है। यहाँ के राजमहल के बहुत करीव अनेक देवताओं के मन्दिर अपनी गिरी हुई दशा में दिखाई देते हैं। मैंने राजमहल को बाहर से लेकर भीतर तक देखने और समझने की कोशिश की। यद्यपि वह बिल्कुल नष्ट हो चुका है, परन्तु उसके कितने ही कमरो का आकार-प्रकार अब भी देखने को मिलता है, उन कमरो के बाहरी हिस्सों में जो शिल्प कला देखने को मिलती है, उससे अनुमान होता है कि महल का निर्माण तक्षक अथवा बोद्ध शिल्पियों के द्वारा हुआ था। राजमहल की दीवारो पर जो धार्मिक चित्र अंकित किये गये थे. वे यद्यपि वहुत कुछ विगड गये हैं। फिर भी बौद्ध और जैन धर्मो के साथ उनके सम्पर्क स्पष्ट रूप में जाहिर होते हैं। महल के स्थानों में शैव लोगों का धार्मिक त्रिकोण चित्र भी देखने को मिलता है। दुर्ग के दक्षिण-पूर्व में बना हुआ सिंहद्वार और जयतोरण अपनी सुन्दरता और रमणीकता का किसी प्रकार आज भी परिचय देता है। इस सिंहद्वार को देखकर परिहार राजपूतों की श्रेष्ठता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह सिंहद्वार किसी समय अत्यन्त सुदृढ़ और सुन्दर था, उसको देखकर यह बात आज भी जाहिर होती है। मण्डोर के प्राचीन राजाओ मे से किसी एक राजा ने अपनी विजय के स्मारक मे जयतोरण बनवाया था और उसी के आधार पर इसका यह नाम रखा था, यह बात भी जाहिर होती है। समय की कमी के कारण मैं इस जयतोरण का नक्शा नहीं बना सका इसका मुझे वार-वार ख्याल होता है। 397