- " हृदय को एक आघात पहुंच रहा है। परन्तु जिन राजपूतों के चरित्र को मैं प्यार करता हूँ, उनके चरित्र से भी प्रिय और अधिक प्रिय सत्य हे, में किसी भी दशा में सत्य को छिपाना नहीं चाहता। मैंने ऐसा कभी नहीं किया और भविष्य में भी कभी ऐसा न करूंगा। राजा अजितसिंह के वारह लड़के थे। उनमें अभयसिंह और वख्तसिंह-दोनों भाई बड़े थे। दोनों भाई बूंदी की राजकुमारी से उत्पन्न हुये थे। बख्तसिंह राज्य में अपने पिता के पास था। बड़े भाई अभयसिंह ने एक पत्र लिखकर उसके पास भेजा। उसमें उसने लिखा : 'अगर तुम पिता को जान से मार डालो तो मैं तुमको नागौर का सम्पूर्ण प्रदेश-जिसमें पाँच सौ पचपन नगर और गाँव हैं-दे दूंगा और तुम उस प्रदेश में राजा की उपाधि लेकर स्वतन्त्र रूप से शासन कर सकोगे। बड़े भाई अभयसिंह का यह पत्र बख्तसिंह को मिला। उसको पढने के बाद उसके दिल में किस प्रकार के विचार उत्पन्न हुये, यह बताया नहीं जा सकता। लेकिन वह अपने बड़े भाई के लिखने के अनुसार काम करने के लिये तैयार हो गया। नागौर प्रदेश के शासन के अधिकार ने उसके हृदय को एक बार भी पिता की हत्या करने से विचलित नहीं किया। वह अजितसिंह की हत्या करने के लिये तैयार हो गया। किसी प्रकार बख्तसिंह की माता पर उसका भाव जाहिर हो गया। उसने अपने पति से कहा :"मैं वख्तसिंह का विश्वास नहीं करती। तुम उससे सावधान रहना और किसी भी समय एकान्त में तुम उससे न मिलना।" राजा अजितसिंह ने रानी के मुख से इन शब्दो को सुना। वह साहसी और शक्तिशाली था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि मेरा लड़का मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है। वख्तसिंह अपने बड़े भाई के पत्र को पाने के वाद समय और संयोग की ताक में रहने लगा। महल के जिस कमरे में अजितसिंह सोया करता था, उससे जुड़े हुए कमरे में बख्तसिंह सोया करता था। वह जिस अवसर की प्रतीक्षा में था, उसके लिये उसे अधिक दिन व्यतीत नहीं करने पड़े। एक दिन रात को जब राजा अजितसिंह सो गया था, रात अधिक हो जाने के कारण महल में सन्नाटा हो गया था। सभी लोग अपने-अपने स्थानों पर सो रहे थे, रात का भीपण अन्धकार चारों तरफ फैला हुआ था। अजित सिंह के साथ उसकी रानी सो रही थी। उस अन्धकार में बख्तसिंह अपने कमरे से निकला और दबे पाँव वह अजितसिंह के कमरे में पहुंच गया। विस्तर के नीचे अजित सिंह की रखी हुई तलवार को उसने बड़ी सावधानी के साथ निकाल लिया और उस तलवार से अपने पिता की हत्या कर डाली। एकाएक बख्तसिंह की माँ की नींद टूट गयी। उसे अपने लड़के से जिस बात की आशंका थी, वह उस समय चरितार्थ हो गयी। उसने देखा कि वख्तसिंह ने अपने पिता को जान से मार डाला। वह जोर के साथ चीत्कार करती हुई रो उठी। रानी के रोने की आवाज सुनते ही महल के सभी लोग जाग पड़े। सभी लोग दौड़कर वहाँ पर आये। बख्तसिंह ने पिता के कमरे को वड़ी मजबूती के साथ वन्द कर दिया था। वह दरवाजा किसी प्रकार खोला गया। सभी ने भीतर जाकर देखा। अजित सिंह की मृत्यु हो चुकी थी और उसके शरीर से निकले हुए रक्त से उसके सभी कपड़े भीगे हुए थे। रक्त चारपाई से निकलकर कमरे में एकत्रित हो रहा था। वख्तसिंह की माँ एक तरफ बैठी रो रही थी। 413
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१७
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