पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४१८

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- हत्यारा वख्तसिंह अजितसिंह को मारकर महल की सबसे ऊंची छत पर चला गया और ऊपर जाने के पहले उसने सभी दरवाजों को बन्द कर दिया था। ये दरवाजे इस प्रकार वन्द किये गये थे कि उनको तोड़ने और खोलने में रात का वाकी सम्पूर्ण भाग समाप्त हो गया। सवेरा होने पर वख्तसिंह ने महल की छत से सब के देखते-देखते बड़े भाई अभयसिंह के भेजे हुए पत्र को फेंकते हुए कहा : “मैंने अपने मन से कुछ नहीं किया। पिता को जान से मार डालने के लिये भाई अभय सिह का यह पत्र मुझे मिला था।" वख्तसिंह का फेंका हुआ पत्र पढ़ा गया और सभी लोगों ने उस आदेश को पढा जो अभयसिंह के द्वारा पिता को मार डालने के लिए वख्तसिंह को मिला था। सभी अवाक् थे। स्त्री-पुरुषो के नेत्रों से ऑम्म निकल-निकल कर गिर रहे थे। अजित सिंह के मारे जाने पर उत्तराधिकारी अभयसिंह सिंहासन पर बैठेगा और अब वहीं यहाँ का राजा है, यह सोचकर राज्य के समस्त कर्मचारी और पदाधिकारी शान्त हो गये। राजपूतों में राजभक्ति सदा से रही है। उसी भावना के कारण अजित सिंह की हत्या को वहाँ के लोगों ने भूलकर अभयसिंह के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना मुनासिब समझा। राजा अजित सिंह के चौरासी रानियाँ थीं। वे सभी अजित सिंह के शव के साथ चिता पर बैठी और सती हो गयी। अजित सिंह स्वाभिमानी और प्रभावशाली शासक था, राज्य की प्रजा पर उसका पूरा अधिकार था और समस्त प्रजा उसके प्रति अपनी राजभक्ति प्रकट करती थी। अजित सिंह को इस प्रकार मृत्यु से मारवाड के समस्त स्त्री-पुरुषों को वेदना पहुंची थी, राज्य के सरदारों और सामन्तों ने अपने राजा अजितसिंह के लिये बहुत अधिक विलाप किया था। लोगों का कहना है कि राज्य की सम्पूर्ण प्रजा अजित सिंह पर स्नेह रखती थी। राजभक्ति के कारण मारवाड़ की प्रजा ने अभयसिंह के अपराधों को भुला दिया। लेकिन मारवाड़ का इतिहास अभयसिंह के इस अपराध को क्षमा न कर सकेगा। संसार जब तक मारवाड़ राज्य का इतिहास पढ़ेगा, अभयसिंह को अपराधी समझेगा और पिता के हत्यारे के रूप में उससे घृणा करेगा। इसको कोई रोक नहीं सकता। अभयसिंह ने सैयद वन्धुओं के जाल में फंसकर बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया और पिता की हत्या का अपराधी उसने अपने छोटे भाई वख्तसिंह को बनाया। परन्तु इस हत्या से बहुत दूर रहने के बाद भी लोगों के नेत्रों में वही हत्यारा सावित हुआ। कवियों ने अजित सिंह की हत्या के बाद जो कवितायें लिखीं, उनमें उन्होंने अभयसिंह को ही अपराधी माना। इस विषय में एक कवि की लिखी हुई कविता की चार पंक्तियाँ नीचे दी जाती हैं: बख्त, बख्त बाइरा, क्यों मारा अजमाला' हिन्दुयानी को सेवरा, तुर्कानी का साल। - अजित का अर्थ अजेय मानकर कवि ने यहाँ अजमल शब्द का प्रयोग किया है। 414