कविता की इन पंक्तियों का अर्थ है: "अरे वख्त तूने असमय अजमल की हत्या क्यों की। वह हिन्दुओं का संरक्षक ओर मुसलमानों के लिये शाल की तरह था।" अजित सिंह के बाद अभयसिंह मारवाड़ के सिंहासन पर बैठा और सैयद बन्धुओं की तरफ से वह गुजरात का शासक बनाया गया। राजसिंहासन पर बैठने के बाद जैसा उसने लिखकर अपने छोटे भाई वख्तसिंह से वादा किया था, उसने उसको नागौर प्रदेश का अधिकार दे दिया। बहुत दिनों से मुगल साम्राज्य डांवा-डोल हो रहा था। आपसी मतभेदो और विरोधों के कारण दिन पर दिन मुगलों की शक्तियाँ क्षीण होती जा रही थीं। अभवसिंह नीति कुशल, अवसरवादी और दूरदर्शी था। उसने वीण महल, सांचार और इस प्रकार के कितने ही सम्पन्न नगरों को-जो गुजरात में शामिल थे मारवाड़ राज्य में मिला लिया और छोटे भाई वस्तसिंह को जालौर प्रदेश का अधिकार भी दे दिया। अभयसिंह ने मारवाड़ राज्य में शांति रखने की चेष्टा की और वहां की प्रजा भी राजभक्ति के कारण सिर न उठा सकी। परन्तु अपराध तो अपराध होता है। किसी के कुछ विरोध न करने पर भी अपराध फलता-फूलता है और प्रकृति के नियमों के अनुसार अपराधी को दण्ड मिलता है। पिता की हत्या के अपराध में अभयसिंह को मारवाड़ में दण्ड देने वाला कोई न था परन्तु वह सुरक्षित न रह सका। मारवाड़ में असन्तोप, द्वेप और फूट की आग भीतर ही भीतर सुलगने लगी। राजा अजित सिंह के कई लड़के थे। संक्षेप मे उनके सम्बन्ध में यहाँ कुछ लिखना जरूरी है। अजित सिंह के लडकों में एक लड़के का नाम देवीसिंह था। वह चम्पावत वंश के प्रधान महासिंह के द्वारा गोद लिया गया था। इसलिये कि महासिंह के कोई लड़का न था। देवीसिंह उन दिनों में वीणा महल का अधिकारी था। वहाँ के लोगों की रक्षा कोलियों के अत्याचारो से जव वह न कर सका तो देवी सिंह ने पोकर्ण का प्रदेश लेकर उसके बदले मे वीणा महल दे दिया। सवलसिंह, सवाई सिह और नीमाज का सामन्त सालिमसिंह देवीसिंह के वंशज थे। अजित सिंह के एक लड़के का नाम आनन्दसिंह था। वह स्वतंत्र इंडर के महाराज के द्वारा गोद लिया गया था। मारवाड़ के राजा के पुत्र न होने की अवस्था में आनन्द सिंह का उत्तराधिकारी मारवाड राज्य का अधिकारी होना चाहिए, परन्तु राठोर राज्य में एक दूसरी ही प्रथा पायी जाती है। छोटा भाई अगर किसी दूसरे स्वतंत्र राज्य में गोद लिया जाता है तो मारवाड़ के राजसिंहासन पर उसके वंशजों का अधिकार रहता है। लेकिन अगर वह अपने राज्य के किसी सामन्त के द्वारा गोद लिया जाये तो मारवाड के राजसिंहासन पर उसका और उसके वंशजों का कोई अधिकार नहीं रहता। राज्य के किसी सामन्त के द्वारा गोद लिये जाने पर उसका पेतृक अधिकार नष्ट हो जाता है और वह केवल उसी सामन्त के प्रदेश का अधिकारी रह जाता है, जिसने उसको गोद लिया है। इस प्रकार महासिंह के द्वारा गोद लिए जाने के कारण मारवाड़ के सिंहासन पर देवीसिंह का कुछ भी अधिकार न रहा। जिन दिनो में अभयसिंह मारवाड़ का अधिकारी हुआ और वह उसके राजसिंहासन पर बैठा, ठीक उन्हीं दिनों मे मुगल शासन की सत्ता बडी तेजी के साथ नष्ट हुई। इस अवसर 415
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