पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/६१

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फिर इस संधि के पहले सालिम सिंह को बराबर भय बना रहता था कि गजसिंह के जो भाई जैसलमेर छोड़कर बीकानेर चले गये हैं, वे संगठित होकर किसी भी समय इस राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं और वह समय मेरे लिए बड़ा भयानक होगा। अंग्रेजों के साथ जैसलमेर की संधि हो जाने के बाद सालिम सिंह के मन का यह भ्रम दूर हो गया। क्योंकि संधि में एक शर्त यह भी थी कि राज्य पर बाहर से किसी के आक्रमण करने पर अंग्रेजी सेना जैसलमेर की सहायता करेगी। प्रधानमंत्री को इसके सम्बन्ध में एक बड़ी आशंका रहा करती थी, संधि के बाद यह मिट गयी और सालिम सिंह निर्भीकता के साथ अपना शासन करता रहा। अब उसके सामने कोई बाधा न थी। इस संधि के पहले जैसलमेर राज्य की जो परिस्थितियाँ चल रही थी, उनमें इस बात का कोई अनुमान नहीं हो सकता था कि यह राज्य कब तक अपनी स्वाधीनता की रक्षा कर सकेगा। अंग्रेजों की इस संधि के बाद राज्य की शक्तियों में तुरन्त कोई निर्माण नहीं हुआ। भी उसकी कमजोरियों के कारण आशंकायें पैदा हो रही थीं, अव उनका कोई भय न रह गया। यह बात किसी से छिपी न थी कि जैसलमेर का शासन बहुत दिनों से शिथिल पड़ गया था । और राज्य की सीमा इतनी कम हो गयी थी कि अब उसमें उसकी केवल राजधानी दिखायी देती थी। राज्य के समस्त उत्तरी ग्रामों और नगरों को मिलाकर भावलपुर का राज्य बन गया था और सिंध, बीकानेर और मारवाड़ के राज्य लगातार जैसलमेर के नगरों पर कब्जा करते चले जा रहे थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि हो जाने के बाद जैसलमेर के इस पतन का अंत हो गया। जो पड़ोसी राज्य उसके नगरों और ग्रामों पर लगातार अधिकार कर रहे थे, वे सव बन्द हो गये। यदि इस प्रकार की संधि न हुई होती तो अपनी रक्षा करने के लिए जैसलमेर में सैनिक शक्ति न रह गयी थी। एक समय वह था, जब जैसलमेर का व्यवसाय बढ़कर गंगा और सिंधु नदी के किनारे बसे हुए नगरों तक पहुँच गया था। परन्तु आपसी फूट, ईर्ष्या और अंतिम दिनों में सिंहासन पर बैठने वालों की अयोग्यता से राज्य का यह सारा वैभव थोड़े दिनों में ही छिन्न-भिन्न हो गया और राज्य पतन की उस दुरावस्था में पहुँच गया, जब उसकी स्वाधीनता संकट में दिखायी देने लगी। कम्पनी से इस संधि के बाद प्रधानमंत्री सालिम सिंह के सभी भय नष्ट हो गये। राज्य में अव उसका अत्याचार फिर से बढ़ने लगा। राज्य की सम्पूर्ण प्रजा उसको कोस रही थी। परन्तु उसके अत्याचारों को सहन करने के सिवा उनके अधिकार में कुछ न था। राज्य में कोई ऐसी शक्ति न थी, जहाँ पर प्रजा पहुँच कर अपना रोना रो सकती और अपने कल्याण के लिए प्रार्थना कर सकती। सालिम सिंह के कठोर अत्याचारों से अब राज्य के निवासियों को किसी अच्छाई की आशा न रह गयी थी। संधि के पश्चात् आरम्भिक दिनों में प्रधानमंत्री सालिम सिंह ने प्रजा के साथ ऊपरी सहानुभूति प्रकट करने की कोशिश की। लेकिन उसके इन व्यवहारों का प्रजा पर कोई प्रभाव न पड़ा। लोगों का असंतोप इस प्रकार उस पर बढ़ा हुआ था कि उससे लोग अव किसी प्रकार की आशा न रखते थे। सालिम सिंह भी प्रजा के इस अविश्वास को जानता था। जब उसने 55