देखा कि लोग मेरा विश्वास नहीं करते तो वह खुलकर लोगों के साथ अत्याचार करने लगा। इसके पहले उसने प्रजा के साथ सहानुभूति का जो एक दिखावा आरम्भ किया था, उसका भीतरी उद्देश्य यह था कि वह राज्य के प्रधानमंत्री पद पर अपने बाद अपने उत्तराधिकारी को ही रखना चाहता था। इसके लिए उसने प्रजा के साथ झूठी सहानुभूति आरम्भ की थी और इन्हीं दिनों में उसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सामने इस प्रकार का एक प्रस्ताव भी रखा था। सालिम सिंह को अपनी इन दोनों चेष्टाओं से असफल होना पड़ा। प्रजा के अविश्वास में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और अंग्रेज अधिकारियों के नेत्रों से उसके काले कारनामे छिपे न थे। इसलिए असफल हो जाने के बाद सालिम सिंह ने जैसलमेर राज्य में अपनी भयानक क्रूरता आरम्भ की। उन क्रूर और पैशाचिक अत्याचारों ने अंग्रेजी दूत को जैसलमेर की राजनीतिक परिस्थितियों पर अपनी सरकार को रिपोर्ट भेजने के लिए विवश किया। अंग्रेजी दूत ने 17 दिसम्बर, सन् 1821 ईसवी को अपनी सरकार से प्रार्थना की- "संधि के बाद जैसलमेर में जो निष्ठुर परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं, वे हमारी संधि के लिए अपमानजनक हैं। प्रधानमंत्री सालिम सिंह से इसके सम्बन्ध में प्रार्थनायें की गयी है। परन्तु वे व्यर्थ हो चुकी हैं। वह अपनी न्यायप्रियता और दयालुता का ऊँचे स्वर में वर्णन करता है। परन्तु प्रार्थनाओ के बाद उसने अपनी क्रूरता और पैशाचिकता को पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ा दिया है। उसके अत्याचारों से राज्य की सम्पूर्ण प्रजा में त्राहि-त्राहि मची हुई है। जैसलमेर राज्य की प्रजा के साथ समस्त राजस्थान के राज्यों की सहानुभूति है। जैसलमेर के व्यवसायी, जो पीलीवालो से कर्ज में रुपये लेकर व्यवसाय करते है, सम्पूर्ण भारत में फैले हुए हैं। यह व्यावसायिक श्रेणी-जो पाँच हजार परिवारो में विभक्त है-विवश होकर राज्य से निर्वासित हो चुकी है। जो बनिए तथा महाजन व्यवसाय के लिए बाहर जाते हैं, अपने राज्य को लौटकर आने मे घबराते हैं। राज्य की खेती का व्यवसाय इसलिए नष्ट हो गया कि उसकी रक्षा का राज्य में कोई प्रबन्ध नहीं है। राज्य की मालगुजारी कृपकों से जबरदस्ती वसूल की जाती है। लोगो का सही अनुमान यह है कि प्रधानमत्री सालिम सिंह ने बीस वर्षो मे दो करोड़ से अधिक रुपये की सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली है और इस सम्पत्ति से दूसरे देशों मे रियासतें खरीदी हैं। यह अपरिमित सम्पत्ति उसने लूट, अपहरण, नीति और भीषण क्रूरता के द्वारा एकत्रित की है। राज्य के सभी अच्छे परिवारो ने कम्पनी की सरकार के पास प्रार्थना पत्र भेजकर मांग की है कि हमारे परिवारों को सुरक्षित अवस्था में इस राज्य से निकालकर बाहर कर दिया जाये।" ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ राजस्थान के राज्यों की जो संधियाँ हुई थीं, उनके अनुसार जव राज्यो मे झगड़े पैदा होगे तो कम्पनी की सरकार मध्यस्थ बनकर निर्णय करेगी। इन दिनों में जैसलमेर की सीमा पर संघर्प पैदा हुआ और उसके फलस्वरूप युद्ध होने की सम्भावना हो गयी। उसमें ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मध्यस्थ बनना पड़ा। यह संघर्ष बारू राज्य के मालदेवोत लोगो से सम्बन्ध रखता था। मालदेवोत, केलन, बरसंग, पोहर और तेजमालोत भाटी वंश के है। परन्तु लूटमार की नीति अपनाने के कारण अकुज्जाक और पिण्डारियों की तरह वे भी लुटेरों में प्रसिद्ध हो . 56
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