पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मरुभूमि मे लूनी नदी की विशेषता है। इसी नदी को खारी नदी भी कहते हैं। वह अपनी अनेक सहायक नदियो के साथ अरावली पर्वत की झीलो और झरनो से निकलती है। मारवाड मे उपजाऊ भूमि और मरुभूमि के बीच मे लूनी नदी प्रवाहित होती है। मारवाड़ के आगे वह चौहानों के थल विभाग की तरफ बढती है और चौहान वंश के राजपतों का विभाजन करती है। इस नदी के द्वारा उनकी सीमा का निर्माण होता है। उसका पूर्वी भाग शिववाह नामक राज्य के नाम से हैं और पश्चिमी भाग पारकर के नाम से। उसके दक्षिण की तरफ अनेक प्रकार के प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं। नमक का लम्बा चौड़ा दलदल त-जो चौड़ाई में डेढ सौ मील से अधिक है-विशेष तौर पर लूनी नदी के द्वारा वना है। यहाँ पर थल और रो शब्दो से पाठकों को परिचित हो जाना चाहिए। इसलिए कि दोनों शब्दों के प्रयोग यहाँ पर कई बार किये गये हैं। उनकी जानकारी न होने से समझने में बड़ी कठिनाई पैदा होगी। थल सूखी भूमि का उपयोगी भाग कहलाता है। उसमे विस्तृत मैदान भी सम्मिलित है। रो भूमि मरुभूमि का वह भाग है, जिसमे कुछ वासो के सिवा और कोई चीज पैदा नहीं होती। उसे मरुभूमि की बंजर जमीन कह सकते हैं। लूनी नदी का थल-यह थल नदी के दोनों किनारो पर है, जिसमें जालौर और उसके अधीनस्थ राज्य बसे हुए हैं। नदी के दक्षिण भाग को इसमे सम्मिलित नहीं किया जा सकता। फिर भी उस पर बसे हुए राज्य के साथ इतना अधिक निकटवर्ती सम्बन्ध हे कि उसका वर्णन हमे बहुत आवश्यक मालूम होता है। जालौर-यह राज्य मारवाड़ के श्रेष्ठ भागों में से एक है। सुक्री और खारी नदियाँ जालौर को सेयाञ्ची से पृथक करती हैं। बहुत-सी छोटी-छोटी नदियाँ अरावली और आबू पवर्त से निकलकर मारवाड़ के इस भाग में बहती हुई उसके तीन सौ साठ नगरों और गाँवों की भूमि को उपजाऊ बनाती है। उनसे मारवाड़ को मालगुजारी मिलती है। मरुभूमि के नौ दुर्गो में से जालौर एक प्रसिद्ध दुर्ग था। उन दिनो मे मरुभूमि में प्रमार वशी राजपूतों का शासन था। प्रमार राजाओं के हाथ से जालौर कब निकल गया, इसका वर्णन करने के लिए हमारे पास कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। बहुत दिनो तक यह जालौर चौहान राजपूतो के अधिकार मे रहा और चौहानों ने सन् 1301 ईसवी में जो युद्ध अलाउद्दीन के साथ किया था, उसका वर्णन फरिश्ता और भाटो के ग्रन्थों में मिला है। चौहानों की यह शाखा मल्लिनी के नाम से मशहूर थी। हाडौती के साथ चौहान राजपूतों के राज्य का वह भाग शामिल था, जो हथराज कहलाता था। उसकी राजधानी जूनाचोटन थी। अजमेर से पारकर तक लूनी नदी के किनारे की समस्त भूमि मे जो गाँव और नगर बसे थे, उनमे इस वंश का राज्य था। इससे जाहिर होता है कि चौहानो ने प्रमार राजाओ का सर्वनाश करके खारी नदी के किनारे पारकर तक अपना अधिकार कर लिया था। सोनगिरि अथवा स्वर्णगिरि इस दुर्ग का पुराना नाम है। चौहान राजाओं ने अपने वंश मल्लिनी का नाम बदराफर सोनगिरि के नाम पर सोनीगुर रख लिया था। यहाँ पर उन्होने माली के देवता भरिलनाथ का मन्दिर बनवाया था। सिया जी के वंशजो के आने के समय तक वहाँ पर चौहानों का शासन कायम रहा। उनके आने पर सोनगिरि दुर्ग का नाम जालौर रखा गया। 70