। प्रसिद्ध यदुवंश की सुमा शाखा है। इस शाखा को भिन्न-भिन्न नामो से लिखा गया है। उसकी राजधानी सुमा का कोट अथवा नगरी थी। महेवा परिवार के एक सम्बन्धी की जागीर तिलवारा है और बालोतरा मारवाड़ के प्रधान सामन्त अहवा की जागीर में थी। वालोतरा और सिन्द्री की प्रसिद्धि कुछ दूसरी बातो मे है। इन दोनों पर प्रसिद्ध दुर्गादास का अधिकार था। मरुभृमि में दुर्गादास का नाम सर्वत्र प्रसिद्ध है उसके वंशजो का अधिकार अब तक सिन्द्री नगर पर पाया जाता है। महेवा जागीर की वार्षिक आय पचास हजार रुपये मानी जाती है। वहाँ का सरदार कभी-कभी अपने दरवार में आता है। राज्य पर जब कोई संकट आता है अथवा अमाधारण प्रसंग पैदा होता है तो उसकी सूचना उसे दी जाती है और उस समय उसका आना आवश्यक होता है।" इन्दुवती-यहाँ पर इन्दु जाति के राजपूतों की वस्ती है और उनका वंश परिहारों की एक प्रसिद्ध शाखा है । इन्दुवती बालोतरा के उत्तर की तरफ जोधपुर की राजधानी से पश्चिम की तरफ है। इसके उत्तर की तरफ गोगा का थल पाया जाता है। इन्दुवती का थल लगभग तीन कोस के घेरे में है। गोगादेव का थल-गोगा का थल चौहानों के इतिहास से विशेष सम्बन्ध रखता है। यह थल इन्दुवती के उत्तर की तरफ है। इन दोनो की परिस्थितियाँ विल्कुल एक हैं। यहाँ पर रेत के टीले बहुत ऊँचे पाये जाते हैं। आवादी बहुत कम है। बहुत थोडे से गाँव उसमें पाये जाते हैं। भूमि की सतह से पानी बहुत गहराई में मिलता है। यहाँ पर जंगल अधिक हैं । जो लोग यहाँ रहते हैं, वे वरसात के पानी को टैंकों में एकत्रित करते हैं और बडी सावधानी से उसे खर्च करते हैं। उस पानी के सड़ जाने पर जो लोग उसे पीने के काम में लाते हैं, उनकी आँखों मे रतौंधी की बीमारी हो जाती है। तिर्सरो का थल गोगादेव और जैसलमेर की सीमाओं के बीच में हैं। पहले यह थल जैसलमेर राज्य मे शामिल था। पोकरण तिहूरों के साथ-साथ समस्त मरुभूमि की राजधानी है और वह मरुस्थल की दो राजधानियो के बीच में वसा हुआ है। ऊपर जिस भाग का वर्णन किया जा चुका है, इस थल का दक्षिणी भाग उससे पृथक नहीं है। उत्तरी भाग में और विशेषकर पोकरण नगर के चारों तरफ सोलह से बीस मील तक नीची-ऊँची चट्टानों की पंक्तियाँ पायी जाती हैं। इन्हीं चट्टानो के एक भाग पर भाटी लोगो की राजधानी बसी हुई है। चट्टानो की पंक्तियों के कारण इस भूमि का नाम चट्टानी अथवा चन्दानी है। कुछ लोग इसे चन्द्रानि भी कहते हैं। पोकरण नगर में दो हजार घरो की आवादी है। यहीं पर सलीम सिंह का निवास स्थान है। यह नगर पत्थरों से बनी हुई मजबूत दीवार से घिरा हुआ है और उसके किले पर पूर्व की तरफ कितनी ही तोपें रखी हुई है। नगर से पश्चिम की तरफ बरसात के दिनों मे जल का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। वहाँ की रेत इस पानी को थोड़े ही समय मे सोख लेती है। कुछ यहाँ के लोगों का विश्वास है कि इस रोग में एक पतला धागा-सा आँख में पड़ जाता है और वह एक कीडा होता है। इस प्रकार का कीडा घोड के नेत्रों में भी पैदा हो जाता है। जिन घोडों की आँखों में यह बीमारी थी, उनको मने स्वय देखा है। एक पतले धागे के समान रोग का कीडा आँखों में दौडा करता है। जिसे कीचड़ या आँस के साथ निकाला जाता है। X 80
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