लोगों का कहना है कि जल कनोड के तालाव से आता है और कुछ लोग उसको पहाड़ी झरनों से आता हुआ बतलाते हैं । यहाँ के रहने वाले जल के प्रवाह-मार्ग में खोदकर पीने के योग्य जल निकाल लेते हैं। यहाँ का सरदार चौबीस गाँवों के अतिरिक्त लूनी और वाँदी नदियों के बीच की भूमि का भी मालिक है। दूनरा और मञ्जिल प्रसिद्ध दुर्गादास की जागीरें थीं। लेकिन अब वे देशद्रोही सलीम के अधिकार में हैं। पोकरण से तीन कोस उत्तर की ओर रामदेवरा नाम का एक गाँव है। इस गांव में रामदेवरा का मन्दिर होने के कारण इस गाँव का नाम रामदेवरा हो गया है। उस गाँव में भादो के महीने में एक मेला लगता है। उस मेले में बहुत दूर-दूर से आदमी आते हैं। कराची, मुलतान, शिकारपुर और कच्छ के व्यवसायी आकर यहाँ पर क्रय-1 प-विक्रय का काम करते हैं। यहाँ के लोग घोड़े, ऊँट और वेल अधिक रखते हैं। सन् 1813 ईसवी के अकाल का यहाँ पर वुरा प्रभाव पडा । राजा मानसिंह के शासनकाल में जो अराजकता उत्पन्न हुई थी, उससे यहाँ का व्यापार नष्ट हो गया। खावर का थल- यह थल जैसलमेर के बीच में है और गिरो के निकट धात की मरुभूमि से जाकर मिल जाता है। यह थल मारवाड़ के एक दूरवर्ती किनारे पर पाया जाता है। यहाँ पर मनुष्यों की संख्या बहुत कम है। लेकिन यह विस्तृत स्थान में पाया जाता हैं। उसके कई एक नगर पहाड़ी चोटियों पर बसे हुये हैं। उनमें शिव और कोटरा अधिक.विशाल हैं। ये दोनों नगर उन पहाड़ी चोटियों पर हैं, जो भुज से जैसलमेर तक फैली हुई हैं। शिव में तीन सौ घरों की आवादी है और कोटरा में पाँच सौ घरों की। इन दिनों इन नगरों पर राठौर सरदारों का अधिकार है। वे सरदार वहुत साधारण जोधपुर-राज्य की अधीनता में माने जाते हैं। कुछ समय पहले अनहिलवाड़ा पट्टन और इस नगर में व्यावसायिक सम्बन्ध था। परन्तु लुटेरों के अत्याचारों के कारण वह व्यवसाय बिल्कुल नष्ट हो गया। यहाँ पर भेड़ों और भैंसों के चरने के लिए बहुत-सी भूमि पायी जाती है। मल्लिनाथ का थल- इस थल का नाम वरमेर भी है। प्राचीनकाल में यहाँ पर मल्लि अथवा मालिनी जाति के लोग रहते थे। बहुत से लोगों में वे लोग राठौर वंश के से प्रसिद्ध हैं। लेकिन वास्तव में वे लोग चौहान हैं और यह वही वंश है, जिसमें जूनाचोटन के राजा ने जन्म लिया था। पिछले दुष्काल के पूर्व वरमेर की आवादी वारह सौ वरों से कम की न थी और उनमें सभी जातियों के लोग रहते थे। उनकी चौथाई आवादी सॉचोर ब्राह्मणों की थी। बरमेर उसी पहाड़ी पर वसा हुआ है, जिस पर शिव और कोटरा आबाद हैं । बरमेर के पास उस पहाड़ी की ऊँचाई कहीं पर दो सौ फीट और कहीं पर तीन सौ फीट तक है। शिव कोटरा से लेकर बरमेर तक एक विस्तृत मैदान है। वहाँ पर अनाज की अच्छी पैदावार होती है। बरमेर का सरदार पद्मसिंह उसी वंश का है, जिसमें शिव कोटरा और जैसोल के राजाओं ने जन्म लिया है। इन नरेशों का वंश एक ही है। बरमेर जागीर में चौंतीस ग्राम हैं। खेरधूर- खेर का उल्लेख कई बार किया जा चुका है। गोहिलों को पराजित करके सबसे पहले राठौरों ने यहाँ पर अधिकार किया था। गोहिल लोग यहाँ से भागकर खम्भात की तरफ चले गये थे। वे लोग अब गोगा और भावनगर में शासन करते हैं। ऊँटों पर यात्रा करने नाम 87
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/८९
दिखावट