वाले काफिलों को लूट लेना उन लोगों का एक व्यवसाय बन गया था। मरुभूमि में नौ दुर्ग थे, जिनका उल्लेख किया जा चुका है। राजधानी खेरल का दुर्ग उनमें से एक था और वह दुर्ग प्रमार राजपूतों के अधिकार में था। लेकिन उसका विनाश बहुत दिनों से हो रहा था और अब वह एक साधारण गॉव रह गया है। इन दिनों मे वहाँ पर जो घर हैं, उनकी संख्या चालीस से अधिक नही है। काले रंग की पहाड़ियों ने उसे चारों तरफ से घेर रखा है। जूना चोटन को बहुत से लोग प्राचीन चोटन भी कहते हैं। वास्तव मे जूना और चोटन दो अलग-अलग स्थान हैं। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में वहाँ पर हथ-राज्य की राजधानी थी। हथ राज्य के सम्बन्ध में कोई विशेप उल्लेख नहीं मिलता। केवल इतना ही मालूम होता है कि वहाँ पर चौहानों का शासन था। वहाँ की बहुत-सी बातें इस बात का प्रमाण देती हैं कि पूर्वकाल में यह एक प्रसिद्ध राज्य था और उसके नगर बहुत बड़े-बड़े थे। प्राचीनकाल में जूना चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ था और प्रवेश करने के लिए केवल एक तंग रास्ता था। उसके सामने छोटा-सा एक दुर्ग टूटी-फूटी अवस्था मे अब भी पाया जाता है। उस पहाडी के शिखर पर दो अन्य दुर्गों के टूटे-फूटे भाग दिखायी देते हैं। जिस पर्वत पर जूना और चोटन बसे हुए हैं, उसके दूसरे सिरे पर धोरिमन नाम का एक नगर है। वहाँ पर एक पवित्र स्थान है, जहाँ पर पूजा करने के लिए श्रावण सुदी तीज को बहुत-से लोग एकत्रित होते है। इस प्रकार की कुछ बातों को छोडकर वहाँ के सम्बन्ध मे कोई विशेप उल्लेख नहीं मिलता। नागर और गुरु- ये दोनों नगर लूनी नदी के किनारे पर बसे हुए हैं और वें वहाँ के चौहानों के राज्य की सीमा समझी जाती है। पहले किसी समय दोनों नगर चौहानों के राज्य मे थे। यहाँ पर मारवाड़ के पश्चिमी थलों का वर्णन समाप्त होता है। मारवाड़ स्वयं एक मरुभूमि का ऐसा भाग है, जहाँ पर अनाज की पैदावार का कोई सहारा नहीं रहता। उस पर भी सन् 1812 के दुष्काल ने उसको एक भयानक दुरावस्था में पहुंचा दिया था। इसके अतिरिक्त पिछले तीस वर्षों से राज्य की व्यवस्था ठीक न होने के कारण लुटेरों ने अत्याचार करके जो सकट उत्पन्न कर दिया है, वह अत्यन्त रोमांचकारी है। अमरकोट- मरुभूमि में ओमर लोगों का यह एक प्रसिद्ध दुर्ग था और पिछले कुछ वर्षो तक सोढा राजाओं की यहाँ पर राजधानी थी। दो सौ वर्ष पहले इसका विस्तार सिन्धु की घाटी मे उत्तर की तरफ लूनी नदी तक था। लेकिन मारवाड़ के राठौरों और सिन्ध के वर्तमान राजवंश ने सोढा लोगो के इस राज्य को बहुत निर्बल और सीमित बना दिया। इन दिनों में अमरकोट का प्राचीन गौरव नष्ट हो गया और वहाँ की आबादी में पाँच हजार मकानो के स्थान पर केवल दो सौ पचास मकान झोपड़ो के रूप में रह गये थे। वहाँ पर पुराना दुर्ग नगर के उत्तर-पश्चिम में है। वह ईटों से बना हुआ है। उसके अतिरिक्त वहाँ पर दूसरे दुर्ग भी हे, जिनकी संख्या अठारह बतायी जाती है। वे पत्थरों से बने है। नगर मे एक दुर्ग भीतर भी है। राज परिवार के रहने का सुदृढ़ प्रासाद है। किले के उत्तर की तरफ एक पुरानी नहर है, जिसका पानी वर्ष के कुछ दिनों तक बराबर काम देता है। अमरकोट में राजा मान के समय अनेक गॉवो की प्रतिष्ठा हुई थी। लेकिन वहाँ के गृह-युद्ध के कारण उनकी हालत खराब हो गयी 82
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