और अमरकोट का अधिकार कुलोरों और राठौरों के हाथों में चला गया। इसके बाद उनमें झगड़े पैदा हो गये, जिनका यहाँ पर संक्षेप में कुछ वर्णन करना आवश्यक मालूम होता है। मारवाड़ में विजयसिंह के शासनकाल में नूर मोहम्मद कुलोरा सिन्ध में शासन करता था। कन्धार की फौज के आक्रमण करने पर वह अपने राज्य से भागकर जैसलमेर चला गया और वहाँ पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बड़े लड़के अन्तूर खाँ ने अपने भाइयों के साथ वहादुर खाँ खैरानी के पास जाकर शरण ली। उन्हीं दिनों में उसके एक अनैतिक बन्धु गुलामशाह ने अवसर पाकर हैदरावाद के राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया। दाऊद पोतरा के सरदारों ने उमर खाँ के पक्ष का समर्थन किया। वहादुर खॉ, सश्जल खाँ, अली मोराद, महमूद खाँ, कायम खाँ और अली खाँ खैरानी सरदारों ने युद्ध की तैयारी की और अन्तूर खाँ के साथ वे लोग हैदराबाद के लिए रवाना हुये। गुलामशाह उनका मुकाबला करने के लिए अपनी फौज के साथ चला। भाईयों के बीच युद्ध आरम्भ हुआ। इस युद्ध में अन्तूर खाँ और उसके साथियों को सफलता न मिली। उनकी सहायता के लिए जो खैरानी सरदार युद्ध में गये, उनमें सभी मारे गये। अन्तूर खाँ कैद । कर लिया गया और वह गुजा के दुर्ग में जन्म भर कैद होकर रहा। यह दुर्ग सिन्ध के टापू हैदराबाद से चौदह मील दक्षिण की तरफ है। गुलामशाह ने उसका राज-सिंहासन उसके लड़के सर फीरोज को दिया। थोडे ही दिनों में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके वाद अब्दुल नवी उसके सिंहासन पर बैठा। उन दिनों में शिवदानपुर के उत्तर में चौदह मील की दूरी पर अभयपुर नामक एक नगर था। उसमें तालपुरी वंश का एक सरदार रहता था। यह वंश वालोच की एक शाखा है। उस सरदार का नाम गोराम था। वीजर और सोभान नाम के उसके दो लड़के थे। सर फीरोज ने गोराम की लडकी से विवाह करने की मांग की। लेकिन गोराम ने उसको लड़की देने से इन्कार कर दिया। इसके फलस्वरूप उसका परिवार नष्ट कर दिया गया। वीजर खाँ वहाँ से भाग गया और हैदरावाद के निरकुश शासक को वहाँ के सिंहासन से उतार कर वह स्वयं वहाँ का अधिकारी बन गया। कुलोर लोग छिन्न-भिन्न हो गये। वीजर खाँ ने वहाँ पर एकाधिपत्य शासन करने का इरादा किया। इसलिए अमरकोट में अधिकार करने के सम्बन्ध में राठौरों के साथ उसकी शत्रुता पैदा हो गयी। राठौर लोग मारवाड़ में शासन कर रहे थे। बीजर खाँ ने मारवाड से केवल कर ही नहीं माँगा, बल्कि राठौर राजा की लड़की के साथ विवाह करने के लिए उसने राजकुमारी की मांग भी की। इसके परिणामस्वरूप राठौरों के साथ दुगारा में उसका युद्ध हुआ। यह स्थान धरनीधर से दस मील की दूरी पर था। उस युद्ध मे राठौरों ने वालोच सेना को बुरी तरह पराजित किया। राठौरों ने इतने पर ही सन्तोप नहीं किया। बीजर खाँ ने मारवाड़ से दो माँगें की थीं। एक तो राठौरों के राज्य मारवाड़ से कर माँगा था और विवाह करने के लिए मारवाड़ की राजकुमारी मांगी थी। इन दोनों मांगों का पुरस्कार वीजर खाँ को देने के लिए राठौर राजपूत तैवारी करने लगे। उसी समय भाटी और चन्दावत दो सरदारो ने वीजर खाँ को पुरस्कार देने के लिए प्रतिज्ञायें की और वे दोनों मारवाड़ राज्य के राजदूत बनकर बीजर खाँ के दरबार में गये। वीजर खाँ के सामने एक लिखा हुआ कागज उन सरदारों ने उपस्थित किया। उस कागज को देखते ही बीजर खाँ ने समझा कि मारवाड़ के राजदूत अपने राजा की सन्धि का प्रस्ताव लेकर आये हैं। उसने बड़ी तेजी से साथ उस कागज 83
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/९१
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