राजा उम्मेदसिंह ने अपने हृदय में छिपी हुई बहुत दिनों की शत्रुता का अंत किया। उसने सामन्त के जीवन को खत्म करके संतोष पाया । सामन्त के कटे हुए सिर को अपने पैर की ठोकर मारकर उसने अनेक प्रकार की कड़वी और गंदी बातें कही। यह समाचार सामन्त के पुत्र ने जब सुना तो वह अपने पिता का बदला लेने के लिये तैयार हो गया। यह समाचार राणा के पास उदयपुर पहुँचा । सामन्त दिलील के इस प्रकार मारे जाने की घटना सुनकर वह बहुत दुःखी हुआ । राजा उम्मेदसिंह के साथ सामन्त के पुत्र का जो झगड़ा होने जा रहा था, उसको रोकने के लिए राणा ने शक्ति भर कोशिश की। वह मध्यस्थ वना। उम्मेदसिंह ने सामन्त को मारकर उसके आभूषणों के साथ जो कुछ था, लेकर अपने अधिकार में कर लिया था, राणा ने वह सब सामन्त के पुत्र को दिलवा दिया। दिलील का घोड़ा भी उसके पुत्र को दिलाया गया। भविष्य के झगड़े को रोकने के लिए राणा ने उम्मेदहिं के पाँच प्रसिद्ध ग्राम सामन्त के वेटे को उसके पिता के साथ होने वाले विश्वासघात के बदले में दिये। राणा ने इतना ही नहीं किया बल्कि जो जागीर मेवाड़ की तरफ से उम्मेदसिंह को दी गयी थी, उसके पाँच ग्राम जो सामन्त के पुत्र को दिये गये छोड़कर बाकी सम्पूर्ण जागीर पर राणा ने अपना अधिकार करवा लिया। न्यायपूर्ण आचरण न करके राजपूत जिस प्रकार आपस में कलह पैदा करते थे और आज भी करते हैं, उनके उदाहरण प्राचीन काल से लेकर अब तक इतने अधिक हैं कि वे लिखे नहीं जा सकते । ऐसे अवसरों पर राजपूत लोग यदि क्षमा माँगना और क्षमा करना सीख लें तो उनकी कलह आसानी से खत्म हो सकती है। प्राचीन इतिहास को पढ़ने से मालूम होता है कि न केवल अन्य देशों के राजाओं में, बल्कि राजपूत राजाओं में भी कलह को मिटाने के लिए और शत्रुता के स्थान पर मित्रता कायम करने के लिए कई प्रकार की प्रथायें थीं। उन प्रथाओं में एक वैवाहिक प्रथा भी थी। अपराधी पक्ष का राजा निरपराधी पक्ष के राजा के साथ शत्रुता मिटाने के लिए अपनी लड़की अथवा वहन का विवाह कर देता था। इस सत्य के प्रमाण में सभी देशों के ऐतिहासिक उदाहरण दिये जा सकते हैं। राजपूत भी यदि ऐसा करने लगे अथवा इस प्रकार के कोई भी दूसरे साधन काम में लायें तो उनका परिणाम अत्यंत कल्याणपूर्ण हो सकता है। राजपूतों में आपसी कलह के अनेक कारण हैं। सीमा विवाद भी उनमें से एक है। सीमावर्ती अनेक झगड़ों ने सामन्तों और राजाओं को प्रायः युद्ध के लिए तैयार कर दिया है। जैसलमेर और बीकानेर राज्यों के सीमावर्ती झगड़े अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। लेकिन सीमा पार के झगड़ों का अब अंत हो चुका है और भविष्य में राजाओं और सामन्तों के बीच इनके कारण कोई उत्पात पैदा न होंगे, इसकी पूरी आशा की जाती है। इसी आधार पर इन दिनों राज्यों में शांति दिखायी देती है। राजा और मंत्री - राजाओं और सामन्तों के कार्यों के सम्बंध में अनेक बातें लिखी जा चुकी हैं। राज्य में ऐसे कितने ही अवसर आते हैं, जिनमें सामन्तों को अपने परिवार के साथ राजधानी में आकर रहना पड़ता है। वहाँ पर उनके रहने का समय निर्धारित रहता है। राजधानी के कार्य से जब सामन्त वहाँ आते हैं तो परिवार के साथ-साथ उनकी सेना और नौकर-चाकर भी साथ में आते हैं और निश्चित दिनों तक वहीं रहते हैं। मेवाड़ में जागीरदारी का यह नियम सभी सामन्तों के लिए ऐसा नहीं है। यहाँ के श्रेष्ठ सामन्त अधिक स्वतंत्रता का लाभ उठाते हैं। राजस्थान के अन्य राज्यों के सामन्त जिस प्रकार श्रृंखलावद्ध और राजा की आज्ञा में तत्पर पाये जाते हैं, मेवाड़ के ऊँची श्रेणी के सामन्त उतने नहीं । अन्य राज्यों की भाँति धार्मिक उत्सवों में मेवाड़ के प्रधान सामन्त अपनी सेनायें लेकर राजधानी में नहीं आते। 105
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१०५
दिखावट