कनकसेन के वंश में राजा विजयसेन ने, जिसको आमेर के राजा जयसिंह ने नौशेरवाँ लिखा है, विजयपुर बसाया था। समय के प्रभाव से विजयपुर उजड़ गया और उस स्थान पर वर्तमान में धोलका नगरी बनी हुई है। भट्ट ग्रंथों में लिखा है कि विजयसेन ने वल्लभीपुर और विदर्भ नामक दो अन्य नगर भी बसाये थे। इन दोनों में बल्लभीपुर ही अधिक प्रसिद्ध है। लेकिन यह बल्लभीपुर कहाँ है, निश्चित रूप से यह नहीं बताया जा सकता। परन्तु अनुसंधान के बाद यह स्वीकार किया गया है कि वर्तमान भावनगर के पाँच कोस उत्तर पश्चिम की ओर बल्लभी नामक जो नगर वसा हुआ है यही प्राचीन बल्लभीपुर है। अनेक लोगों के मतानुसार से ऊपर लिखे हुए बल्लभीपुर से मेवाड़ का राजवंश आरम्भ हुआ है। लेकिन इसके सम्बन्ध में लोगों का परस्पर मतभेद है। अभी कुछ दिन पहले की बात है कि राणा के राज्य के पूर्व की ओर एक गिरे हुए शिवालय में एक शिलालेख पाया गया है, उसमें मेवाड़ राजवंश का प्राचीन वर्णन संक्षेप में लिखा है। इसके सिवा, राणा राजसिंह के समय की बातों का आधार लेकर जो पुस्तक लिखी गयी है, उसमें इस बात का उल्लेख मिलता है कि पश्चिम में सौराष्ट्र नाम का एक देश है। मलेच्छों ने इस देश पर चढ़ाई की थी और वहाँ के बालकनाथों को पराजित किया था, इस पराजय के समय बालक नाथराज की पुत्री के सिवा और कोई वाकी न रहा था। एक दूसरे ग्रंथ में लिखा है कि बल्लभीपुर के विध्वंस हो जाने के बाद वहाँ के निवासी भद्रदेश अर्थात् मारवाड़ में भाग कर चले गये और वहाँ उन लोगों ने वाली सान्डेराव व नोडोला नाम के तीन नगर बसाये । वे तीनों नगर अब तक मौजूद हैं। छठी शताब्दी के आरम्भ में जव म्लेच्छों ने वल्लभीपुर का विनाश किया था, उस समय वहाँ जैन धर्म का प्रचार था और आज उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में भी वहाँ पर जैन धर्म का प्रचार बरावर पाया जाता है। इन तीन नगरों के सिवा गायनी नामक नगर का भी उल्लेख पाया जाता है। यह भी पता चलता है कि बल्लभीपुर का राजा शिलादित्य अपने परिवार के साथ सौराष्ट्र से भाग कर गायनी नगर में पहुँचा था। भट्ट ग्रंथों में यह भी लिखा हुआ है कि म्लेच्छों ने राजा शिलादित्य के गायनी राज्य पर आक्रमण किया और उसे पराजित किया। उस लड़ाई में राजा शिलादित्य के बहुत से योद्धा मारे गए। उसका वंश समाप्त हो गया। केवल उसका नाम बाकी रह गया। जिन मलेच्छों2 ने गायनी में आक्रमण किया था, वे कौन थे इसको निश्चित रूप से बता सकना कठिन है। फिर भी जो ऐतिहासिक आधार मिलता है, उससे यह मानना पड़ता है कि जिनको यहाँ पर मलेच्छ लिखा गया है, वे सीथिक लोग थे और वे पारसियन राज्य से आये थे। उन्होंने तीसरी शताब्दी में सिंधु के किनारे अपना राज्य कायम किया और श्याम नगर को अपनी राजधानी बनाया, जहाँ पर प्राचीन यदु लोगों ने बहुत समय तक राज्य 1. 2. गायनी अथवा गजनी वर्तमान काम्वे का प्राचीन नाम है। इस नगर के दक्षिण दिशा में तीन मील की दूरी पर इसके खंडहर अब तक मौजूद हैं। भट्ट ग्रंथों में इस प्रकार के और भी नगरों के खंडहर पाये जाते हैं। उनके सम्बन्ध में अध्ययन करने से जाहिर होता है कि वालक रायगण भारतवर्ष के दक्षिण में शासन करते थे। इन ग्रंथों में लिखा है कि देवगढ़ प्राचीन काल में बिलबिलपुर पट्टन के नाम से प्रसिद्ध था ! इस बिलबिलपुर पट्टन में मेवाड़ राज्य के अधिकारियों के पूर्वज राज्य करते थे। इससे पता चलता है कि बिलबिलपुर पट्टन सौराष्ट्र देश में ही है। इन मलेच्छों के सम्बन्ध में कई प्रकार के मतभेद पाये जाते हैं, कई लेखकों ने इनके सम्बन्ध में अपनी-अपनी खोज के अनुसार उल्लेख किया है। प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिन्टन ने इन म्लेच्छों को पारसी बतलाया है । इसके लिये उसने जो प्रमाण दिये हैं, वे अधिक विश्वस्त मालूम होते हैं। इसलिये यह मान लेना ही सही मालूम होता है कि आक्रमणकारी म्लेच्छ पारसी लोग थे। परसियन ऐतिहासिक ग्रंथों में लिखा है कि सन् 600 ईसवी के प्रारम्भ में वादशाह नौशेरवाँ ने सिंध देश पर आक्रमण किया था, परन्तु उसका परिणाम क्या हुआ, यह कुछ नहीं लिखा । 111
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