पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/११२

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किया था। विद्वान एरियन ने इस श्याम नगर को मीनगढ़ा और अरब के भूगोल विशारदों ने 'मनकर' नाम देकर लिखा है। सिन्धु नदी के किनारे एक विशाल और विस्तृत देश में सीथिक लोग रहते थे। उनके कारण उस तरफ से भारत में आने वालों का रास्ता बहुत आसान हो गया था। इसलिए अनेक आक्रमणकारी जातियों ने उस तरफ से आकर इस देश पर हमला किया और इसका विनाश किया। जिट, हूण, कामारी, काठी, मकवाहनु, बल्ल और अश्वारियाँ नाम की अनेक जातियों ने उस तरफ से भारत में प्रवेश किया और सूरत में पहुँचकर अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया था। ये सभी जातियाँ इस देश में उसी तरफ से आयी थीं और उनको सुभीता यह था कि भारत की वह दिशा उस समय बहुत अरक्षित अवस्था में थी। यही कारण था कि मध्य एशिया की सभी संगठित आक्रमणकारी जातियों ने इस देश की निर्वलता का लाभ उठाया। प्रसिद्ध यात्री परिब्राजक कासमास चीन के राजा जस्टीनियम के शासन काल में भारत में मौजूद था और वल्लभी राज्य का कल्यान नगर देखने गया था। उसने अपनी यात्रा सम्बन्धी पुस्तक में लिखा है कि जिस समय वल्लभीपुर नष्ट हुआ उस समय बहुत-से हूण सिन्धु नदी के किनारे आबाद हो गये थे। उस समय उनके सरदार का नाम गोलास था। लेकिन इतिहासकार एरियन ने इसके सम्बन्ध में एक दूसरी बात का उल्लेख किया है । उसने लिखा है कि सिन्धु और नर्मदा के बीच के विस्तृत देश में अगणित संख्या में सीथिक लोग रहते थे। मीनगढ़ उनकी राजधानी थी। यहाँ पर यह नहीं कहा जा सकता कि इन दोनों में क्या सही है। सम्भव है कि चीनी परिव्राजक कासमस ने सीथिकों को ही हूण लिखा हो और यह भी हो सकता है कि पहले वहाँ पर सीथिक लोग रहते रहे हों । उसके बाद हूणों ने आक्रमण करके उनको वहाँ से भगा दिया हो और अपना आधिपत्य कायम कर लिया हो। कुछ भी हो, यह तो निश्चित ही है कि इन्हीं दोनों जातियों में किसी एक ने बल्लभीपुर राज्य का विनाश किया था। सूर्यवंशी राजा कनकसेन से आठवीं पीढ़ी में शिलादित्य नाम का एक राजा हुआ और उसी के शासन काल में म्लेच्छों ने बल्लभीपुर में आक्रमण करके उसको नष्ट किया। आक्रमणकारियों की संख्या बहुत अधिक थी। राजा शिलादित्य अपनी सेना के साथ उनसे लड़ा और शक्ति भर उनके साथ युद्ध किया। परन्तु अन्त में उसकी पराजय हुई और अपनी सेना के साथ वह मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही उसका सभी प्रकार सर्वनाश हुआ। उसके बाद उसके वंश में कोई न रह गया। 1. मीनगढ़ के सम्बन्ध में विदेशी लेखकों ने अनेक वातें लिखी हैं। डेनविल से लेकर सर हेनरी पोटिजर तक कई विद्वानों ने इसके सम्बन्ध में अनुसंधान किया था। उसमें कुछ को सफलता भी मिली थी। लेकिन उसके सम्बन्ध में कोई एक निर्णय नहीं हो सका। टाड साहब ने इसके सम्बन्ध में बड़े परिश्रम के साथ खोज की और कई विद्वानों के आधार पर इस बात को स्वीकार किया कि मीनगढ़ सिन्धु नदी के किनारे सिवाने पर है। 112