। जंगलों में जाकर वह शिकार खेलता और बड़ी स्वतन्त्रता से काम लेता। ऐसे मौकों पर कमला की एक न चलती। उसकी ये आदतें स्वतन्त्र रूप से उसमें बढ़ने लगीं। मेवाड़ के दक्षिण में शैलमाला के भीतर ईडर नाम का एक भीलों का राज्य है मण्डलीक नामक एक भील उस समय वहाँ का राजा था। गोह उस राज्य के भीलों के साथ वहाँ के जंगलों में घूमा करता और वहाँ के जानवरों का पीछा किया करता। वहाँ पर जो ब्राह्मण रहते थे, उनके साथ न तो वह रहता और न उनकी वातों को पसंद करता। वहाँ के भील गोह का बहुत आदर करते और उसे बहुत सम्मान देते । अवुलफजल और भट्ट ने वहाँ के एक वर्णन को इस प्रकार लिखा है: एक दिन भीलों के लड़के गोह के साथ खेल रहे थे। सभी लड़कों ने मिल कर गोह को अपना राजा बनाया और एक भील वालक ने अपनी उंगली काटकर अपने खून से गोह के माथे पर राजतिलक किया। किस घटना का भविष्य में क्या परिणाम होता है, इसको पहले से कोई नहीं जानता। ईडर राज्य के मण्डलीक राजा ने यह घटना सुनी कि यहाँ के भील लड़कों ने गोह को अपना राजा बनाया है तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और एक दिन उसने अपना राज्य गोह को सौंप कर राज्य से छुट्टी ले ली । राजा मण्डलीक के कई पुत्र थे। परन्तु उसने अपना राज्य अपने पुत्रों को न दिया था और गोह को सौंप दिया था। परन्तु गोह ने इसके बदले में राजा मण्डलीक को एक दिन मार डाला। उसने ऐसा क्यों किया, इसके सम्बन्ध में कहीं पर कोई उल्लेख नहीं मिलता। आगे चलकर गोह का वंश उसी के नाम से चला और उसके वंशधर गुहिलोत अथवा गोहलोत के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस समय के बाद का कोई विशेष उल्लेख ग्रन्थों में नहीं मिलता। जो कुछ मिलता है, उसके आधार पर इतना ही जाहिर होता है कि गोह के वाद आठवीं पीढ़ी तक ईडर राज्य में गोह लोगों का राज्य रहा और वहाँ के भील राजपूतों के सभी प्रकार काम आते रहे । गोह की आठवीं पीढ़ी में नागादित्य नाम का एक राजा हुआ। उसके व्यवहारों से बहुत से भील अप्रसन्न थे। इसलिए एक दिन जब नागादित्य जंगल में शिकार खेलने गया था तव भीलों ने उसे घेर लिया और उसे मारकर ईडर राज्य में भीलों का राज्य कायम किया। वहाँ पर जो लोग रहते थे, सभी भील थे और उनका आतंक वहाँ पर पहले से फैला हुआ था। नागादित्य के मारे जाने के बाद वह आतंक और भी बढ़ गया। भीलों का मुकाबला करने में राजपूत घवरा उठे थे। उनके सामने भविष्य के लिए कोई आशा न रह गयी थी। नागादित्य के वप्पा नाम का एक तीन वर्ष का वालक था। उस बालक की रक्षा का कोई उपाय दिखाई न देता था। इसलिए कि भीलों का आंतक लगातार बढ़ता जाता था। लेकिन उसकी रक्षा का उपाय निकला। वीरनगर की जिस कमलावती ब्राह्मणी ने शिशु गोह के जीवन की रक्षा की थी,उसी के वंशजों ने शिलादित्य के राजवंश की रक्षा करने का काम किया। उन लोगों ने राजकुमार वप्पा की रक्षा करने का निश्चय किया। उन दिनों भीलों के आतंक भयानक हो रहे थे और वप्पा के मारे जाने की आशंकाएं लोगों की समझ में आती थीं। इसलिए वहाँ के ब्राह्मण वप्पा को लेकर भाँडेर नाम के किले पर चले गये। उस किले में एक भील ने उन ब्राह्मणों की सहायता की, परन्तु वह स्थान भी अधिक सुरक्षित न था। इसलिए वप्पा को लेकर जो व्राह्मणी गये थे, वे उस किले से पराशर नाम के एक स्थान में चले गये। यह स्थान सभी प्रकार के वृक्षों से भरा हुआ था। वहीं पर त्रिकुट पर्वत है और उसके नीचे नागेन्द्र नाम का, जिसे साधारण तौर पर नागदा कहते हैं और जो उदयपुर से दस मील उत्तर की तरफ है, एक स्थान है। वहाँ पर शिवजी की उपासना करने वाले बहुत से ब्राह्मण रहा करते थे। उन्हीं ब्राह्मणों को वप्पा सौंपा गया और उस समय से बप्पा वहाँ के स्वतन्त्र वातावरण में रहने लगा। 114
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