हुए। जो युद्ध में गया, उसी का सर्वनाश हुआ। उस समय इस्लामी सेना के आक्रमण से यह दशा हो गई थी। इसी मौके पर दाहिर के सिन्ध राज्य का पतन हुआ और राजा दाहिर मारा गया। राजा रोडरिक के अण्डलूस राज्य पर इस्लामी झण्डा फहराने लगा। इस प्रकार के सैकड़ों संघर्ष हुए और इस्लामी सेना का आतंक भयानक हो उठा। इस प्रकार के आक्रमण सम्वत् 474 सन् 718 ईसवी में सेनापति मोहम्मद बिन कासिम के द्वारा भारत में सिंध के राजा दाहिर को मार कर कासिम दाहिर की दो लड़कियों को अपने साथ ले गया और उन्हें खलीफा की भेंट में भेज दिया। इन्हीं दोनों लड़कियों के द्वारा सेनापति मोहम्मद बिन कासिम का संर्वनाश हुआ। आईने अकबरी और फरिश्ता इतिहास में इस घटना के सम्बन्ध में लिखा है कि राजा दाहिर की दोनों लड़कियाँ जब खलीफा के पास भेजी गयीं तो उन दोनों ने कासिम के अश्लील व्यवहार को खलीफा से जाहिर किया। उसे सुनते ही खलीफा को बहुत क्रोध आया और उसने आदेश दिया कि सेनापति कासिम को कच्ची खाल में भर कर मेरे सामने पेश किया जाये और यही हुआ। उस समय कासिम कन्नौज के राजा हरचन्द के साथ युद्ध करने के लिए जा रहा था। आदेश के अनुसार वह खलीफा की अदालत में लाया गया और उसका अन्त किया गया। अलमंजूर जब खलीफा अब्बास का सेनापति था, उस समय सिंध और कुछ अन्य राज्य उसके अधिकार में थे। उसने सिंध की पुरानी राजधानी अरौर का नाम जो सख्खर के उत्तर में सात मील की दूरी पर है, बदल कर मंसूर रखा और और उसे अपने रहने का स्थान बनाया। यह वही समय था, जब बप्पा-रावल चित्तौड़ छोड़कर ईरान चले गये थे। हारूँ अलरशीद ने खलीफा बनने पर अपने विशाल राज्य को अपने बेटों में बाँटा और उसने दूसरे पुत्र अलमामून को खुरासान, जबूनिस्तान, सिंध और हिन्दुस्तानी राज्य दिये। हारूँ की मृत्यु के बाद अलमामून अपने भाई को पदच्युत करके हिजरी 78 सन् 813 ईसवी में खलीफा बन गया। यह वही समय था, जब खुमान चित्तौड़ का राजा था। उसी के शासन काल में अलमामून ने जबूलिस्तान से आकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। ऊपर चित्तौड़ के आक्रमण में जिस महमूद का नाम लिखा गया है और जिसे चित्तौड़ के राजा खुमान ने पराजित करके कैद कर लिया था, वह यही मामून था, जिसका नाम लिखने वालों की भूल से महमूद लिखा गया है। इसके बाद बीस वर्ष तक मुसलमानों ने भारत मे कहीं पर आक्रमण नहीं किया । उनका प्रभाव इन दिनों में कमजोर पड़ रहा था और भारत वर्ष के जिन देशों में उन्होंने अधिकार कर लिया था, सिंध को छोड़कर बाकी सभी देश उनके अधिकार से निकल गये थे। इन्हीं दिनों में हारूँ रशीद का पोता मोताविकेल बगदाद के सिंहासन पर बैठा। यह समय सन् 850 ईसवी का था। मोताविकेल के बाद उसका पैतृक राज्य निर्बल पड़ने लगा और उस समय के पश्चात् बगदाद सौदागरों के एक बाजार के सिवा और कुछ न रह गया। बगदाद के अधःपतन के इन दिनों में उसके खलीफों का भारत के साथ जो सम्बन्ध था, वह भी टूट गया ओर मुस्लिम आतंक कुछ समय के लिए इस देश से समाप्त हो गया। परन्तु सुबुक्तगीन के सिंहासन पर बैठते ही खुरासान में हिजरी संवत् 365, सन् 975 ईसवीं में भारत पर आक्रमण करने के लिए तैयारियाँ होने लगी और इसी वर्ष सुबुक्तगीन ने अपनी विशाल सेना लेकर सिन्ध नदी को पार किया और उसके पश्चात् भारत में पहुँचकर उसने आक्रमण किया। उसकी विशाल सेना के सामने भारत के कितने ही राजाओं का पतन हुआ और अगणित संख्या में हिन्दू अपना धर्म छोड़कर मुसलमान हो गये। 1 121
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