पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१२२

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इसी शताब्दी के अन्त में सुबुक्तगीन ने भारत पर दूसरा आक्रमण किया और हिन्दुओं के साथ उसने बड़ी निर्दयता का व्यवहार किया। उसके इस दूसरे आक्रमण में उसका बेटा महमूद भी उसके साथ आया था और उसने अपने पिता से भी अधिक निर्दय व्यवहार इस देश के लोगों के साथ किये थे। सुबुक्तगीन के बाद उसका बेटा महमूद सिंहासन पर बैठा और उसने बारह बार भारत पर भयानक आक्रमण किये। अपनी इन लड़ाइयों में उसने उपस्थित सम्पत्ति की लूट की, नगरों का विनाश किया और मन्दिरों को तोड़कर उनका सर्वनाश किया। अपने अमानुषिक अत्याचारों के द्वारा उसने हिन्दुओं को अपने पूर्वजों का धर्म छोड़ने और कुरान पढ़ने के लिए मजबूर किया। हिजरी सम्वत् की पहली शताब्दी से लेकर चौथी शताब्दी के अन्त तक खलीफा लोगों का जो व्यवहार भारत के साथ रहा, उसका संक्षेप में यहाँ पर वर्णन किया गया है। इसके पहले जो विवरण चल रहा था, वहाँ का इतिहास मिली हुई सामग्री के अनुसार हम आगे लिखने की चेष्टा करते हैं। चित्तौड़ के राजा मानसिंह के शासन काल में म्लेच्छों ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और वप्पारावल ने उनको पराजित किया था। कदाचित इजीद उन म्लेच्छों का नेता था और मोहम्मद बिन कासिम की सेना में सिंघ देश से आकर उसने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। परन्तु ऐतिहासिक ग्रन्थों में इस बात का स्पष्टीकरण नहीं होता कि राजा मानसिंह के समय जो सेना आक्रमण करने के लिये चित्तौड़ में आयी थी, उसका प्रधान कौन था। हिन्दू ग्रंथों में इस स्थल के वर्णन भिन्न-भिन्न तरीकों से किये गये हैं। उन ग्रंथों में इन आक्रमणकारी म्लेच्छों को कहीं पर यवन, कहीं पर राक्षस, कहीं पर दैत्य और कहीं पर दूसरे नामों से लिखा गया है। गुहिलोतों, चौहानों और यदु लोगों के ऐतिहासिक ग्रंथों में लिखा है कि सम्वत् 750 से 780 तक, सन् 694 से 724 ईसवी तक आक्रमणकारियों के द्वारा एक भयानक आतंक की वृद्धि हुई थी। ग्रन्थों में साफ-साफ वह बात नहीं लिखी गयी कि वे आक्रमणकारी कौन थे। इस बात का भी उल्लेख पाया जाता है कि हिजरी सम्वत् 950 में एक यदुवंशी राजा ने अपनी राजधानी शालपुर से निकल कर शतद्रु नदी के पूर्व की मरुभूमि में जाकर आश्रय लिया था। जिस शत्रु के कारण इस राजा को अपनी राजधानी से भागना पड़ा था, भट्ट ग्रन्थों में उसका नाम फरीद लिखा है। इसी समय अजमेर के चौहान राजा माणिकराय पर भी शत्रुओं का आक्रमण हुआ था और युद्ध में मणिकराय मारा गया था। इन दिनों में पंजाब का सिन्ध सागर दुआबा खींची वंश के पूर्ववर्ती राजाओं के अधिकार में था और हारस वंश के पूर्वज गोलकुण्डा में रहते थे। इन दोनों वंशों के राजा एक ही समय में अपने राज्यों से निकाले गये थे। जिन शत्रुओं ने उन पर आक्रमण किये थे, भट्ट लोगों ने अपने ग्रंथों में उन्हें दानव लिखा है । मुस्लिम तवारीखों में लिखा है कि ठीक इसी समय में इजीद खलीफा की ओर से खुरासान में राज्य करता था और खलीफा वलीद की सेना भारत में आक्रमण करने के लिए गंगा के किनारे तक आ गयी थी। इसके आगे इन तवारीखों में भी कुछ नहीं लिखा गया। इस प्रकार के उल्लेखों से जाहिर होता है कि इन दिनों में जिन आक्रमणकारियों ने भारत में आकर उधम मचाया था, उनमें इजीद कासिम अथवा वलीद के किसी अन्य अधिकारी का होना सम्भव मालूम होता है। यह भी सम्भव है कि इन्हीं दो में से किसी की ओर से किसी ने अधिकारी बन कर उन दिनों आक्रमण किया हो । क्योंकि मुसलिम तवारीखों में भारत पर होने वाले आक्रमण के जो वर्णन लिखे गये हैं, उनमें इन्हीं दोनों का नाम पाया जाता है। उनके आक्रमण भारत में उस समय हुए थे, जब राजा मानसिंह चित्तौड़ में राज्य करता था। उस समय म्लेच्छों के आक्रमण से चित्तौड़ की रक्षा करने के लिए जो राजा युद्ध में गये थे, उनके नाम इस प्रकार हैं :

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