पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१२८

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गया और उसे यह भी मालूम हो गया कि दिल्ली पर आक्रमण करने के लिये गजनी से एक विशाल सेना लेकर शहाबुद्दीन आ रहा है। उसने इस अवसर पर समरसिंह को बुलाने के लिए अपने सामन्त चण्डपुण्डीर को चितौड़ भेजा। चण्डपुण्डीर युद्ध में कुशल, पराक्रमी और पृथ्वीराज का अत्यन्त विश्वासपात्र सामन्त था। उसने चित्तौड़ पहुँचकर समरसिंह से सारा वृतान्त कहा। इसके बाद समरसिंह राजपूतों की शक्तिशाली सेना को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ। पृथ्वीराज अनहिलवाड़ा पट्टन के राजा पर आक्रमण करके उसको शिकस्त देना चाहता था। पट्टन के राजा के साथ सम्बन्ध होने के कारण समरसिंह ने वहाँ जाना अपने लिए उचित न समझा। इसलिए पृथ्वीराज अपनी सेना के साथ पट्टन राज्य की तरफ रवाना हुआ और समरसिंह को उसकी सेना के साथ शहाबुद्दीन से युद्ध करने के लिए चित्तौड़ में छोड़ दिया। जिस समय शहाबुद्दीन अपनी विशाल सेना के साथ भारत में पहुँचा, समरसिंह ने अपनी राजपूत सेना के साथ रावी नदी के तट पर उसका मुकाबला किया। दोनों ओर से भयानक युद्ध आरम्भ हुआ। कई दिनों के भीषण संग्राम के बाद भी कोई निर्णय न हुआ। समरसिंह की राजपूत सेना ने गजनी की सेना को आगे बढ़ने न दिया। इसी बीच में अनहिलवाड़ा पट्टन के राजा को पराजित करके पृथ्वीराज अपनी विजयी सेना के साथ चित्तौड़ लौट आया और शहाबुद्दीन के साथ युद्ध करने के लिए वह युद्ध क्षेत्र में पहुँच गया। समरसिंह और पृथ्वीराज के राजपूत सैनिकों ने गजनी की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया। अंत में गजनी की सेना की पराजय हुई। शहाबुद्दीन अपने प्राण लेकर युद्ध से भागा। राजपूतों ने उसके सेनापति को गिरफ्तार कर लिया। इस तरह शहाबुद्दीन के अनेक आक्रमणों को विफल किया गया। नागौरो में जो सम्पत्ति पृथ्वीराज को मिली थी, उसे उसने समरसिंह को देना चाहा । परन्तु समरसिंह ने उसमें से कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया और पृथ्वीराज के बहुत आग्रह करने पर समरसिंह ने अपने सरदारों को आदेश दिया कि वे पृथ्वीराज से मिलने वाली सम्पत्ति को स्वीकार कर लें। इसके बाद कई वर्ष बीत गये। गजनी की सेना की पराजय से जयचंद और उसके साथी राजाओं ने अपना अपमान अनुभव किया। वे लोग पृथ्वीराज को पराजित करने के लिए अनेक प्रकार के उपाय ढूँढ़ने लगे। परिणाम यह हुआ कि इस बार शहाबुद्दीन पहले से अधिक विशाल सेना लेकर भारतवर्ष की ओर फिर रवाना हुआ। उसके इस आक्रमण का समाचार पाकर पृथ्वीराज ने चित्तौड़ सम्वाद भेजा। राजा समरसिंह ने अपनी पूरी शक्तियों के साथ युद्ध की तैयारी की। राज्य का भार अपने छोटे पुत्र कर्णसिंह को सौंपकर वह दिल्ली की तरफ रवाना हुआ। गजनी की सेना भारतवर्ष में पहुँच चुकी थी।कग्गर के किनारे पर दोनों ओर की सेनाओं का सामना हुआ। तीन दिन तक भीषण मारकाट हुई । तीसरे दिन समरसिंह अपने पुत्र कल्याण और तेरह हजार राजपूत सैनिकों तथा सरदारों के साथ युद्ध में मारा गया था। उसकी रानी पृथा ने अपने पुत्र और पति के मारे जाने का समाचार सुना । उसने यह भी सुना कि उसका भाई पृथ्वीराज शत्रुओं के द्वारा कैद कर लिया गया है और दिल्ली तथा चित्तौड़ के राजपूत सैनिकों और सरदारों का संहार हुआ है। उसने कर्णसिंह समरसिंह का छोटा लड़का था। राज्य का अधिकार पाने का अधिकारी बड़ा पुत्र कुम्भकर्ण था। लेकिन समरसिंह के द्वारा राज्याधिकार छोटे भाई को मिलने से बड़ा भाई बहुत अप्रसन्न हुआ और वह अपने पिता के राज्य से निकल कर दक्षिण की ओर चला गया। वहाँ पर विदौर नामक एक हब्शी बादशाह के साथ रहकर उसने एक नये राज्य के प्रतिष्ठा की। 1. 128