राजकुमार कर्णसिंह सम्वत् 1249 सन् 1193 ईसवी में अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। भट्ट ग्रन्थों में लिखा है कि कर्णसिंह के माहुप और राहुप नाम के दो बेटे उत्पन्न हुए थे। लेकिन दूसरे उल्लेखों और आगे की घटनाओं से पता चलता है कि भट्ट ग्रंथों में यह बात भूल से लिख गयी है। राजा समरसिंह के सूर्यमल नाम का एक भाई था। उससे जो लड़का पैदा हुआ था, उसका नाम भरत था। समरसिंह के पुत्र कर्णसिंह का विवाह चौहान वंश की एक राजकुमारी के साथ हुआ था। उस राजकुमारी से माहुप का जन्म हुआ था। कर्णसिंह के मेवाड़ के सिंहासन पर बैठने के बाद राज्य के सरदारों ने भरत के विरुद्ध एक पड़यन्त्र रचा और उसे मेवाड़ राज्य से निकाल दिया। भरत मेवाड़ से निकल कर सिंध देश की तरफ चला गया। वहाँ के अरोर नामक नगर में एक मुसलमान का शासन था। भरत ने अरोर नगर पर अधिकार कर लिया। कुछ दिनों के बाद उसने पूगल के भाटी सरदार की लड़की के साथ विवाह कर लिया। उससे राहुप नाम का लड़का पैदा हुआ। कर्णसिंह अपने भतीजे भरत को बहुत प्यार करता था। गज्य से उसके चले जाने के बाद वह बहुत दुःखी रहने लगा। उसके हृदय में एक संताप इस बात का और था कि उसका बेटा माहुप अयोग्य और निकम्मा था। वह मेवाड़ को छोड़कर अपने ननिहाल में रहा करता था। इन्हीं दोनों बातों के कारण कुछ समय तक दुःखी रहने से कर्णसिंह की मृत्यु हो गयी। राणा कर्णसिंह के एक लड़की थी। उसका विवाह जालौर के सोनगरे वंशी सरदार के साथ हुआ था। उस लड़की से रणघोल नाम का एक लड़का उत्पन्न हुआ। कर्णसिंह की मृत्यु हो चुकी थी। उसका बेटा माहुप बिलकुल अयोग्य था और भरत मेवाड़ राज्य से चला गया था। इसलिये चित्तौड़ के सिंहासन पर रणघोल को बिठाने के लिये सोनगरे सरदार कोशिश करने लगा। समय पाकर उसने चित्तौड़ राज्य के सरदारों पर आक्रमण किया और भयानक विश्वासघात के साथ उसने चित्तौड़ के सिंहासन पर अपने बेटे रणघोल को बिठाने में सफलता पायी। रणघोल के सिंहासन पर बैठने से चितौड़ के राज-परिवार में बड़ा असन्तोष पैदा हुआ। उस असंतोष के फलस्वरूप राज्य-परिवार का एक पुराना भट्ट भरत के पास भेजा गया। उसने वहाँ पहुँच कर भरत को सव वृतान्त सुनाया। भरत ने अपनी सेना के साथ अपने पुत्र राहुप को चित्तौड़ की तरफ रवाना किया। यह समाचार जब सोनगरे के सरदार को मिला तो वह अपनी सेना लेकर राहुप के साथ युद्ध करने को रवाना हुआ। पाली नामक स्थान पर दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई। उस लड़ाई में राहुप की विजय हुई और सोनगरा सरदार पराजित होकर भाग गया। राहुप की इस विजय को सुनकर चित्तौड़ के सरदार और सामन्त बहुत प्रसन्न हुए। वे यह न चाहते थे कि बप्पा रावल के वंशजों के राज्य-सिंहासन पर सोनगरे का सरदार बैठे और वप्पा रावल के वंश का अंत हो जाये । चित्तौड़ के सरदारों और सामन्तों ने राहुप का स्वागत किया और बड़े सम्मान के साथ उसे चित्तौड़ के सिंहासन पर बिठाया। इस प्रकार सम्वत् 1297 सन् 1241 ईसवी में राहुप चित्तौड़ के राज्य का अधिकारी हुआ। इसके कुछ ही दिनों के बाद चित्तौड़ के राजा राहुप ने मुस्लिम सेनापति शमसुद्दीन के साथ युद्ध किया। यह युद्ध नगरकोट के मैदान में हुआ। उस युद्ध में शमसुद्दीन को पराजित करके राहुप विजयी हुआ। राहुप के शासन काल में मेवाड़ में दो परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों का सम्बन्ध गुहिलोत वंश के साथ था। पहला परिवर्तन यह हुआ कि मेवाड़ का राजवंश अब तक 130
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