अध्याय 15 लक्षमण सिंह के शासन से लेकर चित्तौड़ पर खलजी शासन स्थापना तक का इतिहास सम्वत् 1332, सन् 1275 ईसवी में लक्ष्मणसिंह चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा, उस समय उसकी अवस्था छोटी थी। इसलिए उसके चाचा भीमसिंह ने उसके संरक्षक का काम किया और शासन का उत्तरदायित्व अपने हाथों में रखा। राणा भीमसिंह ने सिंहल द्वीप के निवासी चौहान वंशी हमीरशंख की लड़की पद्मिनी के साथ विवाह किया था। पद्मिनी अपने रूप-यौवन के लिए बहुत प्रसिद्ध थी और उसके सौन्दर्य की प्रशंसा बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी। राणा भीमसिंह के शासन काल में अलाउद्दीन ने अपनी तातार सेना को लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया। भट्ट ग्रंथों ने इस वात को स्वीकार किया है कि अलाउद्दीन ने पद्मिनी के कारण ही चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। अपनी शक्तिशाली सेना के द्वारा चित्तौड़ को घेर कर अलाउद्दीन ने इस बात को जाहिर किया कि पद्मिनी को पा लेने के बाद में चित्तौड़ से वापस लौट जाऊंगा । दूसरे ऐतिहासिक ग्रंथों से मालूम होता है कि अपने इस उद्देश्य के लिए वह वहुत दिनों तक चित्तौड़ को घेरे रहा । वहुत समय बीत जाने के बाद जब अलाउद्दीन को अपने उद्देश्य में सफलता न मिली तो उसने घोषणा की कि दर्पण में पद्मिनी के दर्शन करके मैं चित्तौड़ से लौट जाऊंगा। वादशाह अलाउद्दीन की इस प्रकार की वातों को सुनकर राजपूतों का खून ठवल रहा था। इस तरह की बातों को सुनने और सहन करने के लिए वे कदापि तैयार न थे। परन्तु सब के सब खामोश थे। वादशाह अलाउद्दीन के उद्देश्यों को सुनकर राणा भीमसिंह के राज दरवार में कब क्या निर्णय हुआ, इसका कोई उल्लेख किसी ग्रन्थ में नहीं मिलता और जो कुछ मिलता है, वह यह है कि वादशाह अलाउद्दीन ने दर्पण में रानी पद्मिनी को देखने के लिए अपने कुछ शरीर रक्षकों के साथ चित्तौड़ में प्रवेश किया। वहाँ पर इसकी व्यवस्था थी। अलाउद्दीन ने पद्मिनी को दर्पण में देखा और उसके बाद वहाँ से वह लौट पड़ा। इस अवसर पर चित्तौड़ में बादशाह अलाउद्दीन का स्वागत-सत्कार हुआ और उसके लौटने पर राणा भीमसिंह स्वयं कुछ दूर तक उसे विदा करने गया। दोनों ही बातें करते हुए महलों से दूर निकल गये। अचानक समय और संयोग पाकर बादशाह के कुछ सशस्त्र सैनिकों ने राणा पर आक्रमण किया और भीमसिंह को कैद करके अपने शिविर में ले गये। उसके बाद वादशाह की तरफ से चित्तौड़ के राजपूत सरदारों को संदेश मिला कि पद्मिनी को वे 132
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