पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१३६

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चित्तौड़ की सेना का संहार करके बादशाह अलाउद्दीन ने जब अपनी वची हुई सेन के साथ चित्तौड़ में प्रवेश किया तो नगर की अवस्था युद्ध स्थल से भी भयानक हो गई थी। चित्तौड़ की रानियों, राजपूत वालाओं और सुन्दर युवतियों के साथ रानी पद्मिनी ने सुरंग की होली में जिस प्रकार अपने प्राणोत्सर्ग किये, चित्तौड़ के भीतर पहुँच कर वादशाह को यह सब सुनने को मिला। सन् 1303 ईसवी में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर अधिकार किया और वहाँ पर कुछ दिनों तक रह कर वहाँ का शासन जालौर के सोरगरे वंश के मालदेव नामक सरदार को सोनगरे देकर वह दिल्ली चला गया। अलाउद्दीन ने सिंहासन पर बैठते ही 'सिकन्दर सानी' अर्थात् दूसरे सिकन्दर की उपाधि धारण की थी। उसके अत्याचारों से राजस्थान के सैकड़ों नगर मिट्टी में मिल गये थे। अहिलवाड़ा, प्राचीन धार, अवन्ती और देवगढ़ आदि राज्यों में जहाँ सोलंकी, परमार, परिहार और तक्षक राजाओं के शासन थे, अलाउद्दीन ने आक्रमण करके भयानक अत्याचार किये और उनके साथ-साथ जैसलमेर, गागरोन तथा बूंदी राज्यों को भी उजाड़ कर नष्ट कर दिया। जिस समय अलाउद्दीन के भयानक अत्याचारों से राजस्थान के राज्यों का इस प्रकार सर्वनाश हो रहा था, मारवाड़ के राठौड़ और आमेर के कुशवाहा लोग किसी प्रकार अपना अस्तित्व कायम किये हुए थे। ये राठौड़ उस समय परिहार राजाओं के सामन्त थे और स्वतंत्र हो जाने की चेष्टा में थे। लेकिन कुशवाहा लोगों की शक्तियां बहुत क्षीण अवस्था में थीं। चित्तौड़ पर अधिकार करने के बाद अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी के महल को छोड़कर बाकी सभी महलों, शिवालयों और मंदिरों का विध्वंस करा दिया था। चित्तौड़ के पतन के बाद राणा भीमसिंह का लड़का अजयसिंह चित्तौड़ छोड़कर कैलवाड़ा चला गया था। यह कैलवाला मेवाड़ के पश्चिम की तरफ अरावली पर्वत के ऊपर बसा हुआ एक नगर है। वहाँ पर रहकर अजयसिंह चित्तौड़ के भविष्य की चिंता करने लगा। चित्तौड़ के पतन के पहले अजयसिंह ने अपने पिता के मुँह से सुना था कि तुम्हारे बाद अरिसिंह का बेटा चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठेगा। पिता की इस बात को वह भूल न सका। लेकिन उस समय अरिसिंह के बेटे का कहीं पता न था। अरिसिंह के बड़े लड़के का नाम हमीर था। इसी हमीर को चित्तौड़ के सिंहासन पर विठाने के लिए राणा भीमसिंह ने अजयसिंह को आदेश दिया था। इस हमीर के जन्म का वृतान्त भट्ट ग्रन्थों में इस प्रकार लिखा गया है: राणा भीमसिंह का सबसे बड़ा लड़का अरिसिंह अपने कुछ सरदारों के साथ अन्दवा नामक जंगल में शिकार खेलने गया था। वहाँ पर उसने एक सूअर को मारने के लिए बाण चलाया। पर शूकर भाग कर एक जुआर के खेत में चला गया। अपने साथियों के साथ अरिसिंह ने उसका पीछा किया। खेत के मचान पर बैठी हुई एक युवती यह सब देख रही थी। अरिसिंह और उसके साथियों को अपने खेत के करीब देख कर उस युवती ने कहा- "आप थोड़ा-सा रुकें, इस सूअर को मैं आपके पास ला देती हूँ।" अरिसिंह और उसके साथी अपने स्थान पर रुक कर खड़े हो गये। युवती मचान से उतरी और अपने खेत से उसने जुआर का एक पेड़ उखाड़ लिया। जुआर के जो पेड़ खड़े ,वे दस-बारह फीट लम्बे थे। युवती ने उखाड़े हुए पेड़ के एक सिरे को नुकीला बनाया और अपने मचान पर चढ़कर उसने उसको अपने धनुष में चढ़ाकर छिपे हुए सूअर को मारा, जिससे घायल होकर वह मर गया। युवती ने उसे घसीट कर अरिसिंह के पास पहुँचा दिया और फिर वह अपने खेत में लौट आई। 136