युवती के इस पराक्रम को देखकर अरिसिंह और उसके सरदार आश्चर्य में पड़ गये। सभी उस युवती की प्रशंसा करने लगे और फिर धीरे-धीरे वहाँ से चल कर वे पास ही नदी के किनारे पहुँच गये। वहाँ पर खाने की सामग्री तैयार की गई । जहाँ पर वे लोग वैठे थे, कुछ ही फासले पर अरिसिंह का घोड़ा बँधा था। अकस्मात् मिट्टी का एक बड़ा सा ढेला खेत की तरफ से आकर अरिसिंह के घोड़े को लगा। वह तुरन्त गिर गया। यह देख कर अरिसिंह और उसके साथियों ने युवती के खेत की तरफ देखा। वह मिट्टी के ढेले फेंक-फेंक कर खेत में आने वाले पक्षियों को उड़ा रही थी। सभी ने समझ लिया कि इसी युवती के ढेले से घोड़े के चोट लगी है। इसी समय उस युवती को भी यह मालूम हो गया कि मेरे फेंके हुए एक ढेले से शिकारियों के एक घोड़े को चोट आ गई है। इसलिए अपने मचान से उतरकर वह युवती उन लोगों के पास पहुंची और उसने जो बातें की, उनसे उसकी निर्भीकता और सभ्यता को देखकर अरिसिंह और उसके सरदार आश्चर्य करने लगे। वातें करके युवती फिर अपने खेत में चली गई। अरिसिंह और उसके साथी सरदार भी शिकार से लौट आये। लौट आने के बाद भी अरिसिंह उस युवती का स्मरण न भूला । उसने उसका पता लगवाया तो मालूम हुआ कि वह युवती चौहान वंश के एक साधारण राजपूत की लड़की । सहज ही अरिसिंह के हृदय में उसके साथ विवाह करने की इच्छा पैदा हुई। उसने मित्रों से अपने विचार को जाहिर किया और साथ के कई आदमियों को लेकर वह युवती के पिता के पास गया। युवती का वाप बूढ़ा आदमी था उससे अरिसिंह का प्रस्ताव कहा गया। लेकिन वृद्ध पुरुष ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। परन्तु युवती की माता ने अपने पति को उस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए वाध्य किया। इस प्रकार उस युवती का विवाह अरिसिंह के साथ हो गया और उस युवती से जो लड़का पैदा हुआ, उसका नाम हमीर था। चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के अधिकार करने के समय हमीर की अवस्था केवल वारह वर्ष की थी और उस समय तक वह अपने ननिहाल में ही रहता था। इसलिए चित्तौड़ में उसे कोई नहीं जानता था। चित्तौड़ पर अलाउद्दीन का अधिकार होने के पहले ही अजयसिंह कैलवाड़ा के पहाड़ी स्थान पर चला गया था। उसके सामने चित्तौड़ के उद्धार की समस्या थी। इस समस्या को सुलझाने के लिए उसके पास कोई साधन न था। अजयसिंह जहाँ पर जाकर रह रहा था, वहाँ के पहाड़ी सरदारों में मुंजावलैचा नाम का एक सरदार अत्यन्त शूरवीर था। उसके साथ अजयसिंह को शत्रुता हो चुकी थी। कैलवाड़ा शेरो मल्ल प्रान्त का एक हिस्सा था। यहाँ पर मुंजावलैचा ने आक्रमण किया था और अजयसिंह ने उसके साथ युद्ध करके भाले से उसको घायल किया था। उस समय से मुँजा अजयसिंह के लिए बड़ा घातक सिद्ध हो रहा था और उसे पराजित करना अजयसिंह के लिए बहुत आवश्यक हो गया था। ऐसे समय पर अजयसिंह की सहायता उसके पुत्रों के द्वारा होनी चाहिए थी। सुजानसिंह और अजीमसिंह नाम के अजयसिंह के दो बेटे थे। अजीमसिंह बड़ा था, उसकी अवस्था उस समय 16 वर्ष की और सुजानुसिंह की 15 वर्ष की थी। इस अवस्था में राजपूत वालक युद्ध में वहुत-कुछ काम करते हैं। लेकिन अपने दो बेटों से अजयसिंह को मुंजा की शत्रुता कोई सहायता न मिली। इस अवस्था में अजयसिंह ने हमीर की खोज की और उसे मुँजा पर आक्रमण करने को भेजा। अजयसिंह के इस आदेश को मानकर हमीर मुँजा पर आक्रमण करने गया और कुछ ही दिनों में वह उसको मार कर लौटा । उस समय कैलवाड़ा के लोगों ने देखा कि अपने घोड़े पर बैठा हुआ और भाले की नोक पर मुँजा का सिर लिए हुए हमीर आ रहा है। 137
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