हमीर ने मुँजा का सिर लाकर अजयसिंह के सामने रख दिया। अजयसिंह ने हमीर को देख कर अत्यन्त प्रसन्नता और संतोष का अनुभव किया। उसकी समझ में आ गया कि अगर कोई संकट आया तो चित्तौड़ का वास्तविक अधिकारी हमीर ही हो सकता है। अजयसिंह ने संतोप और प्रसन्नता का अनुभव करते हुए हमीर के मुख का चुम्बन किया और मुंजा के कटे हुए सिर के रुधिर से हमीर के ललाट पर राजतिलक कर दिया। अजयसिंह के दोनों लड़कों ने यह सब अपनी आँखों से देखा। उनके ऊपर इन वातों का अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा। कुछ दिनों के बाद कैलवाड़ा में अजीमसिंह की मृत्यु हो गयी और सुजान सिंह अपने पिता से असंतुष्ट होकर दक्षिण की तरफ चला गया और वहाँ पर उसने एक नये वंश की स्थापना की। उसी वंश में शिवाजी नाम का एक बालक उत्पन्न हुआ, जिसने अपने प्रताप से भारत वर्ष में अमिट कीर्ति प्राप्त की और इस देश में मुगलों के शासन को मिटाकर अपना एक विशाल राज्य कायम किया।। सम्वत् 1357 सन् 1301 ईसवी में हमीर को मेवाड़ राज्य का अधिकारी बनाया गया। परन्तु उस समय हमीर के हाथ में कुछ न था और चार ओर शत्रुओं का आधिपत्य था । हमीर साहसी और शूरवीर था। अजयसिंह के राजतिलक करने के बाद हमीर ने अपनी शक्तियों का संचय करना आरम्भ किया। सबसे पहले उसने मुंजाबलैचा के राज्य पर आक्रमण किया और उसके सालिओ नाम के पहाड़ी किले पर अधिकार कर लिया। बादशाह अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर अधिकार करके वहाँ का राज्य प्रबंध सरदार मालदेव को सौंप दिया था और मालदेव दिल्ली की सेना के साथ चित्तौड़ में रहता था। इस वात को हमीर जानता था। वह किसी प्रकार चित्तौड़ का उद्धार करना चाहता था। परन्तु इसके लिए उसके पास न तो सैनिक शक्ति थी और न धन-शक्ति । लेकिन हमीर के हृदय में साहस और विश्वास था। उसने चित्तौड़ के उद्धार के लिए योजना बना डाली और उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए उसने छोटे-छोटे स्थानों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उसने अपने अधिकार में कुछ धन शक्ति और सैन्य शक्ति प्राप्त कर ली। इसके वाद उसने मेवाड़ राज्य में घोषणा की कि जो लोग राणा हमीर को अपना शासक मानने के लिए तैयार हों, वे अपने स्थानों को छोड़कर पश्चिमी भाग के पहाड़ पर आ जाएं। जो ऐसा करेंगे, उनको शत्रुओं में मान लिया जायेगा। इस घोषणा के होते ही लोगों ने अपने घर द्वार छोड़े और अरावली पर्वत के पहाड़ी स्थानों पर पहुँच कर रहना आरम्भ किया। इसके पश्चात् राणा हमीर ने मेवाड़ के नगरों और गाँवों पर आक्रमण करके उनको उजाड़ना शुरू किया। मेवाड़ की प्रजा पहले से ही घोषणा को सुनकर पहाड़ों पर चली गई थी। इसलिए मेवाड़ के नगर और ग्राम आपने आप उजड़े हुए दिखाई देते थे। सम्पूर्ण रास्ते विगड़ कर भयानक हो थे। उन नगरों और ग्रामों में जब शत्रु की ओर से कोई आता तो राणा हमीर के सैनिक उन पर हमला करते और उनको लूट कर जान से मार डालते थे। हमीर की उस नीति से शत्रुओं का संहार आरम्भ हुआ। चित्तौड़ में दिल्ली की जो सेना रहती थी, उसने इन आक्रमणकारियों से बदला लेने के लिए बहुत-कुछ प्रयत्न किया, परन्तु उसे कुछ सफलता न मिली। हमीर की ओर से इस प्रकार के जो व्यवहार किये गये, उनसे न केवल शत्रुओं को आघात पहुँचा, बल्कि मेवाड़ के बहुत से स्थान निर्जन हो गये। भट्ट ग्रन्थों में विस्तार के साथ इस बात का उल्लेख किया गया है कि सुजानसिंह ने दक्षिण में जा कर जो अपना वंश चलाया था, शिवाजी उसी का वंशज था। उस वंश को भट्ट ग्रन्थों में अजयसिंह ने आरम्भ किया है और शिवाजी तक जो नाम आये हैं, वे इस प्रकार है-अजयसिंह, सुजानसिंह, दिलीप जी, शिवाजी, तेरव जी, देवराज, उग्रसेन, माहुल जी, खेल जी, जनक जी, सत्य जी, शम्भू जी और शिवा जी। 1. 138
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