जो भूमि हरे-भरे खेतों से शोभायमान रहा करती थी, वह जंगलों के रूप में बदल गयी। समस्त रास्ते अरक्षित हो गये और वाणिज्य व्यवसाय के स्थान सूने मैदानों के रूप में दिखायी देने लगे। राणा हमीर ने चित्तौड़ के लिए जो योजना बनायी थी, उसके कारण इस प्रकार मेवाड़ का विनाश हुआ। परन्तु इसके सिवा शत्रु को निर्वल करने के लिए उसके पास और कोई साधन न था। वह साहस से काम ले रहा था और अपनी शक्तियों को मजबूत बनाने के लिए बहुत समय तक वह इसी प्रकार के कार्य करता रहा। राणा हमीर ने कैलवाड़ा में ही अपने रहने का स्थान बनाया। यहाँ पर उसने एक विशाल तालाब तैयार करवाया। उसका नाम हमीर का तालाव रखा गया। राणा हमीर के उस स्थान पर रहने के कारण कैलवाड़ा का पहाड़ी स्थान मनुष्यों से भर गया। वहाँ के जो स्थान जंगली, पहाड़ी और सुनसान थे वे अब मनुष्यों के कोलाहल से प्रत्येक समय भरे रहने लगे। कैलवाड़ा के इस नये निर्माण में राणा हमीर ने बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया । वहाँ पर उसने अनेक ऐसे गुप्त मार्ग भी बनवाये; जहाँ पर शत्रु की सेना आकर कभी कोई हानि न पहुँचा सकती थी। लेकिन उसका स्वयं सुरक्षित अवस्था में वहाँ से लौटना बहुत कठिन था । कैलवाड़ा अरावली पर्वत के शिखर पर बसा हुआ है उस शिखर पर ही बहुत दिनों के बाद कमलमीर का प्रसिद्ध दुर्ग बना। इन दिनों में कैलवाड़ा की शोभा बहुत बढ़ गयी। वहाँ के जंगली वृक्षों ने इस शोभा को बढ़ाने में बहुत-कुछ सहायता की । उसके स्थान-स्थान पर पहाड़ी नदियाँ प्रवाहित हो रही थीं और उनके द्वारा प्रकृति का सौन्दर्य कई गुना बढ़ गया था। वहाँ पर खाने के लिए अनेक प्रकार के फलों की अधिकता थी। इस बीच में बसे हुए लोगों ने वहाँ पर खेती का कार्य भी आरम्भ कर दिया था। यहाँ का विस्तार भट्ट ग्रन्थों में पच्चीस कोस लिखा गया है। यह स्थान पृथ्वी से आठ सौ और समुद्र सतह से दो हजार मीटर की ऊंचाई पर है। इस विशाल पर्वत में अगणित ऐसे गुप्त मार्ग है, जिनमें शत्रुओं का प्रवेश बहुत-कुछ असम्भाव है। परन्तु इस समय वहाँ पर जो लोग रहते थे, वे सब वहाँ के गुप्त मार्गों से निकल कर भीलों के राज्य में आते जाते और उनके साथ सहयोग रख कर आवश्यकता के अनुसार उससे लाभ उठाते । अगुनापनीर के भील लोग गुहिलोत राजपूतों के भक्त रहे । उनकी सेवाएं सदा मेवाड़ के राजपूतों को प्राप्त हुईं और आवश्यकता पड़ने पर उन भील लोगों ने अपने प्राणों को उत्सर्ग किया। उनकी इन बातों ने मेवाड़ के राजपूतों को उनके समर्थक बनने का अवसर दिया था। परन्तु बादशाह अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का सर्वनाश करने के साथ-साथ इन भीलों के विनाश का भी काम किया था। राणा हमीर जिन दिनों में चित्तौड़ के उद्धार के लिए चिंतित हो रहा था, चित्तौड़ के राजा मालदेव के यहाँ से उन्हीं दिनों में एक समाचार आया और उसके द्वारा मालदेव ने हमीर के साथ अपनी लड़की का विवाह करने के सम्बन्ध में विचार प्रकट किया। राणा हमीर और उसके शुभचिंतक राजा मालदेव के इस प्रस्ताव का रहस्य समझ न सके । राणा हमीर के मन्त्रियों ने उस प्रस्ताव पर अनेक प्रकार के संदेह किये और उन लोगों ने चाहा कि राणा हमीर राजा मालदेव की प्रार्थना को अस्वीकार कर दें। मन्त्रियों ने राणा हमीर से सभी प्रकार की बातें की। परन्तु मन्त्रियों के अनुसार हमीर विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार न कर सका । उसने अपने शुभचिन्तक मंत्रियों को समझाते हुए कहा - "मैं भी इस बात को समझता हूँ कि राजा मालदेव के साथ मेरे सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं। वह हमारे शत्रु बादशाह अलाउद्दीन की तरफ से हमारे पूर्वजों के राज्य चित्तौड़ पर 139
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