- शासन कर रहा है। इस दशा में हमारा और मालदेव का एक होना अथवा सम्बन्धी होना कैसे सम्भव हो सकता है। इसलिये सहज ही इस बात को समझा जा सकता है कि राजा मालदेव ने मेरे विरूद्ध के लिए किसी प्रकार का पड़यंत्र रचा होगा। परन्तु उससे सब को घवराने और चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। कभी-कभी भयानक विपदाओं में उज्जवल भविष्य का संदेश छिपा रहता है। मालदेव का कुछ भी अभिप्राय हो, हमें उससे घवराने की आवश्यकता नहीं है। घबराना निर्वलों का कार्य है। कठिनाइयों का स्वागत करना और हँस-हँसकर विपदाओं का सामना करना शूरवीरों का कार्य होता है। महान सफलताओं की प्राप्ति भीषण कठिनाइयों को पार करने के वाद होती है। इस सत्य के आधार पर राजा मालदेव के प्रस्ताव को स्वीकार करना ही उचित है।" राणा हमीर के मुख से इन साहसपूर्ण वातों को सुनकर उसके मन्त्री कुछ विरोध न कर सके। विवाह का निश्चय हो गया। उसकी तैयारियां भी हो चुकी थी। राणा हमीर पाँच सौ शूरवीर सैनिक सवारों को साथ में लेकर विवाह के लिए चित्तौड़ की तरफ रवाना हुआ। चित्तौड़ के निकट आने पर नगर का विशाल फाटक दिखाई पड़ा। पास पहुँचने पर मालदेव की तरफ से पाँच आदमियों ने स्वागत किया। ये पाँचों मालदेव के बेटे थे। परन्तु वहाँ पर राणा हमीर को विवाह की कोई तैयारी दिखाई न पड़ी। राणा हमीर अपने सैनिकों के साथ चित्तौड़ के भीतर पहुँच गया। उसने वहाँ पहुँचकर अपने गम्भीर नेत्रों से इधर-उधर देखा, अपने जीवन में चित्तौड़ के उसने पहले पहल दर्शन किये थे। उसने वहाँ के विशाल भवनों और राजमहलों को देखा। उसी समय अपने पुत्र बनवीर के साथ मालदेव ने आकर राणा हमीर का सत्कार किया। उसके बाद हमीर राज प्रासाद के भीतर उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ विवाह का मण्डप बनाया गया था। परन्तु वहाँ पर भी विवाह की तैयारी उसे दिखाई न पड़ी। इस समय उसके हृदय में आशंकायें उत्पन्न हुईं। परन्तु सचेत और सावधान होकर उसने साहस से काम लिया। इसी समय मालदेव ने अपनी लड़की को लाकर हमीर के सामने खड़ा कर दिया। इस समय भी किसी वैवाहिक प्रणाली का सम्पादन न हुआ। हमीर ने लड़की का हाथ पकड़ा। दोनों की गांठें वाँधी गयीं और विवाह का कार्य सम्पन्न हो गया। पुरानी प्रथा के अनुसार वर और कन्या दोनों को प्रासाद के एकान्त में पहुँचाया गया। मालदेव की लड़की सयानी थी। उसने राणा हमीर की तरफ देखकर उसकी चिन्ताओं को अनुभव किया। इसके वाद उसने नम्रता के साथ कहा- “आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें। वास्तव में मैं विधवा हूँ। छोटी अवस्था में मेरा विवाह हुआ था। अपने उस विवाह की कोई बात मैं नहीं जानती। अपने पति को मैने देखा भी नहीं था। जिसके साथ मेरा विवाह हुआ था, कुछ ही दिनों के बाद वह लड़ाई में मारा गया था और उसके बाद में विधवा मानी गयो।” मालदेव की लड़की के सुख से इन बातों को सुनकर राणा हमीर ने उसकी तरफ देखा और इस बात को अनुभव किया कि राजा मालदेव ने अपनी विधवा लड़की के साथ विवाह करके मेरा अपमान किया है। इसी समय उसने लड़की के नेत्रों में आंसू देखे। वह सब कुछ भूल गया और उसको संतोष देने के लिए हुमीर ने कुछ बातें उससे कहीं। उन वातों में यह भी कहा कि तुम्हारे साथ विवाह होने से मैं किसी प्रकार का खेद नहीं करता। मेरे सामने चित्तौड़ की गुलामी का प्रश्न है, जिसके लिए मैं बहुत दिनों से चिन्तित हूँ। राणा हमीर के मुख से इस बात को सुनकर उसका मुख मण्डल प्रसन्न हो उठा। उसने गम्भीरता के साथ कहा-“मैं समझती हूँ। मैं इस विषय आपकी शायद कुछ सहायता कर सकूँगी।" 140
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