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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१४१

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यह कहकर उसने संक्षेप में राणा हमीर के साथ कुछ परामर्श किया और उसी के आधार पर हमीर ने मालदेव से दहेज में जलधर नाम का सरदार माँगा। मालदेव ने इसे स्वीकार किया। विवाह कार्य सम्पन्न हो जाने के वाद हमीर अपनी पत्नी के साथ जलधर को लेकर कैलवाड़ा लौट आया। कुछ दिनों तक हमीर अपनी पत्नी के साथ चित्तौड़ के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के परामर्श करता रहा। इन्हीं दिनों में उसकी पत्नी गर्भवती हुई। उससे लड़का पैदा हुआ, उसका नाम क्षेत्रसिंह रखा गया। इसकी प्रसन्नता में राजा मालदेव ने राणा हमीर को अपना सम्पूर्ण पहाड़ी इलाका दे दिया। अपनी अवस्था के बारह महीने बीत जाने पर क्षेत्रसिंह अपनी माता के साथ चित्तौड़ आया। उन दिनों में मालदेव अपनी सेना लेकर मादेरिया के मीर लोगों का दमन करने के लिए चित्तौड़ से चला गया था। क्षेत्रसिंह की माँ ने राणा हमीर के परामर्श के अनुसार अवसर पाकर चित्तौड़ के सरदारों के साथ वातें कीं और हमीर के पास संदेश भेजा। तुरन्त राणा हमीर चित्तौड़ के लिए रवाना हुआ। वहाँ पहुँचते ही उसका विरोध किया गया। परन्तु राणा हमीर को कोई रोक न सका। राणा हमीर ने अपने सैनिकों के बल पर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। मालदेव मीर लोगों पर विजय प्राप्त करके अपनी सेना के साथ चित्तौड़ वापस आया। वहाँ पर उसने आकर सब हाल सुना । चित्तौड़ के सामन्त और सरदार राणा हमीर के साथ मिल गये थे। इस अवस्था में निराश होकर वह दिल्ली की तरफ रवाना हुआ। वादशाह अलाउद्दीन के बाद मोहम्मद खिलजी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। मालदेव ने चित्तौड़ का सव हाल उसको सुनाया। मोहम्मद खिलजी अपनी फौज लेकर मालदेव के साथ चित्तौड़ की तरफ चला। राणा हमीर ने अपनी सेना लेकर दिल्ली की फौज का सामना किया। दोनों ओर से भीषण संग्राम हुआ । युद्ध में मालदेव का लड़का हरीसिंह मारा गया । अंत में राणा हमीर की विजय हुई। मोहम्मद खिलजी कैद करके चित्तौड़ में रखा गया। तीन महीने के बाद बादशाह ने अजमेर, रणथम्भौर, नागौर, शुआ और शिवपुर के इलाकों के साथ एक सौ हाथी और पचास लाख रुपये देकर चित्तौड़ की जेल से मुक्ति पायी। राजा मालदेव की एक न चली। यह देखकर उसके बड़े लड़के बनवीर ने राणा हमीर की अधीनता को स्वीकार कर लिया। राणा हमीर ने नीमच, जीरण, रतनपुर और केवारा के इलाके बनवीर को दे दिये और उससे कहा- “जो इलाके तुमको दिये गये हैं, उनसे तुम अपना और अपने परिवार का जीवन निर्वाह करो। अभी तक तुम यवनों की दासता में थे, अब अपने ही देश और वंश वालों की दासता में तुमको रहना पड़ेगा।" राणा हमीर की इन वातों को सुनकर बनवीर प्रभावित हुआ । मेवाड़ राज्य का भक्त बनकर रहने के लिए उसने निश्चय किया। इसके कुछ ही दिनों बाद उसने भिनसोर पर आक्रमण किया और उसे जीतकर मेवाड़ राज्य में मिला दिया। यहीं से वनवीर पर राणा हमीर का विश्वास कायम हुआ। यवनों की अधीनता से चित्तौड़ का उद्धार हुआ और राजस्थान के सभी राजा राणा हमीर का सम्मान करने लगे। राणा हमीर ने इसके बाद लगातार उन्नति की और थोड़े ही दिनों में वह भारतवर्ष का एक पराक्रमी राजा बन गया। मुस्लिम सेनाओं के आक्रमण से जो नगर और ग्राम वरवाद हो गये थे, राणा हमीर ने उनका फिर से निर्माण किया। उसका प्रभाव सम्पूर्ण राजस्थान में काम करने लगा और मारवाड़, जयपुर, बूंदी, ग्वालियर, चन्देरी, रायसीन, सीकरी, कालपी तथा आवू आदि राज्यों के राजाओं ने राणा हमीर की अधीनता स्वीकार की । राणा हमीर ने बड़ी वुद्धिमानी के साथ मेवाड़ राज्य का फिर से निर्माण किया। 141