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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१४२

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राणा हमीर की मृत्यु के बाद उसका बड़ा लड़का क्षेत्रसिंह सम्वत् 1421 सन् 1365 ईसवी में चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा । वह अपने पिता के समान सुयोग्य और बुद्धिमान था। अपने शासन काल में उसने अजमेर और जहाजपुर में आक्रमण करके विजय प्राप्त की और माण्डलगढ़ देसूरी एवम् चम्पन को अपने राज्य में शामिल कर लिया। दिल्ली के किसी तुगलक बादशाह हुमायूँ के साथ बकरौल नामक स्थान पर उसने एक युद्ध किया और दिल्ली की विशाल सेना को उसने पराजित किया ।1 मेवाड़ के अन्तर्गत बनेडा नामक एक स्थान है। उसके हाड़ा वंशीय एक सरदार की लड़की से क्षेत्रसिंह की सगाई हुई थी। परन्तु विवाह के पहले ही उस सरदार ने धोखे से क्षेत्रसिंह को मार डाला। क्यों मार डाला, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। क्षेत्रसिंह की मृत्यु के बाद राणा लाखा सम्वत् 1339 सन् 1383 ईसवी में चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठा। इसके कुछ ही समय के बाद मेरवाड़ा पर आक्रमण कर उसने उसको पराजित किया और उसके प्रसिद्ध दुर्ग विराटगढ़ को बरबाद करके उसके स्थान पर बदनौर के मशहूर दुर्ग की स्थापना की। उसके शासन काल में मेवाड़ की बहुत उन्नति हुई। राणा लाखा ने साखला वंश के बहुत से राजपूतों को-जो आमेर के अन्तर्गत नगराचल नामक स्थान में रहते थे, पराजित किया था। दिल्ली के बादशाह मोहम्मदशाह लोदी के साथ भी उसने युद्ध किया और बिदनौर नामक स्थान पर उसने बारशाह की सेना को पराजित किया। उसके शासन काल में म्लेच्छों ने गया पर चढ़ाई की थी। उनसे युद्ध करने के लिए अपनी सेना लेकर राणा लाखा वहाँ पहुँचा था और युद्ध करते हुए वह मारा गया। उसके शासन काल में मेवाड़ में शिल्प की बहुत उन्नति हुई । कितने ही सुन्दर तालाबों को बनवा कर उसने अपने राज्य की शोभा बढ़ाई थी। इनके सिवा उसने कितने ही मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें ब्रह्माजी का मंदिर आज तक प्रसिद्ध है। राणा लाखा के बहुत-से लड़के पैदा हुए, जिन्होंने राजस्थान के भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाकर अपने नये-नये वंश चलाये। उनमें लूमावत और दूलावत नाम के वंश अधिक प्रसिद्ध हैं। राणा लाखा के बड़े लड़के का नाम चूंडा था। अपने पिता के राज्य का वही अधिकारी था। लेकिन वह सिंहासन पर नहीं बैठा। इसका कारण और वर्णन आगामी परिच्छेद में किया जायेगा। 1. इस हुमायूँ के सम्बन्ध में पाठक संदेह कर सकते हैं। इसलिए कि भारतवर्ष के इतिहास में सन् 1365 ईसवी से लेकर सन् 1383 ईसवी तक किसी हूमायूँ का नाम नहीं पाया जाता । बाबर का वंशज हुमायूँ सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। एलफिन्सटन ने अपने लिखे हुए भारत के इतिहास में दिल्ली के बादशाह नसीरुद्दीन तुगलक के बेटे हुमायूँ का उल्लेख किया है। वह अपने पिता के बाद सन् 1394 ईसवी में सिहासन पर बैठा था। जहाँ तक सम्भव है, टाड साहब ने यहाँ पर उसी हुमायूँ का उल्लेख किया है । यद्यपि उसके शासनकाल का समय भी क्षेत्रसिंह के शासनकाल से दूर पड़ जाता है । परन्तु सिंहासन पर बैठने के पहले उसका युद्ध में आना सम्भव हो सकता है। 142