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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१५३

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। उपस्थित था। उसने मीणा लोगों के उपद्रवों को. सुना । बालियों में रहकर उसने अपने कुछ साथी बना लिये थे। उसने मन ही मन उपद्रव करने वाले मीणा लोगों के दमन करने का निश्चय किया। उन मीणा लोगों का एक राजा था और उस राजा के यहाँ बहुत से राजपूत नौकरी करते थे। किसी प्रकार पृथ्वीराज उन राजपूतों से मिला और उनको भड़काकर मीणा लोगों पर उसने राजपूतों का आक्रमण करवा दिया। राजपूतों और मीणा लोगों की लडाईं ने भयानक रूप धारण किया। मीणा लोगों का राजा घबराकर अपने राज्य से भागा। पृथ्वीराज ने उसको पकड़ लिया और अपने भाले से उसको मार डाला। इसके बाद पृथ्वीराज ने अपने साथ के सैनिकों और मीणा लोगों के राजा के यहाँ रहने वाले राजपूतों की सहायता से पहाड़ी मीणा लोगों पर भयानक अत्याचार किये और बड़ी निर्दयता के साथ उनका सर्वनाश करने लगा। वहुत से मीणा लोगों मारे गये और जो बाकी रहे, उनमें से भी कुछ भाग गये। इसके बाद पृथ्वीराज ने मीणा लोगों के सभी पहाड़ी इलाकों पर तेसौड़ी नामक दुर्ग को छोड़कर अधिकार कर लिया। उन दिनों में उस दुर्ग पर चौहान माद्रेचा लोगों का शासन था। मीणा लोगों के राज्य पर अधिकार करके पृथ्वीराज ने वहाँ का अधिकार सद्दा नामक एक सोलंकी राजपूत को सौंप दिया। उस सोलंकी राजपूत ने उसके बाद सोदगढ़ पर भी अपना अधिकार कर लिया। सद्दा का विवाह माद्वैचा चौहान की लड़की के साथ हुआ था। वह अंत में पृथ्वीराज से मिल गया। मीणा लोगों के राज्य में जो कुछ पृथ्वीराज ने किया, उसका समाचार राणा रायमल ने सुना। उसने प्रसन्न होकर पृथ्वीराज को चित्तौड़ में बुला लिया। राज्य में लौट आने पर जयमल के मारे जाने की घटना को उसने सुना, जो इस प्रकार थी-अरावली पर्वत के नीचे वदनौर नामक नगर में शवसुरतान रहता था। ताराबाई नाम की उसकी एक सुन्दर लड़की थी। वह अपनी लड़की को बहुत प्यार करता था। किसी समय वह अपने राज्य का अधिकारी था, परन्तु उसके वे दिन अब न रहे थे। उसके राज्य पर मुसलमानों का शासन हो गया था। सुरतान ने इस बात की घोषणा की कि जो हमारे राज्य का उद्धार करेगा, उसी के साथ मैं अपनी लड़की का विवाह करूँगा। राजकुमार जयमल ने भी सुरतान की घोषणा को सुना और वह ताराबाई के साथ विवाह की अभिलाषा से वदनौर आया। उसने ताराबाई के साथ अशिष्ट और असंगत व्यवहार किया, जिससे क्रोध में आकर सूरतान ने जयमल को मार डाला। चित्तौड़ में आकर और कुछ दिनों तक रह कर पृथ्वीराज ने ताराबाई के सौंदर्य की प्रशंसा सुनी । उसके मन में सहज ही उसको देखने की अभिलाषा पैदा हुई । वह बदनौर के लिये रवाना हुआ और वहाँ जाकर उसने ताराबाई के पिता सुरतान से भेंट की। मीणों के राज्य को जीत कर अधिकार में कर लेने के बाद पृथ्वीराज का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया था। सुरतान ने उसका बड़ा सम्मान किया। पृथ्वीराज ने टोड़ा के अफगानों को पराजित करके सुरतान के राज्य का उद्धार करने की प्रतिज्ञा की और इसी आधार पर सुरतान ने पृथ्वीराज के साथ ताराबाई के विवाह का निश्चय किया। पृथ्वीराज ने अपने निश्चय के अनुसार चुने हुए पाँच सौ सवार सैनिकों को तैयार किया और उनको साथ में लेकर वह की तरफ चला। साथ में तारावाई को लेकर सुरतान भी रवाना हुआ। टोड़ा में पहुँचकर पृथ्वीराज ने देखा कि मोहर्रम के दिन हैं। बादशाह के महल के पास ताजिया पहुंचा था और बादशाह उसमें शामिल होने के लिए तैयार हो रहा था। इसी समय पृथ्वीराज ने अपने वाणों से उसको मारा,वह गिर गया। 153