बादशाह के गिरते ही वहाँ के मुसलमानों में हाहाकार मच गया। पृथ्वीराज के सैनिकों ने मार-काट आरंभ कर दी। लड़ाक मुसलमानों ने एक साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण किया। कुछ समय तक दोनों तरफ से भीषण संग्राम हुआ। अंत में मुसलमानों का साहस छूट गया। राजपूतों के द्वारा बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गये और अंत में टोड़ा से अफगान बादशाह का शासन हट गया। राज्य का उतार होने से सुरतान को बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने अपनी लड़की ताराबाई का विवाह पृथ्वीराज के साथ कर दिया। पृथ्वीराज शांतिपूर्वक चित्तौड़ में रहने लगा। जयमल मर चुका था और साँगा का कुछ पता न था । पृथ्वीराज जब अपने पिता के राज्य से चला गया था तो सूरजमल आराम के साथ चित्तौड़ में रहा करता था। पृथ्वीराज के लौट आने पर उसके मन के भाव विगड़ने लगे। चित्तौड़ आ जाने पर इस बात का रहस्य खुला कि राणा रायमल के तीनों लड़कों को आपस में लड़ाने वाला यही सूरजमल था। वह स्वयं मेवाड़ राज्य का उत्तराधिकारी बनना चाहता था और साँगा के रहते हुए इस बात की किसी प्रकार सम्भावना न थी। इसके लिये उसने एक भयानक पड़यंत्र की रचना की थी और उस पड़यंत्र के द्वारा उसने राणा के तीनों पुत्रों को अलग-अलग ऐसा समझा दिया, जिससे वे तीनों ही एक दूसरे के प्राण घातक शत्रु हो गये थे। पृथ्वीराज के लौटकर चित्तौड़ में आ जाने पर सूरजमल की आशाएं फिर नष्ट हो गई। वह समझता था कि साँगा और पृथ्वीराज के लौट कर आने की उम्मीद नहीं है और जयमल की मृत्यु हो चुकी है। ऐसी दशा में राणा रायमल के मर जाने पर चित्तौड़ राज्य का उत्तराधिकारी मेरे सिवा कोई नहीं हो सकता । पृथ्वीराज के आ जाने पर उसका यह विश्वास समाप्त हो गया। सूरजमल अव फिर किसी नये षड़यंत्र की खोज में रहने लगा और जब उसे कुछ न सूझा तो वह सारंगदेव नाम के एक राजपूत के पास गया। दोनों में खूब वातें हुई। इसके बाद दोनों मिलकर मालवा के बादशाह मुजफ्फर के पास पहुंचे और दोनों ने मिलकर चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए उससे सैनिक सहायता माँगी। मालवा के बादशाह ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए अपनी फौज भेजी। उस फौज को लेकर सूरजमल और सारंग देव ने मेवाड़ के दक्षिणी इलाकों पर आक्रमण किया और वहाँ के साद्री, वाटुरी और नाई से लेकर नीमच तक सभी स्थानों पर अधिकार करके चित्तौड़ की तरफ बढ़ने लगे। इस आक्रमण का समाचार राणा रायमल को मिला । वह चित्तौड़ की एक सेना लेकर निकला और राज्य के समीप बहती हुई गम्भीरी नदी के तट पर राणा ने वादशाह की फौज का सामना किया। युद्ध आरम्भ हो गया। कुछ समय तक लगातार युद्ध होने के कारण राणा के शरीर में वाईस घाव लगे। उनसे अविरल रक्त प्रवाहित होने लगा। राणा की बुढापे की अवस्था थी । लगातार युद्ध करने और जख्मी हो जाने के कारण अव उसका शरीर शिथिल पड़ने लगा। वह युद्ध में निराश हो रहा था। इसी समय अपने एक हजार सवार सैनिकों के साथ पृथ्वीराज युद्ध क्षेत्र में आ गया और राणा को युद्ध से बाहर निकालकर वह स्वयं युद्ध करने लगा। पृथ्वीराज की मार से वादशाह की फौज के बहुत से आदमी मारे गये और सूरजमल स्वयं जख्मी हुआ। इसके बाद युद्ध बन्द हुआ और दोनों सेनायें अपने-अपने शिविरों में पहुँच गईं। दूसरे दिन सवेरे फिर युद्ध आरम्भ हुआ और दोनों तरफ से भीपण मार-काट हुई। सारंग देव की मार से चित्तौड़ के बहुत से राजपूत मारे गये । परन्तु वह स्वयं जख्मी हुआ। 154
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