सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पृथ्वीराज की तलवार से सारंग देव के शरीर में पैंतीस जख्म हो गये। पृथ्वीराज के शरीर में बहुत-सी चोटें लगी। अन्त में मालवा की फौज युद्ध से हट कर भागी और पृथ्वीराज विजयी होकर चित्तौड़ वापस लौटा। पराजित होने के बाद भी सूरजमल निराश नहीं हुआ। मेवाड़ का राज्य प्राप्त करने के लिए वह फिर से युद्ध की तैयारी करता रहा । परन्तु उसकी आशा पूर्ण नहीं हुई। उसने कई बार चित्तौड़ की सेना के साथ युद्ध किया और अंत तक पराजित होता रहा। मालवा की फौज के साथ सारंग देव और सूरजमल को पराजित करके पृथ्वीराज कुछ दिनों तक चित्तौड़ में रहा। उसके बाद अपनी पत्नी ताराबाई के साथ रहने के लिए वह कमलमीर के दुर्ग में चला गया। सूरजमल के षड़यंत्र को अब वह खूब समझ गया था। सांगा को देखने की उसकी इच्छा हो रही थी। इसलिए कमलमीर के दुर्ग में रह कर उसने साँगा का पता लगाना आरम्भ किया। इन्हीं दिनों में पृथ्वीराज के पास उसकी बहन का एक पत्र आया। उसकी यह वहन सिरोही के राजा को ब्याही गई थी। उसकी बहन के साथ उसके पति का व्यवहार अच्छा न था। वह प्रत्येक समय मदिरा पीकर नशे में रहता था और अपनी स्त्री को बुरी तरह से तकलीफें दिया करता था। पृथ्वीराज की बहन अपने पति के व्यवहारों से बहुत ऊब गई थी। उस दशा में उसने यह पत्र पृथ्वीराज के पास भेजा था। पत्र को पाने और पढ़ने के बाद पृथ्वीराज अपनी बहन के पास गया। उसने अपने नेत्रों से अपनी बहन का बुरा हाल देखा। जिन परिस्थितियों में उसने अपनी बहन को पाया, उससे उसको बहुत वेदना पहुँची। अपने बहनोई सिरोही के राजा के साथ उसने बड़ी कठोरता के साथ बातें की और अन्त में उसके क्षमा माँगने पर पृथ्वीराज ने अपना व्यवहार उसके साथ बदल दिया। उसके बाद पृथ्वीराज वहाँ पर पाँच दिन तक रहा। छठे दिन चलने के समय पृथ्वीराज का बहनोई वड़े प्रेम से पृथ्वीराज से मिला और रास्ते में खाने के लिए उसुने कुछ लड्डू दिये। वहनोई से विदा होकर पृथ्वीराज लौट आया। कमलमीर के निकट पहुँचकर भूख के कारण उसने बहनोई के दिये हुए लड्डू खाये । खाते ही उसका सिर घूमने लगा। एकाएक उसका हृदय छटपटाने लगा। ताराबाई उस समय कमलमीर के दुर्ग में थी। पृथ्वीराज को वंह इस समय देख भी न सकी थी और उसके पहुँचने के पहले ही पृथ्वीराज की मृत्यु हो गयी। ताराबाई उसके मृत शरीर को लेकर चिता पर बैठी पृथ्वीराज की मृत्यु से रायमल पर वज्रपात हुआ। साँगा के अभाव में पृथ्वीराज को पाकर उसको सन्तोष मिला था। पृथ्वीराज की मृत्यु को वह सह न सका । पृथ्वीराज के मरने के बाद राणा रायमल की भी मृत्यु हो गई। 155