दिल्ली विजय करने के बाद एक वर्ष तक बाबर ने दिल्ली में विश्राम किया। इन दिनों में उसने भारतवर्ष के राजाओं का अध्ययन किया। चित्तौड़ के सिंहासन पर उस समय राणा संग्रामसिंह था। वह स्वयं शूरवीर था और मेवाड़ राज्य की शक्तियाँ इन दिनों में विशाल हो चुकी थीं। लेकिन इस देश के राजाओं की फूट और ईर्ष्या उन दिनों में भी अपना काम कर रही थीं। वावर ने भारत की इस राजनीतिक अवस्था का भली प्रकार अध्ययन किया और उसके बाद उसने राणा संग्रामसिंह के साथ युद्ध करने का निश्चय किया। वावर दिल्ली का राज्य प्राप्त करके बड़ी बुद्धिमानी के साथ सैनिक शक्तियों का संगठन करता रहा और उसके बाद पन्द्रह सौ सैनिकों की एक सेना लेकर संग्रामसिंह से युद्ध करने के लिए वह आगरा और सीकरी से रवाना हुआ। यह समाचार पाते ही राणा संग्रामसिंह ने युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी। राजस्थान के लगभग सभी राजा और मेवाड़ राज्य के सामन्त अपनी सेनायें लेकर चित्तौड़ में पहुँच गये। सब के साथ राणा संग्रामसिंह वावर से युद्ध करने के लिए चित्तौड़ से आगे बढ़ा। कार्तिक महीने की पंचमी सम्वत् 1584 सन् 1528 ईसवी को राजपूत सेना ने बयाना पहुँच कर वावर की सेना का रास्ता रोका और खनुआ नामक स्थान के मैदान में संग्रामसिंह की सेना ने बादशाह बावर की फौज का सामना किया। दोनों ओर से संग्राम आरम्भ हो गया। राजपूतों की विशाल सेना के द्वारा बाबर की फौज करीव-करीब सब काट डाली गयी। यह अवस्था बाबर के लिए भयंकर हो उठी लेकिन बाबर जरा भी हतोत्साहित न हुआ । उसकी सहायता के लिए एक दूसरी नयी फौज युद्ध के मैदान में पहुँच गयी। राजपूतों के साथ उसने भी युद्ध किया। बावर की इस नयी फौज के भी बहुत से सैनिक मारे गये। यह देखकर अपने बचे हुए सिपाहियों के साथ बाबर उस स्थान को लौट गया, जहाँ पर उसने अपनी फौज का शिविर कायम किया था। राजपूतों की शक्तिशाली सेना के सामने बाबर की फौज बुरी तरह से पराजित हुई। परन्तु इससे वह जरा भी भयभीत न हुआ। उसने अपने शिविर के आस-पास गहरी खाइयाँ... खुदवा दी और उनके किनारों पर शत्रु की रोक के लिए तोपें लगा कर उनको जंजीरों से बंधवा दिया। इसके बाद अपने शिविर में पन्द्रह रोज तक चुपचाप बैठा रहा। राजपूतों की विशाल सेना के द्वारा जिस प्रकार वावर के सैनिक मारे गये और दो वार वावर संग्रामसिंह के मुकाबले में पराजित हो चुका था, उसके कारण बाबर की सेना का साहस विलकुल शिथिल पड़ गया । इस शिथिलता को दूर करने के लिए बाबर ने तरह-तरह के प्रयल किये, लेकिन उसके सैनिकों में युद्ध का उत्साह न पैदा हुआ। यह देखकर वावर ने अपने सैनिकों के सामने एक ओजस्वी भाषण दिया। इसके वाद उसने अत्यन्त जोशीले शब्दों में अपने सैनिकों को उत्साहित करते हुए कहा - "तुम सब लोग कुरान को अपने हाथ में लेकर इस बात की अहद करो कि इस लड़ाई को हम या तो फतह करेंगे अथवा अपने आपको कुर्बान कर देंगे।" बादशाह बाबर के मुँह से इन शब्दों को सुनकर उसके सभी सैनिक जोश में आ गये और युद्ध करने के लिए तैयार हो गये। वावर इस प्रकार के अवसर की प्रतीक्षा में था। . जिस समय वह अपनी सेना को लेकर दो मील आगे बढ़ा, उसी समय राजपूतों की सेना ने सामने आकर युद्ध आरम्भ कर दिया। राजपूतों की शक्तियों का अनुमान लगा कर बावर ने फिर युद्ध रोक दिया। चित्तौड़ की सेना फिर वापस चली गयी। 1. बाबरनामा नामक ग्रन्थ में इस युद्ध का समय 11 फरवरी सन् 1527 ईसवी लिखा गया है। 159
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