सिक्का ढलवा कर निकलवाया, जिस पर अंकित था- “सिक्का ढाला गया मुहम्मदाबाद उर्फ उदयपुर में,जो जीता जा चुका है।" इसी दौरान अकबर ने रायसिंह को सिरोही पर आक्रमण करने हेतु आदेश दिया, जहां राव सुरताण देवड़ा ने अभी तक मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की थी। रायसिंह ने सिरोही पर कब्जा करके सुरताण को आबू में जाकर घेरा । अन्ततः सुरताण ने अधीनता स्वीकार कर ली और मुगल दरबार में हाजिर हो गया। इसी प्रकार बंदी पर अधिकार करने के लिये जाइनखान कोका को 30 मार्च,1577 ई. को भेजा ! राव सुरजण (दूदा का पिता) और भोज दृदा का चाचा) अकबर के दरवार में उपस्थित हो गये, किन्तु दूदा ने मुगल सेना का मुकाबला किया। दूदा की हार हुई और वह पहाड़ी इलाके में प्रताप के पास चला गया परन्तु उसने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने भोज को बूंदी का राजा बना दिया। इस भांति अकवर सात महीने के मेवाड़ विरोधी अभियान से असफल होकर 12 मई 1577 ई. को फतहपुर सीकरी लौटा। अकबर के उदयपुर से प्रस्थान करते ही राणा प्रताप ने पुनः गोगुंदा क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। कुम्भलगढ़ अभी तक प्रताप का प्रधान केन्द्र था, तथापि इस समय तक उसने राजपरिवार तथा अन्य सामंतों एवं सहयोगियों के परिजनों के निवास हेतु तथा अस्थायी राजधानी की दृष्टि से भोमट के घने वनीय भाग में आवरगढ़-कमलनाथ पर्वत पर गढ़ एवं भवनों का निर्माण करवा लिया था। गोगुंदा पर होने वाले आक्रमणों के समय आवरगढ़ ही प्रधान रक्षा-स्थल रहता था। उदयपुर को छोड़कर मेवाड़ के शेष सम्पूर्ण पर्वतीय भाग पर पुनः अधिकार करके प्रताप मेवाड़ के मैदानी भाग में विभिन्न मुगल थानों पर धावा बोलने, ठनको लूटने और 'जमीन फूंकने की नीति के अन्तर्गत मैदानी इलाके की फसलों आदि को वर्वाद करने की कार्यवाही करने लगा, जिससे मुगल सेना का मेवाड़ के मैदानी इलाके में भी टिकना दूभर हो गया। 3. शाहबाज खाँ का प्रथम आक्रमण जब अकबर को प्रताप की नवीन सफल सैनिक कार्यवाहियों का पता चला तो उसकी साम्राज्यी शक्ति की प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा। उसने पुनः अपने सर्वाधिक अनुभवी एवं योग्य सेनापतियों को मेवाड़ अभियान पर लगाया। इस बार मीरवक्शी शाहबाज खाँ को मुगल सेना का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त कर भगवंतदास, मानसिंह, पयंद खाँ मुगल, सैयद कासिम, ठलगअसतं तुर्कमान आदि को बड़ी सेना के साथ प्रताप की शक्ति को सम्पूर्णतः नष्ट करने के आदेश देकर अक्टूवर 1577 ई. में अजमेर से मेवाड़ की ओर रवाना किया। शाहबाज खाँ की सैनिक टुकड़ियाँ भोमट के घने वनीय भाग में प्रवेश कर गईं और गोगुंदा सहित विस्तृत इलाके पर छा गई । प्रताप ने इस विशाल सेना का मुकाबला करना ठीक नहीं समझा । उसने सीधी झड़पों से बचने के आदेश देकर अपनी सैन्य टुकड़ियाँ चारों और घने सुरक्षित स्थलों में फैला दी और स्वयं कुम्भलगढ़ के सुरक्षित दुर्ग में पहुंच गया। प्रताप की इस नीति के कारण मुगल सेना विना अवरोध मेवाड़ के पश्चिमी पहाड़ी भाग में फैल गई, किन्तु उनके हाथ कुछ नहीं लगा। शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ की तलहटी में स्थित केलवाड़ा गांव पर अधिकार कर कुम्भलगढ़ का, घेरा डाला । इस पर दुर्ग में रसद पहुंचने के मार्ग बंद हो गये और अन्न एवं साधनों की कमी होने लगी। प्रताप ने राव अखयराज के पुत्र और अपने मामा भाण को किलेदार नियुक्त किया और स्वयं बहुत सी सेना के साथ किले से निकल गया 198
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