पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/१९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

और राणपुर में जाकर ठहरा । इसी समय दुर्ग की अधिक समय तक रक्षा करना असंभव हो गया। इस पर शेष राजपूतों ने दुर्ग के द्वार खोल दिये और लड़ते हुए मारे गये। इनमें राव भाण सोनगरा भी मारा गया। 3 अप्रेल 1578 ई. को मुगल सेना का कुम्भलगढ़ पर अधिकार हो गया। इस दुर्ग पर किसी शत्रु-शक्ति की यह प्रथम विजय थी। किन्तु उसको प्रताप की स्थिति का कोई पता नहीं चला। अन्त में पहाड़ों में कई स्थानों पर मुगल सैन्यदल तैनात कर वह अकबर के उद्देश्य को पूरा किये बिना ही लगभग आठ महीने बाद फतहपुर सीकरी लौट गया। ज्योंही शाहबाज खाँ लौटा, प्रताप ने पहाड़ी इलाके तथा मैदानी इलाके के सभी मुगल थानों पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया। इसी समय 1578 ई. के सितंबर-अक्टूबर माह के लगभग भामाशाह और ताराचंद ने रामपुरा से निकलकर ससैन्य मालवा के बादशाही इलाके पर धावा बोला और वहां से पच्चीस लाख रुपये एवं दो हजार अशर्फियाँ दंडस्वरूप वसूल करके राणा के पास चूलिया मुकाम पर पहुंच कर भेंट की। इस बड़ी राशि से राणा को सैनिक एवं प्रशासनिक व्यय की व्यवस्था में बड़ी मदद मिली। भामाशाह की सैनिक एवं प्रशासनिक क्षमता को देखकर राणा प्रताप ने इसी समय महासानी रामा के स्थान पर भामाशाह को मेवाड़ राज्य का प्रधान नियुक्त किया। अब तक प्रताप ने मेवाड़ के उत्तरी-पश्चिमी भाग भोमट के पहाड़ी प्रदेश को, जो गोगुंदा और कुम्भलगढ़ के निकट पड़ता था, अपनी सुरक्षात्मक सैनिक एवं प्रशासनिक कार्यवाही का क्षेत्र बना रखा था। शाहबाज खाँ द्वारा कुम्भलगढ़ विजय के बाद प्रताप ने मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग छप्पन के पहाड़ी प्रदेश को अपनी गतिविधियों का क्षेत्र बनाना प्रारम्भ किया। यह इलाका सुरक्षा की दृष्टि से भी अधिक उपयोगी था। मेवाड़ के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी दरों, देसूरी, हल्दीघाटी अथवा देबारी आदि मार्गों से प्रवेश कर छप्पन इलाके पर आक्रमण करने के लिये मुगल सेना को विस्तृत पहाड़ी प्रदेश को पार करना पड़ता था, इसलिये यह बहुत कठिन था। मालवा, गुजरात आदि की ओर से आक्रमण होने पर सुरक्षा की दृष्टि से छप्पन इलाके से निकल कर एवं घने वनीय पहाड़ों में होकर शीघ्र ही आसानी से भोमट इलाके में पँहुचना प्रताप के लिये सरल था जो मुगल सेना के लिये अत्यन्त कठिन था। 1579 ई. के लगभग प्रताप ने चांवड को अपनी स्थायी राजधानी बनाया, जो आगामी 36 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रही। 4. शाहबाज खाँ का दूसरा आक्रमण राणा प्रताप की आक्रामक-सुरक्षात्मक कार्यवाहियों एवं उसके द्वारा मुगल सैन्य-दलों पर अनवरत आक्रमणों से क्षुब्ध होकर बादशाह अकबर ने 15 दिसंबर 1578 ई. को पुनः शाहबाज खाँ को बहुत सा खज़ाना एवं गाजी खाँ बदख्शी, मुहम्मद हुसैन, सैयद तैमूर बदख्शी, मीरजादा अली खाँ आदि अनुभवी योद्धाओं को साथ देकर मेवाड़ की ओर भेजा और यह कहा कि यदि तुम उसका दमन किये बिना लौट आये तो तुम्हारे सिर उड़ा दिये जावेंगे। शाहबाज खाँ ने बड़ी भारी सेना लेकर मेवाड़ में प्रवेश किया और राणा की तलाश में पहाड़ों में फिरता रहा । राणा की तलाश में दौड़धूप करने और मेवाड़ के राजपूतों-भीलों के आकस्मिक आक्रमणों से त्रस्त एवं भयग्रस्त रहने के कारण मुगल सैन्य-दल को कभी चैन नहीं मिला। अन्त में असफल एवं निराश होकर वह पुनः विभिन्न स्थानों पर मुगल सैन्य दल नियुक्त करके लगभग छ-सात महीने बाद 1579 ई. के मध्य में मेवाड़ से वापस मुगल दरबार लौट गया। शाहबाज खाँ के लौटते ही प्रताप ने पुनः शाही स्थानों पर हमले शुरू कर दिये। उसने सारे मेवाड़ में यह आज्ञा जारी करवा दी कि पहाड़ी प्रदेश को छोड़कर मैदानी भाग में . 199