पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छप्पन के पहाड़ी इलाके में पानी की बहुतायत है,जहां जलाशय, वावड़ियाँ, कुंड और नदी-नाले बड़ी संख्या में हैं। पहाड़ों के बीच की घाटियों की भूमि में चावल, गेहूं, मक्का आदि अनाज,आम तथा अन्य फल पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होते हैं । अतएव चावंड को राजधानी वनाने से वहां हजारों लोगों के खाने पीने के प्रबंध में राणा प्रताप को अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। युद्ध-काल में भी कम ज्यादा मालवा एंव गुजरात की ओर व्यापार हो जाता था। अतएव दीर्घकालीन संघर्ष में इस स्थान का चयन बड़ा लाभप्रद सिद्ध हुआ । इस भांति प्रताप के शेष शांतिपूर्ण जीवनकाल में मेवाड़ ने सभी क्षेत्रों में उन्नति की और जब 1600 ई. में अकवर ने पुनः मेवाड़ के विरुद्ध युद्ध शुरू किया, उस समय मेवाड़ पूरी तरह धनधान्य पूर्ण एवं खुशहाल था और जो संपत्ति और साधन अर्जित किये गये, उनके सहारे राणा अमरसिंह आगामी पन्द्रह वर्षों तक मुगल सेना से लड़ता रहा। महाराणा प्रताप की यह सफलता निस्संदेह मानव इतिहास का एक अनूठा उदाहरण है। प्रताप के अदम्य सफल संघर्ष ने देश पर व्यापक प्रभाव डाला और मुगल दरबार में तथा उसके बाहर उसकी सराहना हुई। तत्कालीन विदेशी यात्रियों ने प्रताप की वीरता और साहस की प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा है। पर्वत और प्रताप 1576 से 1585 ई. के दस वर्षीय युद्ध-काल के दौरान बार-बार हुए मुगल आक्रमणों के कारण राणा प्रताप और उसके परिवार को उदयपुर, कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के राजमहलों का निवास छोड़ना पड़ा और अरावली पहाड़ों में सुरक्षात्मक युद्ध को जारी रखने के लिये वराबर निवास बदलने पड़े और नई-नई राजधानियां वनानी पड़ी । महलों के सुख एवं वैभव से परिपूर्ण एवं अभ्यस्त जीवन को छोड़कर पहाड़ों और वनों के अभावों और कठिनाईयों एवं संकटों से पूर्ण जीवन को अपनाना पड़ा । राजपरिवार की महिलाएं एवं बच्चे प्रायः भय एवं आशंका से त्रस्त रहते थे तथा उनको आक्रमणों के समय निवास बदलने पर पथरीले पहाड़ों पर उतरना, चढ़ना और घने जंगलों में चलना पड़ता था। संकट के समय यात्रा करते हुए मार्ग में अस्थायी तौर पर बनाए गये शिविरों, कच्चे मकानों अथवा झोंपड़ियों तथा कभी-कभी कन्दराओं में भी रहना पड़ता था। भोजन के प्रवन्ध में भी यदा-कदा कठिनाईयां उत्पन्न होना स्वाभाविक था। राणा के राजपरिवार, सामंतों एवं अधिकारियों आदि परिवारों तथा सहचरों सभी ने इन सब बातों को साहस एवं धैर्य के साथ सहा और उनका सामना किया टॉड ने लिखा- “प्रताप का धैर्य अडिग रहा।" किन्तु कुछ ऐसे अवसर आए, जब अपने अधिक प्रिय व्यक्तियों के कष्टों ने उसको कुछ विचलित कर दिया। उन पहाड़ी कंदराओं में भी उसकी प्रियतमा रानी सुरक्षित नहीं थी और हर प्रकार के सुख-साधनों में पलने के अधिकारी उसके बच्चे भोजन के लिये उसके चारों तरफ रोते रहते थे, क्योंकि अत्याचारी मुगल बड़ी दृढ़ता के साथ उनका पीछा करते { पांच बार ऐ हुआ कि उन्हें भोजन कर लेने तक का समय नहीं मिल सका और उन्हें वना बनाया भोजन छोड़ देना पड़ा। एक समय उसकी रानी और पुत्रवधू ने जंगली अन्न के आटे की कुछ रोटियां बनाई तथा प्रत्येक के भाग में एक-एक रोटी आई, आधी तत्काल खाने के लिये और बाकी अगली वार भोजन के लिये। विचारों में डूवा प्रताप उन्हीं के साथ बैठा हुआ था कि उसकी पत्नी की हृदयभेदी चीत्कार ने उसको चौंका दिया। एक जंगली विलाव झपट कर उसकी पुत्री की रोटी उठा ले गया था, जिस पर भूखी कन्या चिल्लाने लगी। तव तक प्रताप का धैर्य कदापि विचलित नहीं हुआ था। परन्तु भोजन के लिये अपने बच्चों की चिल्लाहट ने उसको हताश कर दिया और उसकी दृढ़ता स्थिर नहीं रह सकी । ऐसी स्थिति में राज्य करना उसने शाप के तुल्य समझा अकबर को अपनी कठिनाईयां कम करने के 205