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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२९०

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के सामन्तों को बुलाकर उनका सम्मान किया। राजमाता ने चूंडावत मंत्री को हटाकर राज्य का वह पद किसी योग्य शक्तावत को देने का निश्चय किया। परन्तु चूंडावत लोगों ने राज्य में अपना इतना अधिकार कायम कर लिया था कि राणा और राजमाता का आदेश कुछ महत्तव न रखता था। शक्तावतों में स्वयं इतना बल और पराक्रम न था कि वे चूंडावत लोगों को पराजित करके उनके प्रभुत्व को अपने अधिकार में ले सकते । ऐसी दशा में कोटा सरदार जालिमसिंह से सहायता माँगी गयी। जालिमसिंह से सहायता माँगने के कुछ और कारण भी थे। वह चूंडावत लोगों से पहले से ही अप्रसन्न था और शक्तावत वंश के लोगों के साथ उसके वैवाहिक सम्बन्ध थे। इसलिए जालिमसिंह ने सहायता देना स्वीकार कर लिया। इस समय शक्तावत लोगों के सामने दो कार्य प्रमुख थे । एक तो चूंडावत लोगों का दमन करना और दूसरा कमलमीर से विद्रोही रत्नसिंह को निकाल देना। चूंडावत लोगों ने सिंधी सेना को मिलाकर राज्य में षड़यंत्रों का एक जाल फैला दिया था और उस जाल से राणा को निकाल सकना आसान न था। इसलिए उस जाल को छिन्न-भिन्न कर देना शक्तावत लोगों का उस समय प्रधान कार्य था। मेवाड़ की इस दुरवस्था के दिनों में मारवाड़ और जयपुर के राजाओं ने मिलकर एक शक्ति का निर्माण किया और माधवजी सिंधिया के बढ़ते हुये प्रभुत्व को नष्ट करने का काम किया था। लालसोट नामक मैदान में मारवाड़ और जयपुर की संगठित सेना ने माधवजी सिंधिया को बुरी तरह पराजित किया और जो इलाके सिंधिया के अधिकार में चले गये थे, उन पर राजपूतों ने फिर से अपना अधिकार कर लिया। इसका प्रभाव मेवाड़ राज्य पर भी पड़ा और वहाँ के राणा ने भी अपने उन इलाकों पर अधिकार करने की चेष्टा की, जो मेवाड़ के थे और जिन पर सिंधिया ने अधिकार कर लिया था। मालदास मेहता और उसका सहकारी मौजीराम-दोनों ही राणा के यहाँ सुयोग्य अधिकारी थे। उनके द्वारा निम्बाहेड़ा और उसके निकटवर्ती दुर्गों पर सबसे पहले अधिकार किया गया। मराठों ने घबराकर जावद नामक स्थान पर एकत्रित होकर सामना करने की कोशिश की, परन्तु वे राजपूतों का सामना न कर सके । जावद का अधिकारी शिवाजी नाना पराजित होकर राजपूतों से क्षमा माँगकर अपने सामान और आदमियों के साथ भाग गया। इसी बीच में वेगू-सरदार मेघसिंह के पुत्र ने वेगू-सिंगौली और दूसरे स्थानों से मराठों को निकाल दिया और चूंडावत लोगों ने भी मराठों से रामपुर राज्य वापस प्राप्त कर लिया।1 इन दिनों में राजपूतों ने लगातार मराठों को पराजित किया और मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा पर प्रवाहित होने वाली रिरकिया नामक नदी के किनारे चई नामक स्थान पर एकत्रित होकर वे मराठों के दूसरे इलाकों पर अधिकार करने के लिए बढ़ने लगे। यह देखकर होलकर राज्य की रानी अहिल्या वाई सिंधिया से मिल गयी और तुलाजी राव सिंधिया तथा श्री भाई पाँच हजार सवारों की सेना को लेकर पराजित शिवाजी नाना की सहायता के लिये मन्दसोर की तरफ रवाना हुए। वहाँ पर राजपूतों के साथ शिवाजी नाना युद्ध कर रहा था। इसी अवसर पर मराठों को एक दूसरी सेना ने वहाँ पहुँचकर राजपूतों पर अचानक आक्रमण किया। माघ शुक्ल चौथ, मंगलवार सम्वत् 1844 सन् 1788 ईसवी को दोनों ओर से घमासन युद्ध हुआ। उसमें राजपूतों की पराजय हुई और राणा का मंत्री अपने बहुत से सैनिकों के साथ मारा गया। कानोढ और सादडी के सरदार घायल हो गये ।सादड़ी का सरदार घायल अवस्था में ही कैद हो गया और दो वर्ष तक वन्दी अवस्था में रहने के वाद अपने अधिकृत राज्य के चार नगरों को देकर उसने मुक्ति पायी । माधवजी सिंधिया के मेघजी वेगू का सरदार था । उसने चूंन्डावत वंश में जन्म लिया था, उसके वंश के लोग मेघावत वंश के 1. 290