पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/२९४

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वास्तव में आप चले जाने के लिए तैयार हैं?” “निश्चित रूप से, जालिमसिंह के इस उत्तर को सुनकर अम्बाजी ने उसको कुछ सोचने-समझने का मौका न दिया और वह तुरन्त अपने घोड़े पर बैठकर सिंधिया के पास उसके खेमे में चला गया। जालिमसिंह सिंधिया पर विश्वास करता था और समझता था कि वह अम्बाजी के द्वारा पहुँचे हुए इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा। इसका कारण यह था कि सिंधिया ने यहाँ आने के पहले उससे वादा किया था कि वह मेवाड़ के इस मामले में सहायता के लिए अपनी एक सेना देगा जो मेवाड़ राज्य से चूँण्डावतों को निकाल देगी और राज्य में शान्ति कायम करेगी। इस कार्य के लिये राणा की तरफ से सिंधिया को एक निश्चित रकम दी जायेगी। जालिमसिंह समझता था कि इसी वादे पर सिंधिया की सेना चूण्डावतों के विरुद्ध यहाँ पर आई है। अगर इस समय सिंधिया इस प्रस्ताव को स्वीकार करता है तो उसके साथ जो मैंने शर्ते तय की थीं, उनका उत्तरदायित्व किस पर होगा? इसलिए उसका विश्वास था कि सिंधिया अम्बाजी के इस प्रस्ताव को कभी स्वीकार न करेगा। वह यह भी समझता था कि यदि सिंधिया ने इसे स्वीकार भी कर लिया तो राणा की तरफ से उसका विरोध होगा। क्योंकि राणा मेरे बल और पराक्रम से प्रभावित हैं और वह समझता है कि मेरे बिना राज्य की इस बढ़ती हुई अशान्ति में दूसरा कोई कुछ नहीं कर सकता था। जालिमसिंह इस प्रकार की जितनी भी बातें सोच रहा था, अम्बा जी उनको पहले ही समझता था और उसने उनका उपाय भी सोच-समझ लिया था। सिंधिया के पास पहुँच कर अम्बाजी ने उस प्रस्ताव को उसके सामने पेश किया और उस समय राणा के वादे की रकम माँगने पर अम्बाजी ने पूरे रुपये की एक हुंडी सिंधिया को दे दी ।2 सिंधिया पूना जल्दी पहुँचना चाहता था। चितौड़ से आने के पहले उसने अम्बाजी को अपना अधिकार बनाया और उसके अधिकारी में वह अपनी एक सेना भी छोड़ गया, जिससे वह मेवाड़ में पहले बचे हुए रुपयों को वसूल कर सके । माधवजी सिंधिया पूना चला गया। अम्बाजी ने लौटकर जालिम सिंह से कहा : "सभी ने आपके इरादे को स्वीकार कर लिया है।" इसी समय राणा के कर्मचारी ने आकर उससे कहा : "आपकी विदाई की भेंट तैयार है।" यह सुनते ही जालिमसिंह के हृदय को एक आघात पहुँचा। उसने किस को अपनी इस दशा को समझने का अवसर न दिया और वह चितौड़ से चला गया। उसके बाद सालुम्बर सरदार चितौड़ के दुर्ग से निकल कर बाहर आया और राणा के चरणों को स्पर्श करके उसने क्षमा माँगी। बिना किसी युद्ध के चूण्डावतों का दमन करने में अम्बाजी को सफलता मिली। राज्य में फैली हुई अशान्ति और अराजकता अपने आप कम हो गई और उसका श्रेय अम्बाजी को मिला । वह जालिमसिंह का मित्र होने की अपेक्षा अपना मित्र अधिक था और यह उसी की राजनीति थी कि उसने चूँण्डावतों को नियंत्रण में लाकर जालिमसिंह के स्थान पर मेवाड़-राज्य में अपना प्रभुत्व कायम किया। अब वह पूरे मेवाड़-राज्य का अधिकारी बन बैठा। इसके पहले जब जालिमसिंह मेवाड़ को छोड़कर जा रहा था, अम्बाजी राणा के मंत्री शिवदास और सतीदास के पास गया और दोनों मंत्रियों से वादा करके उसने राज्य की अशांति को दूर करने का भार अपने ऊपर लिया। अनेक उत्तरदायित्वों को लेकर अम्बा जी ने मेवाड़ में अपना स्थान सर्वोच्च बना लिया। चित्तौड़ से चन्दावतों को निकाल कर राज्य में शांति कायम करने के लिए राणा ने सिंघिया को बीस लाख रुपये देने का वादा किया था । दक्षिण में अम्बाजी की जो रियासत थी, उसके नाम पर उसने अपनी तरफ से बीस लाख रुपये की एक 1. 2. 294