सिंधिया की सेना अब भी होलकर का पीछा कर रही थी। नाथद्वारा की सम्पत्ति लूटकर और बनेडा तथा शाहपुरा से बहुत-सा धन लेकर होलकर अजमेर में पहुँचा और वहाँ से वह जयपुर की तरफ चला गया। मेवाड़ में पहुँच कर सिंधिया की सेना ने जब होलकर को वहाँ न पाया तो उसने उसका पीछा करना छोड़ दिया और सिंधिया के सरदारों ने राणा से तीन लाख रुपये की माँग की । इस समय राणा की अवस्था बहुत खराब थी। इस रकम को अदा करने के लिए उसमें सामर्थ्य न थी। परन्तु बिना रुपये दिये हुए छुटकारा न मिल सकता था। इसलिए राणा भीमसिंह ने अपनी व्यक्तिगत और रानियों की बहुमूल्य सामग्री तथा उनके आभूषण तीन लाख रुपये की अदायगी में दे दिये । इतना सब पा जाने के बाद भी सिंधिया के सरदारों को सन्तोष न हुआ। इसलिए यशवंत राय भाऊ के परामर्श से उन सरदारों ने राणा से और भी रुपये अदा करने की माँग की। ये रकम राणा के न दे सकने पर राज्य की प्रजा से कठोर अत्याचारों के साथ वसूल की गयी। जो लोग रुपये न दे सके, उनको कैद किया गया और उनके साथ अमानुषिक अत्याचार किये गये। सम्वत् 1856 सन् 1803 ईसवी में सिंधिया की सेना के द्वारा मेवाड़ राज्य में अकथनीय अत्याचार हुए। उन्हीं दिनों में सिंधिया के द्वारा लखवादादा का अपमान किया गया, जिससे सलुम्बर-दुर्ग में पहुँच कर उसकी मृत्यु हो गयी। लखवादादा के मर जाने के बाद उसके स्थान पर अम्बा जी का भाई बालाराव नियुक्त किया गया। शक्तावत लोगों ने बालाराव के साथ मेल कर लिया। सतीदास भी उससे मिल गया। इस मेल के परिणाम स्वरूप, चूंण्डावत लोगों पर अत्याचार आरम्भ हुए। उन्हें राज्य के कार्यों से अलग किया गया। जालिमसिंह पहले से ही चॅण्डावतों को अपना शत्रु समझता था। इसलिए जब उन पर अत्याचार हुए तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। जालिमसिंह भी इन विद्रोही लोगों से मिल गया और राणा का मन्त्री देवीचन्द कैद कर लिया गया। क्योंकि चूंन्डावतों के द्वारा वह राणा का मन्त्री बना था। मेवाड़ राज्य में चूँन्डावतों की जो जागीरें थीं, बालाराव इंगले ने उनको भयानक रूप से लूटा और उनमें रहने वालों पर भीषण अत्याचार किये। प्रजा के घरों पर आग लगा दी गयी। इसके बाद बालाराव अपनी सेना के साथ राणा के महल की तरफ चला और मन्त्री के सहकारी मौजीराम की उसने माँग की। राणा ने मौजीराम को देने से इन्कार कर दिया इस पर बालाराव ने अपने सैनिकों को राणा के महलों में प्रवेश करने का आदेश दिया। उदयपुर के लोग बालाराव के इस अत्याचार को अब सहन न कर सके । इसी समय मौजीराम का आदेश पाकर वे सब अपने हाथों में तलवारें लेकर बालाराव के सैनिकों पर टूट पड़े। बहुत-से आदमी मारे गये । नाना गणेश पंत, जमाल कर और ऊदाजी कुँवर कैद कर लिए गये । बालाराव इंगले ने छिपकर भागने की चेष्टा की। लेकिन वह भी पकड़ कर कैद कर लिया गया। मराठा सरदारों के कैद हो जाने पर चूँन्डावत लोग अपने स्थानों से निकले और वे पर्वत के ऊपर स्थान पर पहुँचे, जहाँ सिंधिया की सेना ने अपना शिविर बनाया था। चूँण्डावतों ने वहाँ की समस्त मराठा सम्पत्ति और सामग्री पर अधिकार कर लिया। हियर्स नामक एक अंग्रेज सेनापति मराठों की सहायता करने के लिए आया था। उसने उदयपुर में सिंधिया की सेना की यह दशा देखकर अपने वापस चले जाने का प्रबन्ध किया। वह तुरन्त भयभीत होकर वहाँ से तेजी के साथ लौट गया। बालाराव इंगले की गिरफ्तारी का समाचार जालिमसिंह को मिला। उसने बालाराव को कैद से छुड़ाने का निश्चय किया । भीण्डर और लावा के सरदारों के साथ अपनी सेना को लेकर चैजाघाट नामक पहाड़ी रास्ते की तरफ वह आगे बढ़ा। यदि राणा ने कैद करके इन विद्रोही शत्रुओं को मरवा डाला होता तो उसका यह कार्य कभी किसी प्रकार अनुचित 302
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