किये। इस तरह आठ महीने तक लगातार होलकर ने मेवाड़ राज्य के भिन्न-भिन्न इलाकों और उनके दुर्गों पर हमले करके अगणित रुपये वसूल किये। किसी एक स्थान पर आक्रमण करके और रुपये वसूल करके वह तुरन्त किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण करने का कार्यक्रम बना लेता था। उन दिनों में मेवाड़ के इन राज्यों की दशा बहुत दयनीय हो रही थी। राणा पर होलकर के जो रुपये बाकी रह गये थे, उनके बदले में राणा के कितने ही प्रमुख व्यक्तियों के साथ अजितसिंह भी गिरवी में रखा गया था और उस रुपये को मेवाड़ में एकत्रित करने के लिए बलराम सेठ उदयपुर में रह गया था। राज्य से रुपये वसूल करने की कोई सूरत बाकी न रह गयी थी, फिर भी लोगों से रुपये लिए जाने का कार्य राज्य के अधिकारियों के द्वारा होता रहा । होलकर अपनी सेना के साथ मेवाड़ के राज्यों को लूटकर शाहपुरा में पहुँचा। इसी समय सिंधिया की सेना मेवाड़ पहुँच गयी। इन दिनों में अंग्रेजों की शक्तियाँ भारत में शक्तिशाली हो रही थीं। सिंधिया और होलकर-दोनों को अंग्रेजों से भय उत्पन्न हुआ। इसी उद्देश्य से दोनों ने एक दूसरे से मुलाकात की और इस बात पर वे परामर्श करने लगे कि अंग्रेजों की इस बढ़ती हुई शक्ति का किस प्रकार सामना किया जाये। इन्हीं दिनों में अंग्रेजों की सेना से मराठो को पराजित होना पड़ा। इसलिए सिंधिया और होलकर को अंग्रेजों से अधिक भय उत्पन्न हो गया। दोनों ने आपस में परामर्श करके अंग्रेजों से लड़ने की तैयारी की। सन् 1805 ईसवी के वर्षाकालीन दिनों में होलकर और सिंधिया के सैनिक विदनौर के मैदानों में एकत्रित हुए और अंग्रेजी सेना को पराजित करने के लिये अनेक प्रकार के मंसूबे बाँधने लगे, इसमें कुछ दिन बीत गये। राजस्थान के और विशेषकर मेवाड़ के राज्यों को लूटने के लिए होलकर और सिंधिया ने अपनी सेनाओं को अत्यन्त विशाल बना रखा था। लूट की रकमों से सेनाओं को वेतन अदा किये जाते थे। इधर कुछ दिनों से लूट का काम बन्द हो गया और वे लुटेरे मराठे अंग्रेजों से चिन्तित हो उठे थे। एक तरफ वे लोग अंग्रेजों से लड़ने की तैयारी कर रहे थे और दूसरी तरफ लूट की जो सम्पत्ति होलकर और सिंधिया के पास थी, वह खर्च हो चुकी थी। इसलिए सैनिकों के वेतन बाकी पड़े थे। उनकी अदायगी न हो सकने की अवस्था में मराठा सैनिक अपने राजाओं से विद्रोह करने के लिए तैयार थे। सिंधिया और होलकर ने अपने सैनिकों से केवल लूटमार का काम लिया था। इसलिए सैनिकों के आचरण में अनुशासन का अभाव हो गया। वेतन न पाने की दशा में मराठा सैनिक निरंकुश हो गये। सिंधिया और होलकर को फिर अपनी लूटमार की नीति अपनानी पड़ी। उनके झुण्ड के झुण्ड आसपास के देहातों में जाते और भयानक अत्याचार करके वे लोग ग्रामीण लोगों से रुपये वसूल करते। मराठों के ये अत्याचार अत्यन्त भयानक हो उठे। जिन लोगों के पास धन होता, उनके मकानों में मराठा सैनिक आग लगा देते और उनसे भागने वालों को अपनी तलवारों से मार डालते । उनके इन अत्याचारों से मेवाड़ राज्य के गाँव और नगर श्मशान बन गये । मेवाड़ राज्य की यह दुरवस्था दस वर्ष तक बराबर चलती रही। भारत में अब तक अनेक अवसरों पर भीषण अत्याचार हुए थे परन्तु मराठों के इन अत्याचारों के सामने वे सब इस देश के लोगों को भूल गये थे।। मराठों के इन अत्याचारों को रोकने के लिए उन दिनों में किसी राजपूत में शक्ति न रह गई थी। भारत के राजाओं में जिन लोगों ने अंग्रेजों की सहायता की थी उनमें गोहुद, ग्वालियर, राधोगढ़ और बहादुरगढ़ के राजा प्रमुख थे। भूपाल के नवाब ने भी अंग्रेजों की सहायता की थी।
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