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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३०५

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अंग्रेजों के साथ युद्ध करने के लिये मराठा लोग अपनी सभी प्रकार की तैयारियों में लगे थे। उनकी इस होने वाले युद्ध से सभी प्रकार की आशंकायें थीं। इसलिये मराठों ने अपनी संपत्ति, सामग्री और अपने परिवार के लोगों को मेवाड़ के दुर्गों में छिपाना शुरू किया। चूँन्डावतों का प्रधान सरदार सिंह सिंधिया की सभा में राणा का प्रतिनिधि बनाया गया। अम्बाजी सिंधिया का फिर से मन्त्री बना ।1 आज से पहले मेवाड़ के राणा ने अम्बाजी के विरुद्ध लखवादादा की सहायता की थी। अम्बाजी इस बात को भूला न था । सिंधिया का मन्त्री पद पाने के बाद उसके हृदय में राणा के विरुद्ध द्वेष की आग प्रज्ज्वलित हुई। उसने राणा से बदला लेने का निश्चय किया और मेवाड़ राज्य को कई भागों में विभाजित करके उन पर उसने मराठों का अधिकार कायम करा देने की चेष्टा की। शक्तावत सरदार संग्रामसिंह ने जब अम्बाजी के इस कार्यक्रम को सुना तो उसने रुकावट डालने का निश्चय किया। इन दिनों में देश की राजनीतिक स्थिति को देखकर मेवाड़ के प्रति होलकर के हृदय में सहानुभूति पैदा हो गयी थी। संग्रामसिंह ने अपने उस कार्य में होलकर से सहायता लेने का इरादा किया। सिंधिया की स्त्री बायजाबाई बड़ी समझदार और दूरदर्शी थीं। उसका विवाह राजपूतों के शत्रु सिंधिया के साथ हुआ था। परन्तु वह राजपूतों के गौरव के साथ-साथ समय की गति को पहचानती थी। प्रसिद्ध शूरजीराव की वह लड़की थी। मेवाड़ के सम्बन्ध में अम्बाजी का इरादा और कार्यक्रम बायजाबाई को मालूम हुआ। उसने तुरन्त अम्बाजी का विरोध करने की सोची। वह मेवाड़ राज्य के सम्बन्ध में इस प्रकार की कूटनीति नहीं देखना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि प्रसिद्ध मेवाड़ राज्य का इस प्रकार सर्वनाश किया जाये। इसके लिए उसने मेवाड़ की पारस्परिक फूट को दूर करने की कोशिश की। जो चूँन्डावत और शुक्तावत सरदार बहुत पहले से एक, दूसरे के विरोधी चल रहे थे, वे एक दूसरे से मिल गये और दोनों ही वंश के राजपूत सरदारों ने अम्बाजी की योजना को असफल बनाने की प्रतिज्ञा की। चूँन्डावतों का प्रधान सरदारसिंह पहले से ही सिंधिया के राज-दरबार में था। अम्बाजी का उद्देश्य जानकर उसने उनसे घृणा की और सिंधिया का दरबार छोड़ मेवाड़ के संगठन में आकर मिल गया और अम्बाजी को विफल बनाने के लिए जो तैयारी हो रही थी उसमें उसने भाग लेना आरम्भ कर दिया। चूँन्डावतों और शक्तावतों का मेल आज मेवाड़ के लिए एक बड़े भाग्य की बात थी। इन दोनों वंशों के राजपूत सरदारों की पारस्परिक शत्रुता के कारण प्रसिद्ध मेवाड़ राज्य का पतन हुआ था। राजस्थान में जो मेवाड़ राज्य किसी समय उन्नति के शिखर पर था, वही मेवाड़ आज विशाल राजस्थान में सब से अधिक पतित और गिरी हुई अवस्था में था। इसके बहुत से कारणों में चूंन्डावतों और शक्तावतों की पारस्परिक शत्रुता भी एक प्रधान कारण थी। राज्य की अंतिम दुरवस्था के दिनों में वे दोनों वंश एक हो गये और उनके सरदार लोग पंचौली किशनदास के साथ मिल गये। सरदारों ने होलकर से पूछा- “क्या आपने मेवाड़ के टुकड़े-टुकड़े करके बेचने का अधिकार अम्बाजी को दिया है?" इस प्रश्न को सुनकर सरदारों को उत्तर देते हुए होलकर ने गम्भीरता के साथ कहा “नहीं मैं ऐसा कभी न होने दूंगा। मैं आप सबके सामने शपथपूर्वक कहता हूँ कि मेवाड़ की अम्बाजी, बापू चितनवीस, माधव हजूरिया और अन्ना जी भास्कर सिंधिया के इन दिनों मंत्री थे। वह 1. 305