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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३०६

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- यह दुरावस्था मैं कभी देख न सकूँगा । मैं आप सबको सलाह दूँगा कि इस संकट के समय एक होकर राज्य की रक्षा का उपाय करें।" होलकर के मुख से इस प्रकार की बात को सुनकर मेवाड़ के सरदारों को बहुत संतोष मिला। होलकर ने इतना ही नहीं कहा, बल्कि मेवाड़ के इन सरदारों को लेकर वह सिंधिया के पास गया और राणा की प्रशंसा करते हुये उसने सिंधिया से कहा-“राणा ने राजस्थान के एक श्रेष्ठ वंश में जन्म लिया है। यहाँ के सभी राजपूत राणा को सम्मान देते हैं। इस दशा में राणा के साथ शत्रुता रखना हम लोगों का कर्तव्य नहीं है । मेवाड़ राज्य की आज जो अधोगति है, क्या उसमें हम लोगों का कुछ कर्तव्य नहीं है? उस राज्य की भूमि का भोग वहुत समय से हमारे पूर्वज करते चले आ रहे हैं। मुनासिब तो यही था कि इस संकट के समय हम सब लोग उस राज्य की सम्पूर्ण बंधक भूमि को लौटा देते । इस कर्तव्य पालन के समय क्या उचित है कि हम सबके देखते-देखते उस राज्य को बहुत से टुकड़ों में वाँट दिया जाये ? यदि ऐसा है तो हम लोगों को लज्जा मालूम होनी चाहिये । ऐसे अवसर पर मैं साफ यह कह देना चाहता हूँ कि आपकी जो तबीयत हो, करें। परन्तु मैं तो शपथ खा चुका हूँ कि राणा के पक्ष को छोड़कर मैं कभी दूसरे पक्ष में न जाऊँगा। इस विषय में मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि मेवाड़ के इन संकट के दिनों में मैंने नीम्बाहेड़ा नामक अधिकार किया हुआ इलाका राणा को दे दिया है। ऐसा करके मैंने अपने कर्तव्य का पालन किया है।" होलकर अपनी इन बातों को कहकर चुप हो गया। सिंधिया चुपचाप सुनता रहा। उसने कुछ कहा नहीं। सिंधिया होलकर की कही हुई वातों को अभी सोच रहा था, उसी समय होलकर ने फिर कहा, "आप इस समय की परिस्थितियों पर ध्यान दें। यदि आज राणा हम लोगों का साथ छोड़कर अलग हो जाये तो हम लोगों के सामने कितना बड़ा संकट पैदा हो सकता है। अंग्रेजों के साथ जो युद्ध होने को है, उसके किसी प्रकार दिन कट रहे हैं। यदि लड़ाई शुरू होती है तो हम लोग अपनी सम्पत्ति और परिवार के लोगों को कहाँ रखेंगे? इस संकट के समय राणा के दुर्ग ही हमारे लिये सुरक्षित हो सकते हैं। राणा के साथ शत्रुता पैदा करके हम किस प्रकार उन दुर्गों का लाभ उठा सकते हैं इस समय हमें यह न भूलना चाहिए कि राणा की शत्रुता हमारी विपदाओं को पहाड़ वना देगी।" होलकर की इस वातों को सुनकर सिंधिया के मन की आशंकायें दूर हो गयीं और वर्तमान परिस्थितियों का अनुमान लगाकर वह एक वार प्रसन्न हो उठा। होलकर के शब्दों ने सिंधिया को प्रभावित किया और सिंधिया ने मेवाड़ के दूतों को बुलाकर अपने यहाँ सम्मानपूर्ण स्थान दिया। सिंधिया और होलकर के कैम्पों में दस कोस का फासला था। इन्हीं दिनों में वहाँ पर कई दिनों तक भीषण वर्षा हुई । इसलिए आने-जाने के रास्ते कुछ समय के लिए बंद हो गये। इन्हीं वर्षा के दिनों में होलकर किसी समय में अपने कैम्प में बैठा था। एक कर्मचारी ने आकर उसके हाथ में एक समाचार-पत्र दिया। होलकर ने तुरन्त तत्परता के साथ उसे पढ़ा और फिर गम्भीर होकर उसने अपने कर्मचारियों से कहा-"राणा के दूतों को अभी बुलाकर मेरे पास ले आओ।” होलकर के अचानक आवेश में आ जाने का कारण यह था कि समाचार-पत्र से उसे मालूम हुआ कि राणा का भैरव वक्श नामक एक दूत मराठों को मेवाड़ से निकालने के सम्बन्ध में अंग्रेजों के लार्ड लेक के साथ टोंक में परामर्श कर रहा था। इस को पढ़ते ही वह क्रोध में आ गया। 306