पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 किशनदास और मेवाड़ के दूसरे दूतों ने आकर होलकर के कैम्प में प्रवेश किया। होलकर का क्रोध अभी ज्यों का त्यों वना था। उसने उस पत्र को किशनदास की तरफ फेंक कर कहा-“मेवाड़ वालों का हमारे साथ क्या यह विश्वासघात नहीं है? तुम्हारे राणा के लिए मैंने सब कुछ छोड़ा है, सिंधिया के भय की कुछ परवाह न की है। अंग्रेजों के साथ युद्ध करने के लिए जो तैयारियाँ हो रही हैं, उनमें समस्त हिन्दू-जाति को संगठित हो जाना चाहिए। ऐसे समय में अलग होकर तुम्हारे राणा ने अंग्रेजों के साथ संधि करने का निर्णय किया है। किसी समय सवसे राणा ने कहा था कि-'हम दिल्ली की अधीनता स्वीकार नहीं कर सकते।' राणा का यह स्वाभिमान आज कहाँ है?" इस समय पंचौली किशनदास ने शांत होने के लिये होलकर को संकेत किया। परन्तु अलीकूर तातिया नामक मंत्री ने अपने स्वामी होलकर से कहा-“महाराज आपने इन राजपूतों का व्यवहार अपने नेत्रों से देखा। ये लोग सिंधिया के साथ आपको लड़ाना चाहते हैं। इसलिए आपको इन राजपूतों का समर्थन छोड़कर सिंधिया से मिल जाना चाहिए और शूरजी राव के स्थान पर अम्बाजी को मेवाड़ का सूबेदार बनाना चाहिए। यदि आप ऐसा न करेंगे तो मैं सिंधिया के पास मालवा चला जाऊँगा।" अलीकूर तातिया की बातें भाऊ भास्कर को छोड़कर वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों ने पसन्द की। होलकर को भी उसका परामर्श मानना पड़ा । उसने शूरजी राव को सूबेदारी से बर्खास्त कर दिया और अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध करने के लिए वह उत्तर की तरफ रवाना हुआ। वहाँ पर अंग्रेजी सेना के साथ लड़कर वह पराजित हुआ और पंजाब तक अंग्रेजों ने उसका पीछा किया। अंत में होलकर को लार्ड लेक के साथ संधि करनी पड़ी। अंग्रेजों के साथ राणा का सम्पर्क और व्यवहार मालूम करके होलकर बहुत अप्रसन्न हुआ। लेकिन इस समय उसने मेवाड़ के विरुद्ध कोई कार्य नहीं किया। मेवाड़ छोड़ने के समय उसने सिंधिया से कहा था - "अम्बाजी द्वारा मेवाड़ राज्य की कोई हानि न होगी, इसकी मैंने प्रतिज्ञा की है। इसलिये ऐसा कोई कार्य न हो, जो मेरी प्रतिज्ञा के विरुद्ध समझा जाये और यदि हुआ तो उसका उत्तरदायित्व आपके ऊपर होगा। होलकर की कही हुई बातों का प्रभाव सिंधिया पर पड़ा। लेकिन होलकर के संकट में पड़ते ही सिंधिया ने उसकी कही हुई बातों की परवाह न की और मेवाड़ से सोलह लाख रुपये वसूल करने के लिए उसे सदाशिव राव को रवाना कर दिया। सिंधिया ने उसके साथ एक मजबूत और विश्वस्त सेना भी भेजी। सन् 1805 ईसवी के जून मे वह सेना मेवाड़ की तरफ बढ़ी। सदाशिव राव को दो काम सौंपे गये। पहला कार्य यह था कि जैसे भी हो सके, मेवाड़ से सोलह लाख रुपये वसूल किये जाये और दूसरा कार्य यह था कि उदयपुर से जयपुर की सेना हटा दी जाये। राणा की बेटी कृष्णकुमारी के साथ जयपुर के राजा का विवाह होना निश्चित हुआ था और इसीलिए जयपुर की सेना इन दिनों में उदयपुर गयी थी। कृष्णकुमारी अपनी सुन्दरता और योग्यता के लिए राजस्थान में प्रसिद्ध हो रही थी। उसके पिता राणा ने उसका विवाह जयपुर के राजा के साथ तय किया था। उसके बाद नरवर के राजा मानसिंह ने कृष्णकुमारी के साथ विवाह करने का इरादा किया। जयपुर के राजा जगतसिंह के साथ कृष्णकुमारी का विवाह न हो सके इसके लिए राजा मानसिंह ने अपनी तीन हजार सैनिकों की सेना उदयपुर भेज दी । जयपुर की सेना उदयपुर में पहले ही आ चुकी थी। कृष्णकुमारी का विवाह जगतसिंह के साथ रोकने के लिए मानसिंह ने झूठी वातों का प्रचार करना आरम्भ किया। 307