सिंधिया ने मारवाड़ के राजा मानसिंह का पक्ष लिया और इसके लिए उसने सदाशिव राव को आदेश दिया था कि उदयपुर से जयपुर की सेना निकाल दी जाये। सिंधिया ने राणा को एक धमकी भी दी थी तथा उसके लिए संदेश भेजा था कि यदि वह मेरी बातों को न मानेगा. और अपनी लड़की का विवाह जयपुर के राजा के साथ करेगा तो मैं किसी प्रकार उस विवाह को होने न दूंगा। कृष्णकुमारी का विवाह जगतसिलस्ह के साथ न हो, इसके लिये विरोधियों की तरफ से अनेक प्रवर के उपाय किये गये। राजा मानसिंह ने चूंन्डावत लोगों को मिलाकर अपने पक्ष में कर लिया था और उनके सरदार अजितसिंह को रिश्वत दी थी। जयपुर के राजा जगतसिंह के साथ सिंधिया की अप्रसन्नता का एक कारण था। कुछ समय पहले सिंधिया ने जगतसिंह से रुपये माँगे थे और जगतसिंह ने रुपये देने से साफ-साफ इन्कार कर दिया था। इस अप्रसन्नता के कारण सिंधिया ने मानसिंह का पक्ष समर्थन करके कृष्णकुमारी के विवाह में जगतसिंह का विरोध किया और अपनी आठ हजार सेना को लेकर वह उदयपुर पहुँच गया। नगर से कुछ दूरी पर उसने अपने डेरे डाले। राणा भीमसिंह के सामने इस समय भयानक संकट था। उदयपुर से जयपुर की सेना को वापस भेज देने के सिवा अब उसके सामने कोई उपाय न था। उसने यही किया। जयपुर की आयी हुई सेना उदयपुर से चली गयी। राजा जगतसिंह ने सेना के लौट जाने पर अपना अपमान अनुभव किया और राणा से इसका बदला लेने के लिये उसने अपनी सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया। राजा जगतसिंह के साथ उस समय जितनी बड़ी सेना थी, उतनी जयपुर में कदाचित कभी न रही थी। राजा जगतसिंह की सेना के आक्रमण का समाचार सुनकर राजा मानसिंह उससे युद्ध करने को तैयार हुआ और अपनी सेना लेकर वह मेवाड़ की तरफ चल पड़ा। परन्तु इसी समय उसके राज्य मारवाड़ में कुछ घरेलू झगड़े पैदा हो गये, जिनसे मानसिंह बड़ी मजबूरी में पड़ गया। इस प्रकार के विवाद और घरेलू झगड़े मारवाड़ में बहुत पहले से चल रहे थे। वहाँ के इन भीतरी झगड़ों के कारण मारवाड़ की युद्ध सम्बन्धी योग्यता निर्बल पड़ गयी थी। मानसिंह युद्ध के लिए रवाना हो गया था। उसके चले जाने पर विरोधी सरदारों ने अपने साथ के एक सरदार को कल्पित राजा बनाया और एक सेना का संगठन करके वे लोग मानसिंह के शत्रुओं से मिल जाने को रवाना हुये। जयपुर के राजा जगतसिंह ने एक लाख बीस हजार सैनिकों की सेना लेकर चढ़ाई की थी। मानसिंह के पास जो सेना थी, वह लगभग इसकी आधी थी। परवतसर नामक स्थान पर जयपुर और मारवाड़ की सेनाओं का मुकाबला हुआ। युद्ध आरम्भ होने के कुछ समय बाद मानसिंह की सेना के बहुत से सैनिक और सरदार मारवाड़ के कल्पित राजा की तरफ चले गये। राजा मानसिंह की शक्तियाँ इस समय युद्ध में बहुत क्षीण पड़ गयीं। वह युद्ध से अलग जाकर खड़ा हो गया। उस समय शत्रुओं के आक्रमण करने पर उसके सामन्तों और सरदारों ने उसकी रक्षा की। वहाँ से हटकर शत्रु-सेना ने जोधपुर को घेर लिया। वहाँ पर छ: महीने युद्ध हुआ। अंत में जोधपुर शत्रुओं के अधिकार में चला गया और वहाँ पर लूट आरम्भ हुई। इन शत्रुओं में मारवाड़ के जो विरोधी सरदार अपनी सेना के साथ आकर मिल गये थे, वह जोधपुर की यह अवस्था न देख सके। यहाँ पर कछवाहों और राठौरों का प्रश्न पैदा हो गया। जयपुर के लोग कछवाहा राजपूत थे और मारवाड़ के राठौर थे। इस प्रश्न ने जयपुर की सेना से कल्पित राजा के सरदारों और सैनिकों को अलग कर दिया और अब दोनों सेनाओं में मारकाट आरम्भ हो गयी। 308
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