पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३२०

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नहीं देते, आपको राज-दरवार में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है।” इससे हमीर जल उठा और आवेश में आकर उसने इस प्रकार की कड़वी बातें कहीं, जो किसी प्रकार उसको न कहनी चाहिए थी। राणा ने उसके दमन का कार्य मुझे सौंप दिया। मैं इसके लिए अतसर की प्रतीक्षा करने लगा। एक बार राणा की आज्ञा से राज्य के सैनिक उस दुर्ग पर अपना कब्जा करने गये तो दुर्ग के अधिकारी ने अपमान के साथ उनको दुर्ग के बाहर से लौटा दिया। यह जानकार मुझे बहुत बुरा लगा और विवश होकर मुझे हमीर के साथ कठोर व्यवहार करना पड़ा और राज दरबार में बैठे हुए हमीर को सबके सामने जाहिर किया कि जो दुर्ग तुम्हारे अधिकार था, उसे लेकर राज्य में मिला लिया गया है। मेरी इस बात को सुनकर राणा ने सामन्तों और सरदारों को संतोष देने के लिए कुछ बातें कहीं और अपनी निर्भीकता भी प्रकट की। हमीर के अशिष्ट व्यवहारों के कारण अन्त में राणा ने उसको राज्य से निकल जाने का आदेश दिया। परन्तु इसके सम्बन्ध में कुछ बातों के बाद निर्णय हुआ कि हमीर के अधिकार से सम्पूर्ण इलाका जब्त करके राज्य में उस समय तक के लिए मिला लिया जाये, जब तक बलपूर्वक अधिकार में लाये हुए राज्य के ग्रामों से वह अपना अधिकार वापस न ले ले। इस प्रकार के निर्णय से हमीर बहुत निराश और दुःखी हुआ। उसी रात वह उदयपुर छोड़कर चला गया और अपने अधिकार की समस्त भूमि उसने राणा को दे दी। साथ ही उसने भदेश्वर का दुर्ग भी राणा को दे दिया। इसी प्रकार आमली दुर्ग की भी घटना है। इस दुर्ग की सम्पूर्ण भूमि आमेर के सरदार के अधिकारों में सत्ताईस वर्षों से थीं और अर्द्ध शताब्दी से वहाँ के लोग उसकी भूमि पर अधिकार किये चले आ रहे थे। वे लोग जगवत शाखा में पैदा हुए थे और मेवाड़ के सौलह सरदारों में माने जाते थे। बदनोर के सरदार के बाद उन्हीं लोगों का स्थान है। इस आमली दुर्ग का अधिकार भी राणा ने अंग्रेजों की सहायता से प्राप्त किया। मेवाड़राज्य में भूमि का मालिक किसान माना जाता है। इस अधिकार को वहाँ के किसान बपौती कहते हैं। किसानों की भूमि पर कभी कोई दखल नहीं दे सकता और न उन पर कोई कर लगाया जाता है। किसानों के इस अधिकार के सम्बन्ध में यहाँ पर कुछ घटनाओं को सामने लाना आवश्यक है। किसी समय मण्डोर नगर में मारवाड़ की राजधानी थी। गुहिलोत राजकुमार का विवाह किसी समय मारवाड़ की राजकुमारी के साथ हुआ। राजपूतों की प्रथा के अनुसार कन्या के पिता को जामाता की माँग को पूरी करना पड़ता था। इस प्रथा के अनेक दुष्परिणाम राजस्थान में देखे गये हैं। गुहिलोत राजकुमार ने लड़की के पिता से दस हजार जाटों की माँग की । ये जाट मारवाड़ राज्य में खेती करते थे। लड़की के पिता ने जामाता के मांगने पर दस हजार जाटों को मेवाड़ जाने की आज्ञा दी। राजा के इस आदेश को सुनकर जाट लोग घबरा उठे। वे जाने के लिए तैयार न थे अन्त में जाटों ने आपस में परामर्श करके निर्णय किया और अपने राजा से उन. लोगों ने प्रार्थना की - "क्या हम लोग अपना बपौती छोड़कर एक अपरिचित राज्य में चले जायेंगे? अगर आप चाहें तो हमारा संहार कस सकते हैं। लेकिन हम लोग अपना यह अधिकार छोड़कर कहीं जा नहीं सकते।” इस विरोध में मारवाड़ के राजा को उन सभी जाटों के लिए जिन्हें जामाता की माँग पर मेवाड़ भेजा जा रहा था उनकी जमीनें सदा के लिए लिख देनी पड़ी। अपने इस अधिकार को प्राप्त करके जाटों ने जाना स्वीकार कर लिया। - - 320