सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूमि पर उनको अधिकार करने की आवश्यकता थी, जिससे राठौड़ों का वंश सुविधाओं के साथ अपना विस्तार कर सके। जोधा की चौदह संतानें नाम शाखा 1. साँतल जी जागीर साँतलमेर X 12. सूजा जी x 3. जोगा जी X X विशेष विवरण पोकरण से छ: मील जोधपुर का उत्तराधिकारी वंशहीन दूदा जी ने चौहानों से साँभर छीन लिया था। उसके वीरन नाम का एक वेटा था। वीरन के दो लड़के जयमल और जगमल हुये। उनसे जयमलोत और जगमलोत शाखायें 4. दूदा जी मेड़तिया मेड़ता निकलीं। 15. मालवा में 6. 7. 8. 9: 10. - बरसिंह बरसिंहोत नोलाई बीका जी वीकावत बीकानेर स्वतन्त्र जागीर भारमल्ल भारमल्लोत विलारा शिवराज शिवराजोत दूनारा लूनी पर कर्मसिंह कर्मसिंहोत क्योनसर रायपाल रायपालोंत X 11. सावंतसिंह सावंतसिंहोत दावारो 12. बीदा जी बीदावती बीदावती नागौर जिले में 13. बनबीर X X 14. नीम जी X X जोधाराव के चौदह लड़कों में साँतल जी सबसे बड़ा था। वह पिता के राज्य को छोड़कर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम की तरफ भाटिया राज्य में चला गया था। वहाँ पर उसने साँतलमेर नाम का एक दुर्ग बनवाया। यह दुर्ग पोकरण से छ: मील की दूरी पर है। मरुभूमि के एक भाग में सराई नामक एक यवन जाति रहा करती थी। उसके राजा खान के साथ साँतल का संघर्ष पैदा हो गया। दोनों में युद्ध हुआ । उसमें खान के साथ-साथ साँतल भी मारा गया। उसके सात स्त्रियाँ थीं। वे सातों साँतल के साथ सती हुईं। दूदा जोधाराव का चौथा लड़का था। मेड़ता की विशाल भूमि में उसने अपने वंश की प्रतिष्ठा की। उसके वंशज मेड़तिया राठौड़ के नाम से प्रसिद्ध हुये। मरुप्रदेश में 1 382