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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३६९

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अध्याय-37
महाराज जसवंत सिंह व
अजीत सिंह दुर्गादास का त्याग

पृथ्वीसिंह की मृत्यु के समय जसवन्त सिंह काबुल में था। उसके शोक में जसवन्त सिंह ने परलोक की यात्रा की। उसके मरते ही उसकी रानी, जो उसके साथ थी, सती होने के लिए तैयार होने लगी। उसने चिता बनवाने का आदेश दिया। लेकिन वह गर्भवती थी। सात महीने का शिशु उसके पेट में था। इसलिए उसका सती होना सरदार ऊदा ने उचित नहीं समझा। उसने बड़ी सावधानी के साथ रानी से प्रार्थना की और उसे समझाया कि इस दशा में आपको सती न होना चाहिए। उससे जो पुत्र पैदा हुए थे, उनकी अकाल मृत्यु हो गयी थी। अब जसवन्त सिंह के कोई बालक न था। इसलिए साथ के सरदारों ने मिलकर गर्भवती रानी को सती होने से रोका। इस दशा में जसवन्त सिंह की रानी सती न हो सकी। जसवन्त सिंह के साथ काबुल में जो उप पत्नियाँ थीं, वे सती हो गयीं। उसकी दूसरी रानी मन्डोर नगर में रहती थी। उसको जब जसवन्त सिंह की मृत्यु का समाचार मिला तो उसने सती होने की तैयारी की और अपने पति की पगड़ी साथ में लेकर चिता में बैठी और सती हो गयी।

जसवन्त सिंह के मरने के बाद सम्पूर्ण राजस्थान में शोक मनाया गया। मारवाड़ के स्त्री-पुरुप बहुत दिनों तक दुःखी रहे। जसवंत सिंह ने मारवाड़ के गौरव की रक्षा की थी। अब वह गौरव राज्य के सभी लोगों को अरक्षित दिखायी देने लगा। मन्दिरों में घण्टों का बजना बन्द हो गया, प्रातःकाल और सायंकाल राज्य में शंख बजा करते थे, अब उनकी आवाज कहीं सुनायी न पड़ती थी। मारवाड़ की परिस्थितियाँ जसवन्त सिंह के मरते ही एक साथ भयानक हो उठीं। राज्य के सभी लोग अत्यन्त भयभीत हो उठे। अब उनको कोई ऐसा दिखायी न पड़ता था, जिसके द्वारा मारवाड़ की रक्षा हो सकती। जो ब्राह्मण जसवन्त सिंह के शासन काल में निर्भीक होकर अपने धर्म का प्रचार करते थे, उनका झुकाव अब इस्लाम की तरफ दिखायी पड़ने लगा। इस प्रकार के अनेक परिवर्तन जसवन्त सिंह के मरने के बाद एक साथ सामने आये।

जसवन्त सिंह की विधवा रानी अभी तक काबुल में थी। उसके साथ बहुत से राठौड़ सैनिक और शूरवीर सरदार थे। समय पर उससे एक पुत्र पैदा हुआ। अजीत उसका नाम रखा गया। कुछ समय के बाद जब रानी वहाँ से आने के योग्य हो सकी तो राठौड़ सरदार अपने साथ के सब लोगों को लेकर काबुल से मारवाड़ की तरफ रवाना हुए। उन सब के

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